बिहार के फुलवारी शरीफ़ में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश नाक़ाम

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

यहां गंगा जमुनी संस्कृति वाले फुलवारी शरीफ़ का एक लंबा धार्मिक इतिहास रहा है. कहा जाता है कि प्राचीन समय में फुलवारी शरीफ़ एक ऐसा क्षेत्र था, जहां सूफ़ी संतों ने अपने धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कृत्यों द्वारा प्रेम और सहनशीलता का संदेश फैलाया था. लेकिन आज यह इलाक़ा पिछले एक साल से लगातार हो रहे साम्प्रदायिक तनाव वाले हादसों से परेशान है.


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गुरूवार रात फुलवारी शरीफ़ थाना से सटे इलाक़ा इसापुर में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने का मामला प्रकाश में आया. दीवाली के अगले दिन देवी लक्ष्मी के प्रतिमा विसर्जन के दरम्यान जमकर मारपीट व पथराव हुआ, जिसमें तीन पुलिसकर्मी सहित कई घायल हो गए. इस घटना में कई दुकान व वाहन भी क्षतिग्रस्त हुए. पुलिस-प्रशासन के सूझबूझ से इस घटना पर तुरंत काबू पा लिया गया. स्थिति अभी नियंत्रण में है. पुलिस अभी भी इलाक़े में तैनात है और अधिकारी लोगों में फिर से शांति का पैग़ाम देकर शांति व सौहार्द बनाए रखने की अपील कर रहे हैं.


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दरअसल, इस घटना के पीछे कई कहानियां हैं. कुछ लोग इस घटना को राजनीति के साथ जोड़कर भी देख रहे हैं तो कुछ का कहना है कि यह अचानक हो जाने वाली घटना है, जिसके लिए कुछ शरारती तत्व ज़िम्मेदार हैं.


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मंगलेश राम व सुमित कुमार बताते हैं कि रात के 8 बजे के आस-पास मूर्ति विसर्जन के लिए जा रहे थे कि अचानक पानी टंकी के पास आते ही पथराव शुरू हो गया. उन्हें कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या अचानक क्या हो गया. मंगलेश का यह भी आरोप है कि जब वो पीछे मस्जिद के तरफ़ भागे तो वहां भी पथराव हुआ.



लेकिन पानी टंकी के पास रहने वाले लोगों की शिकायत है कि उनका अखाड़ा जब वहां आया तो सब वहीं रूक कर आपस में लड़ रहे थे. अधिकतर लोग दारू पिए हुए थे. पास के ही चाय वाले दुकान से उसी आखाड़े में शामिल एक लड़के ने शराब पीने के लिए गिलास मांगी तो दुकानदार ने मना कर दिया. बस मना करते ही उन्हें हॉकी से मारने लगे और उनकी दुकान को पूरी तरह से तोड़ दिया. पास की और भी कई दुकानों को उन्होंने क्षतिग्रस्त किया.

स्थानीय लोगों का कहना था कि इस विसर्जन करने जा रहे हर लोगों के हाथ में तलवार, हॉकी, लाठी आदि कई हथियार थे. जबकि पूरे पटना में कल विसर्जन हुआ, किसी भी विसर्जन में ऐसा देखने को नहीं मिला.



मो. इरशाद की कहानी थोड़ी अलग है. वो बताते हैं कि मूर्ति विसर्जन करने वाले दो गुटों में ही पहले लड़ाई हुई. पुलिस ने जब उन्हें रोका तो उन्होंने पुलिस वाले पर पथराव करना शुरू कर दिया. जिससे पूरे इलाक़े में अफ़रातफ़री मच गई और लोग अपने दुकानों के शटर गिराकर भागने लगे. बस यहीं से उन्होंने इस घटना को साम्प्रदायिक रंग दे दिया. दुकानों में तोड़फोड़ शुरू कर दी.



लेकिन मोनू का कहना है कि वो मूर्ति-विसर्जन करने जा रहे अखाड़े में एक गाना बज रहा था. गाने के बोल थे –‘कश्मीर रहेगा, पाकिस्तान नहीं रहेगा… हिन्दुस्तान रहेगा, मुसलमान नहीं रहेगा…’ इसके अलावा शराब के नशे में मुसलमानों को गालियां भी दे रहे थे. इसी बात पर उन्हीं में से एक लड़के ने उन्हें मना किया तो पहले उसे उन लोगों ने मारना शुरू किया. इसे देखकर पास खड़े कुछ मुस्लिम लड़के उसे बचाने गए तो उन्होंने उसे छोड़कर इस मुस्लिम लड़कों से लड़ाई शुरू कर दी.



इस बीच इस घटना की ख़बर मिलते ही फुलवारी शरीफ़ थाने की पुलिस ने मौक़े पर पहुंच कर लोगों को खदेड़ दिया. हालात बिगड़ता देख पटना ज़ोन डीआईजी शालीन, डीएम प्रतिमा वर्मा, एसएसपी विकास वैभव, एसडीओ रेयाज व बीडीओ शमशेर मल्लिक़ समेत आधा दर्जन थाने की पुलिस वहां कुछ ही देर में पहुंच गई. रैपिड एक्शन फोर्स ने भी यहां मोर्चा संभाल लिया. इसके बाद उपद्रवी पथराव करते रहें. हालांकि पुलिस ने उसी समय अपनी देखरेख में मूर्ति का विसर्जन भी करवाया.

घटनास्थल पर स्थानीय विधायक श्याम रजक भी पहुंचे और लोगों से शांति व सौहार्द बनाए रखने की अपील की.

हालांकि राकेश कुमार का इस पूरे घटनाक्रम पर मानना है कि यह पूरा मामला राजनीतिक था. बल्कि ये कह सकते हैं कि क्रिया का प्रतिक्रिया था. उनके मुताबिक़ तीन दिन पहले यहां श्याम रजक की जीत पर खूब जश्न मना था. मुसलमान लड़कों ने खूब पटाखें छोड़े थे और विरोधी दल के लड़कों को खूब चिढ़ाया था. बस वहीं बात हारने वाले दल के कार्यकर्ताओं को नागवार गुज़री. पहले तो वो शराब के नशे में आपस में ही लड़ रहे थे, लेकिन उसमें कुछ मुस्लिम लड़के घुस गए तो बस मौक़े का फायदा उठा लिया गया.


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इन सब बातों के बीच अभी यहां माहौल शांत है. अभी भी कई मूर्तियां पंडालों में हैं. उसके अलावा सड़कों पर लोग आराम से भईयादूज के मौक़े से पूजा करते दिखे.

पुलिस बल को भी काफी मात्रा में तैनात किया गया है. इलाक़े में दंगा नियंत्रण गाड़ी को घुमाया जा रहा है. पटना शहर के तमाम आला अधिकारी फिलहाल इलाक़े में घूमकर लोगों को शांति बनाए रखने की अपील करते नज़र आएं. एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक़ इस पूरे घटनाक्रम की अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है. इस संबंध में हमने थानाध्यक्ष दीवान एकराम से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने व्यस्तता के कारण फिलहाल यह कहते हुए टाल दिया कि अभी मीटिंग में हैं. बाद में इस बारे में बात करेंगे.


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हालांकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि यहां यह पहली घटना नहीं है. स्थानीय लोगों का कहना है कि हर महीने किसी न किसी बात पर यहां झगड़ा होना अब आम बात हो गई है. इसके पूर्व इसी फुलवारी शरीफ़ इलाक़े की एक मस्जिद में सुबह-सुबह एक पटाखा फेंकने का मामला प्रकाश में आया था.

दिलचस्प बात यह है कि यहां एक लड़ाई इस इलाक़े के नाम को लेकर भी है. मुस्लिम लोग इस इलाक़े का नाम ईसापुर बताते हैं, लेकिन बाकी लोगों का कहना है कि यह इशोपुर है…. खैर, नाम जो भी हो, बस यहां के लोगों पर ईसा व इशो की कृपा बनी रहे.

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