अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना: बिहार के मुसलमानों की बदहाली किसी से छिपी हुई नहीं है. इनकी बदहाली के सच को सच्चर की कमेटी रिपोर्ट भी बयान कर चुकी है. लेकिन एक सच यह है कि इस बार बिहार में मुसलमानों के जो नेता चुनाव जीतकर आए हैं, वे इस हक़ीक़त के बिल्कुल उलट नज़र आते हैं.
बिहार की 243 सीटों पर इस बार 24 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतकर आए हैं. लेकिन यदि बात बिहार के मुसलमानों के आर्थिक स्थिति की करें तो हमारे मुस्लिम जनप्रतिनिधि बिहार के मुसलमानों के आर्थिक हालात का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
आंकड़े बताते हैं कि बिहार का मुस्लिम परिवार औसतन गरीब है, तो वहीं मुसलमान विधायक औसतन करोड़पति हैं. आंकड़े यह भी बताते हैं कि एक ओर यहां आम मुसलमानों के हालात बदतर होते जा रहे हैं, वो हमारे मुस्लिम नेता दिन-प्रतिदिन अमीर होते जा रहे हैं. यानी यहां ग़रीब मुसलमानों की नुमाईंदगी अमीरों के हाथ में है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस बार जीते हुए मुस्लिम विधायकों में से 15 विधायक करोड़पति हैं, तो 9 विधायक करोड़पति बनने के क़रीब हैं. ये आंकलन खुद उनके ज़रिए इस बार के चुनाव में चुनाव आयोग को दिए उनके हलफ़नामे के आधार पर किया जा रहा है.
जीते हुए 24 विधायकों में सबसे अमीर मधुबनी के बिसफी विधानसभा सीट से चुनाव जीतने वाले फैयाज़ अहमद हैं. 2015 चुनाव में उन्होंने अपने खुद के हलफ़नामे में बताया है कि वह 10.44 करोड़ के मालिक हैं, लेकिन उससे पहले 2010 विधानसभा चुनाव में उनके पास 15.83 करोड़ रूपये थे, जबकि 2005 में वो सिर्फ़ 3.47 करोड़ के मालिक थे.
उसके बाद मुस्लिम अमीर विधायकों की फेहरिस्त में किशनगंज के विधायक डॉ. मो. जावेद का नाम आता है. डॉ. जावेद के पास 2005 में 1.16 करोड़ थे, जो 2010 में बढ़कर 1.99 करोड़ हो गए. लेकिन 2010 में विधायक बनने के बाद अब 2015 में वह 7.86 करोड़ के मालिक हैं.
तीसरे नंबर पर अररिया जिले के जोकीहाट के विधायक सरफ़राज़ आलम का नाम आता है. 2015 में वह 4.63 करोड़ के मालिक हैं. वे 2010 में 1.32 करोड़ के मालिक थे, जबकि 2005 में उनके पास सिर्फ़ 15.51 लाख का मालिकाना था.
आंकड़े यह भी बताते हैं कि कुछ मुस्लिम विधायकों की सम्पत्ति काफी तेज़ी से बढ़ी है. इसमें सबसे पहला नाम आता है शिवहर के विधायक शरफुद्दीन का. इनके पास 2005 में सिर्फ़ 16.15 लाख रूपये थे. 2010 में उनकी सम्पत्ति 51.15 लाख रूपये की हो गई. लेकिन 2015 में अब वह 4.19 करोड़ के मालिक हैं.
वहीं कुछ ऐसे विधायक भी हैं, जो पहले के मुक़ाबले काफी तेज़ी के साथ गरीब हुए हैं. 2014 में सीतामढ़ी से लोकसभा चुनाव लड़ते समय सैय्यद अबु दोजाना की सम्पत्ति 6.63 करोड़ रूपये थी. लेकिन अब 2015 में जब सुरसंड से चुनाव लड़ते वक़्त उनकी सम्पत्ति 3.74 करोड़ है.
कुछ ऐसे मुस्लिम विधायक भी हैं, जिनकी सम्पत्ति तो बढ़ी है, लेकिन सम्पत्ति के साथ-साथ उनके ऊपर कर्ज का भी इज़ाफ़ा हुआ है. रोहतास जिले के डेहरी विधानसभा के विधायक मो. इलियास हुसैन के पास 2005 में 1.14 करोड़ की सम्पत्ति थी, लेकिन उसी साल उनके उपर 2.64 करोड़ का क़र्ज़ भी था. 2010 में उनकी सम्पत्ति घटकर 92.28 लाख की हो गई, लेकिन 2010 में भी वह 2.64 करोड़ के क़र्ज़दार थे. अब 2015 में इलिसास हुसैन 1.22 करोड़ के मालिक हैं. लेकिन साथ ही 2.65 करोड़ के क़र्ज़दार भी हैं.
सबसे ग़रीब मुसलमान विधायक की बात करें तो सबसे पहला नाम आता है कटिहार के बलरामपुर विधानसभा के विधायक महबूब आलम का. इनके पास 2015 में सिर्फ़ 22.96 लाख की सम्पत्ति है, जबकि 2010 में वो 2.32 लाख के ही मालिक थे.
दरअसल, एक सचाई यह भी है कि जहां से मुस्लिम विधायकों की जीत हुई है या फिर वो बिहार का वो इलाक़ा जो मुस्लिमबहुल नज़र आता है, अमूमन बदहाल ही है. सच तो यह है कि अब तक इन इलाक़ों से जिसने भी चुनाव लड़ने का साहस किया है, उन्हें यहां के लोगों के जज़्बातों से खेलना बखूबी आता है. मुद्दों के नाम पर सिर्फ जज़्बात को उभारने वाले मुद्दे ही होते हैं. यह अलग बात है कि चुनाव जीतने के बाद विधायक सारे जज़्बातों को भूल जाते हैं.
जज़्बातों के खेल और माली हालात में हुए चमत्कार के बीच यह सवाल मुस्लिम इलाकों में अभी भी तैर रहा है कि आखिर कब इन इलाकों की बदहाली दूर होगी? आखिर क्यों मुसलमानों के नाम पर सियासत करने वाले मुसलमान या नेता समुदाय की बुनियादी दिक्कतों की कभी बात नहीं करते?
ऐसे अनगिनत सवालों के जवाब न जाने बिहार के मुसलमान कब से मांग रहे हैं, मगर चुनाव की मंडी में सियासत का इतना शोरगुल है कि इन सवालों का कोई खैर-ख्वाह नहीं. मुसलमानों के साथ भी परेशानी यह है कि देश में निरपेक्षता को बचाए रखने का जिम्मा चुनाव के समय इनके ही कंधों पर आता है. इस दरम्यान उनके और उनके इलाक़ों के मसालयल कोसों दूर चले जाते हैं.
जीतने वाले 24 मुस्लिम उम्मीदवारों के सम्पत्ति की सूची…