मख़दूमपुर विधानसभा : मांझी को मिलने वाली है कड़ी टक्कर?

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

मखदूमपुर: हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी भले ही खुद दलितों का सबसे बड़ा नेता बताते आए हो, लेकिन मखदूमपुर के ज़मीनी हालात बता रहे हैं कि यहां से मांझी के लिए चुनाव जीतना उतना आसान नहीं है, जितना बिहार के अन्य ज़िलों के लोग समझ रहे हैं.


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जीतनराम मांझी 2010 में जदयू के उम्मीदवार के तौर पर राजद के धर्मराज पासवान को 5085 मतों के अंतर से हराया था. इस बार धर्मराज तो मैदान में नहीं हैं, लेकिन राजद के ही सूबेदार दास, जीतनराम मांझी के सामने ताल ठोंक रहे हैं. कहने को तो सूबेदार दास का मांझी की तरह कोई लंबा राजनैतिक इतिहास नहीं है. वह पूर्व में बस ज़िला पार्षद रहे हैं. यानी एनडीए गठबंधन यह मानकर चल रहा है कि महागठबंधन ने काफी कमज़ोर उम्मीदवार मांझी के सामने उतारा है पर सच यह है कि इस कमज़ोर उम्मीदवार के पीछे महागठंबधन की पूरी ताक़त लगी हुई है, जो उन्हें मज़बूत बनाती दिख रही है.


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मखदूमपुर के गांवों में बसने वाली अधिकतर जनता मांझी से नाराज़ ही दिख रही है. राजकिशोर शाह कहते हैं, ‘मांझी चाहे जितनी बड़ी-बड़ी बातें कर लें, लेकिन उन्हें लोगों को यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने इस विधानसभा के लोगों के लिए किया क्या है?’ यमुना नदी मखदुमपुर से होकर गुज़रती है. बरसात में काफी पानी आ जाता है, लेकिन आज तक पानी को रोकने के लिए चेक डैम का निर्माण मांझी नहीं करा सकें. यहां सबसे बड़ी समस्या सिंचाई की है, लेकिन उन्होंने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया.


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हराउत गांव में रहने वाले लोगों की भी शिकायत है कि मांझी ने विकास का कोई काम उनके गांव में नहीं किया है. सच तो विकास के नाम उन्हें धोखा दिया गया है. हरेन्द्र बताते हैं, ‘मीडिया में गरीबों-दलितों के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन हमारे लिए उन्होंने किया क्या है. मुसहरों के लिए ही वे बता दें कि उनसे उनका कुछ भला हुआ हो.’

मनीष की बातें भी कुछ ऐसी ही हैं. मनीष कुमार कहते हैं कि जो आदमी मुख्यमंत्री होते हुए भी हमारे गांव के लिए कुछ नहीं कर सका, वो अब विधायक बनकर क्या करेगा. हराउत गांव के ज्यादातर युवा मांझी से नाराज़ ही नज़र आ रहे थे. इस गांव में मुख्यतः मुसहर, पासवान, दांगी, जाटव और कुछ संख्या में सवर्ण जातियां हैं. धरनई गांव निवासी मुकेश भी बताते हैं कि बराबर पहाड़ी इलाके के लोगों को सूखे से जूझना पड़ता है. गर्मी के दिनों में पेयजल भी एक बड़ी समस्या है. इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया है. हालांकि उदेरास्थान में बराज का काम चल रहा है, लेकिन बराज का पानी अभी तक इलाक़े में नहीं पहुंच पाया है.

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मांझी ने अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में आवासीय स्कूल बनाने का वादा किया था, मगर उनके विधानसभा क्षेत्र में ही आवासीय स्कूल के वादे को पूरा नहीं किया गया. यहां आवासीय स्कूल के नाम पर सिर्फ 6 महीने से बोर्ड ही टंगा हुआ दिख रहा है. एक बार फिर मांझी ने अपने घोषणापत्र में आवसीय स्कूल के वादे को शामिल किया है.

लोगों का गुस्सा दरअसल केन्द्र से भी है. जहानाबाद के सांसद अरुण शर्मा ने इसी हराउत गांव को गोद लिया था. इसके बावजूद गांव में आज तक कोई विकास का कोई खास कार्य नहीं हुआ. यहां की सड़क हो या बिजली हर स्तर में गांव की हालात ख़राब है. सांसद का गुस्सा यहां के लोग इस बार मांझी पर उतारने की सोच रहे हैं.


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अगर मखदूमपुर विधानसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो ये क्षेत्र यादव, ब्रह्मर्षि और कुशवाहा बहुल क्षेत्र माना जाता है. दलितो-महादलितों की भी एक अच्छी-खासी संख्या है, जिसमें मुसहर समाज के वोटर अधिक हैं. ऐसे में यह समीकरण भी इस बार महागठबंधन के के लिए अधिक फायदेमंद दिख रहा है. यादवों का ‘मत’भेद स्पष्ट नहीं है. कुशवाहा जाति को अपने पक्ष में करने की नीयत से बगल के दोनों सीटों पर महागठबंधन ने कुशवाहा जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है और माना जा रहा है कि इसका इस राजद उम्मीदवार को ज़रूर मिलेगा. खैर, भविष्य में क्या होगा. यह तो 8 नवम्बर को आने वाले नतीजे ही बताएंगे. मगर फिलहाल इतना तो तय है कि यहां मांझी को कांटे की टक्कर मिलने वाली है.

यहां मतदान दूसरे चरण यानी 16 अक्टूबर को है. 2010 विधानसभा में यहां मतदान का प्रतिशत 49.19 रहा है, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार यहां मतदान के प्रतिशत में काफी इज़ाफ़ा होने वाला है. यहां 13 उम्मीदवार अपने क़िस्मत की आज़माईश कर रहे हैं.

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