नीतीश सरकार दंगा पीड़ितों के न्याय के लिए गंभीर नहीं – दीपंकर

By TCN News,

पटना: एआइपीएफ भागलपुर द्वारा आज पटना के आइएमए हॉल में ‘25 साल बाद भी इंसाफ से वंचित भागलपुर’ रिपोर्ट का लोकार्पण किया गया. इस मौके पर भाकपा-माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, सेंटर फार स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म के निदेशक इरफ़ान इंजीनियर, रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट शोएब अहमद, इंक़लाबी मुस्लिम कांफ्रेस के अध्यक्ष मो. सलीम आदि ने रिपोर्ट का लोकार्पण किया.


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रिपोर्ट पर अपने विचार व्यक्त करते हुए माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि भागलपुर दंगों के बाद से जो 25 वर्ष का अरसा पार हो चुका है, उनमें से पहले 15 वर्षों के दौरान बिहार में लालू प्रसाद की सरकार रही, जिसका नारा था –सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता. जबकि अंतिम दस साल के दौरान नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ और ‘न्याय के साथ विकास’ का दौर चला. लेकिन भागलपुर के दंगा-पीडि़तों के लिये पच्चीस वर्षों का यह लंबा समय विश्वासघात, यातना और अन्याय का दौर बना रहा है.

उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार ने 2006 में गठित आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा सत्र के अंतिम दिन पेश किया, इससे सरकार की मंशा साफ-साफ़ ज़ाहिर होती है कि वह भागलपुर दंगा पीडि़तों को न्याय दिलाने के मामले में कहीं से गंभीर नहीं है. यदि 25 साल में दंगा पीडि़तों को न्याय नहीं मिलता तो धर्मनिरपेक्षता में बचता क्या है?

उन्होंने कहा कि 1995 और 2006 में गठित दोनों आयोगों ने आश्चर्यजनक रूप से दंगों के लिये – जिनमें सैकड़ों लोगों की जानें गईं और हज़ारों परिवार तबाह हो गये – न सिर्फ प्रशासन की जवाबदेही तय करने से इन्कार किया गया है, बल्कि संघ परिवार द्वारा की गई ज़हरीली और आक्रामक सांप्रदायिक गोलबंदी के विशिष्ट संदर्भ को भी आश्चर्यजनक रूप से अनदेखा कर दिया है.

संगोष्ठी में इरफ़ान इंजीनियर ने कहा कि देश में समस्याओं की मूल जड़ आरएसएस है. उसका निशाना केवल मुसलमान नहीं, बल्कि दलित भी हैं. हर दंगे के बाद भाजपा को चुनावी फायदा होता गया लेकिन अपनी विचारधारा को आरएसएस केवल भाजपा के ही ज़रिए ही नहीं, अन्य पार्टियों द्वारा भी फैलाने का कार्य कर रही है. वे भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का स्वप्न देखते हैं, लेकिन हिन्दू राष्ट्र में दलितों के लिए, अकलियतों के लिए कहां जगह होगी. उन्होंने आगे प्रश्न किया कि क्या इस देश में मनुस्मृति के कानून को लाना चाहते हैं. आज भारत में सांप्रदायिक उन्माद की घटनायें बढ़ी हैं. बिहार में भी हाल के दिनों में सांप्रदायिक उन्माद की घटनायें काफी तीव्र गति से बढ़ रही हैं.

रिहाई मंच के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष शोएब अहमद ने कहा कि सरकार आरएसएस के हाथों खेल रही है और उसके सामने आत्मसर्पण कर दिया है. हाशिमपुरा से लेकर भागलपुर तक अकलियतों के साथ जुल्म किया गया, कांग्रेसी शासन से लेकर भाजपा शासन में भी उनके साथ केवल धोखा हुआ है.

इंकलाबी मुस्लिम कांफ्रेस के सदर मो. सलीम ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दंगों की सियासत करने वाली ताकतों को जोरदार ढंग से सबक़ सिखाने की ज़रूरत है. जम्हूरियत की रूह इंसाफ़ है, इंसाफ़ देने में हमारी सरकारें न केवल नाकाम रहीं बल्कि उन्होंने पीडि़तों के खिलाफ़ साजिशें भी रचीं.

रिपोर्ट के लेखक शरद जायसवाल ने विस्तार से बताया कि सरकारों द्वारा गठित आयोगों ने भागलपुर दंगे की वास्तविकता को छुपाने का ही कार्य किया है. दंगे में लगभग 2000 लोगों के मारे जाने की हमें ख़बर मिली लेकिन सरकारी आयोग 1 हजार से उपर नहीं जाते. दंगे के बाद मुसलमानों के आर्थिक संसाधनों, जमीन, सिल्क उ़द्योग पर कैसे दूसरे लोगों का कब्जा हो गया, इसे भी हमने अपनी रिपोर्ट में पेश किया है. दंगा पीडि़तों की स्थिति आज भी बद से बदतर है.

स्पष्ट रहे कि शरद जायसवाल के नेतृत्व में महीनों के अथक परिश्रम के बाद ही इस रिपोर्ट केा अंतिम रूप दिया जा सका है. आयोजित लोकार्पण व संगोष्ठी में बड़ी संख्या में भागलपुर दंगा पीडि़तों ने भी भाग लिया.

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