सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी: केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल को नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार ने कुछ दिनों पहले ही सरकार में केन्द्रीय मंत्री का दर्जा दिया था. लेकिन ऐसा लग रहा है कि यूपी विधानसभा चुनावों में कुर्मी वोटों को साधने की नीयत से खेला गया भाजपा का यह दांव खाली जाता दिख रहा है.
खबर है कि चुनाव आयोग ने सोनेलाल पटेल की पार्टी ‘अपना दल’ को अमान्य घोषित कर दिया है. इसके किसी भी प्रत्याशी द्वारा भरा जाने वाला फॉर्म ‘ए’ व फॉर्म ‘बी’ आयोग द्वारा स्वीकार नहीं किया जाएगा.
ज्ञात हो कि लोकसभा चुनावों के बाद अपना दल दो गुटों में बंट गया था. एक गुट संस्थापक सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल का था तो दूसरा गुट अनुप्रिया पटेल का था. पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी की बढ़ती पकड़ को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों में गठबंधन को ध्यान में रखते हुए अनुप्रिया पटेल को केन्द्रीय मंत्री का पद दे दिया.
अनुप्रिया पटेल के मंत्री बनने के बाद उनकी और उनकी माँ कृष्णा पटेल में दूरियां और भी बढ़ गयीं. अपना दल के कृष्णा पटेल गुट ने यूपी चुनावों के मद्द्देनाज़र कांग्रेस और सपा के साथ गठबंधन के संकेत देने शुरू किए तो अनुप्रिया गुट की हालत कमज़ोर हो गयी.
चुनाव आयोग ने पार्टी के अन्दर मौजूद इस पारिवारिक कलह को देखते हुए यह हालिया निर्णय लिया है. इस फैसले से कृष्णा पटेल गुट सकते में है, जबकि अनुप्रिया गुट ने ख़ुशी ज़ाहिर की है. अनुप्रिया पटेल के नेतृत्त्व में चल रहे अपना दल को अपना दल(स) के नाम से जाना जा रहा है.
अनुप्रिया गुट के प्रवक्ता बृजेश सिंह ने कहा है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अनुप्रिया पटेल को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष माना है. कृष्णा पटेल गुट किसी भी व्यक्ति को टिकट दे रहा था, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच रहा था. ऐसे में यह फैसला स्वागतयोग्य है.
अनुप्रिया पटेल भले ही केन्द्रीय मंत्री बन गयी हों, लेकिन जमीनी स्तर पर देखें तो अभी भी कृष्णा पटेल का गुट कुर्मी मतदाताओं में ज्यादा लोकप्रिय है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कृष्णा पटेल गुट ने सोनेलाल पटेल के नाम को भरसक साथ लेकर चलने का काम किया, वहीँ इसके उलट अनुप्रिया पटेल गुट ने भाजपा के साथ जाकर अपना रास्ता बुलंद करना चाहा.
ऐसे में इस मामले में यदि कोई स्पष्ट स्थिति नहीं बन पाती है तो अपना दल के वोटों के बिखर जाने के पूरे आसार बने हुए हैं. बसपा को पछाड़ने की नीयत से जिस अपना दल की नींव रखी गयी, ऐसा माना जा रहा है कि अपना दल के इस बिखराव के बाद कुर्मी वोटों के बसपा में जाने की संभावना सबसे अधिक है. लेकिन साथ में यह भी माना जा रहा है कि यदि अनुप्रिया गुट ने जमीनी स्तर पर लोगों को जोड़ने का काम किया तो समीकरण पलट भी सकते हैं.
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