फहमिना हुसैन, TwoCircles.net
डेहरी ऑन सोन(बिहार): मानसिक स्वास्थ्य और उसे लेकर जानकारियां अभी भी समाज में हाशिये पर है. लोगों द्वारा मानसिक रोगों को महज़ ‘पागलपन’ मानकर दरकिनार किया जाता है. साथ ही इस समस्या की गंभीरता कम आंकी जाती है. इन्हीं बातों के बीच डॉ. उदय कुमार सिन्हा का नाम शामिल है, जिन्होंने बिहार के एक छोटे-से शहर में मानसिक रोगों और उनके इलाज के लिए एक जनसुलभ माहौल तैयार किया है. ऐसा माहौल जिसमें मानसिक रोगों के खर्चीले इलाज और महंगी जांच और दवाओं की सुविधा मुफ्त में उपलब्ध है.
डॉ. उदय मानसिक रोगों के विशेषज्ञ हैं. उदय कुमार का नाम रोहतास के उन कुछ चुनिंदा नामों में एक हैं, जिनके कामों की उपलब्धि शहर के शोर में सिमटी हुई है. उदय कुमार डेहरी ऑन सोन में ही पैदा हुए. यहीं सरकारी स्कूल से इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ली, इसके बाद आगे की पढाई उन्होंने रांची मेडिकल कॉलेज से की.
वर्तमान में डेहरी ऑन सोन में उनका अपना निजी अस्पताल है, जहां रोज़ाना सौ से दो सौ मरीज़ इलाज के लिए आते हैं. बड़ी बात यह है कि इन मरीजों में अधिकतर ऐसे मरीज़ शामिल होते हैं, जिनका यहां मुफ्त इलाज किया जाता है. डॉ. उदय आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए जांच के साथ दवाएं भी मुफ्त में उपलब्ध कराते हैं. कई बार मरीज़ पहली मीटिंग के बाद मरीज़ दोबारा नहीं आते हैं. अधिकांश मामलों में ऐसे मरीजों को आर्थिक दिक्कत होती है. ऐसे में हमेशा ऐसे मरीजों की काउंसिलिंग की जाती है. यदि वे इलाज में सक्षम नहीं हैं, तो महज़ नामभर की राशि पर साल भर की दवाएं उपलब्ध करायी जाती हैं.
उदय कुमार बताते हैं कि मानसिक रोगियों को सामाजिक रूप से भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. शिक्षा, रोजगार और शादी ब्याह के साथ ही मनोरोगियों की सामाजिक स्वीकार्यता भी एक बड़ा प्रश्न है. उन्हें हर स्तर पर भेदभाव का दंश झेलना होता है. मानसिक बीमारियों के चलते अन्य सामाजिक समस्याएं भी उनके असहाय जीवन को घेर लेती हैं. जैसे परिवारों का टूटना, बेरोजगारी और व्यसनों को बढ़ावा. ये सारी बातें अंतत: समाज की पूरी रूपरेखा पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं. मनोरोग से अंधविश्वास की सोच को भी बढ़ावा मिलता है.
वे अपने यहां आने वाले चुनिन्दा मामलों का उदाहरण देते हुए बताते हैं, ‘ये मामला मेरे लिए बहुत गंभीर था. एक महिला अपनी पडोसी के साथ आई थी. उसका पति उसको पागल और उस पर भूत का साया बताकर दूसरी शादी करना चाहता था. वह महिला एक बाबा के पास भी गई थी, लेकिन बाबा ने भूत भगाने के उससे ५० हज़ार मांगे थे.’ वे आगे बताते हैं, ‘पति के साथ न होने पर वह महिला आर्थिक रूप से कमज़ोर थी. इलाज के लिए मायके और ससुराल दोनों ही पक्षों ने इनकार कर दिया था. उसने अपनी पड़ोस में रहने वाली महिला से सुना कि जो इलाज का खर्च नहीं उठा पाते हैं, उन्हें हमारे यहां नि:शुल्क सेवाएं भी दी जाती हैं. उनका हमारे यहां निःशुल्क इलाज हुआ. अब वे बिलकुल ठीक हैं और वर्तमान में टीचर की नौकरी कर रही हैं.’
यही नहीं, उदय कुमार ने ऐसे मामलों का भी निबटारा किया है, जिनमें मरीज़ हिंसा का शिकार होता है, बाद में आरोपी के प्रति उसके मन में डर घर कर जाता है. साफ़ शब्दों में मरीज़ रोग का नहीं, डर और हिंसा का शिकार होता है. ऐसे मामले अक्सर गरीब परिवारों के होते हैं और उनके इलाज उदय कुमार मुफ्त में किया करते हैं.
उदय कुमार से इलाज करवाने वाले मरीजों में ज्यादातर महिलाएं शामिल हैं. ये महिलाएं किसी न किसी मानसिक रोग या डिप्रेशन की शिकार होती हैं. उदय कुमार बताते हैं, ‘पहले तो उनके घर वाले इस तरह के मामलों में झाड़फूंक का ही सहारा लेते हैं, जब मामला ज्यादा बिगड़ जाता है तब वे मेरे पास आते हैं. कितनी बार तो महिलाएं इलाज़ के दौरान ही आत्महत्या करने की कोशिश करती हैं, ऐसे मामलों को सम्हालना थोड़ा मुश्किल होता है.’ इनमें अधिकतर महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं. वे अपने मायके और ससुराल दोनों से छोड़े जाने के बाद बिना पैसों के इलाज की आस लगाए रहती हैं. उदय कुमार के होते हुए कम से कम डेहरी में उनकी आस नहीं टूटती है.
उदय कुमार बताते हैं कि खासतौर से सीज़ोफ्रेनिया(एक प्रकार का पागलपन जिसमें नकारात्मक विचार, कुंठा, लंबे समय से बेरोजगारी, बेगारी के लिए मनोभाव और व्यवहार आते रहते हैं) के शिकार मरीजों का सामाजिक बहिष्करण बहुत तेज़ी से हुआ है. इस बीमारी से पीड़ित लोगों का जीवन बहुत लंबा नहीं होता और यह महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में अधिक होता है. लेकिन शुरूआती दौर में ही मरीज़ का उपचार करा लिया जाए तो दवाओं के माध्यम से ठीक होने की संभावना रहती है.
सरकार की पहल और योजनाओं के बारे में पूछने पर डॉ. उदय बताते हैं, ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज के अनुसार भारत में आज दो करोड़ से अधिक लोग गंभीर मानसिक रोगों के शिकार हैं. इतना ही नहीं, पांच करोड़ भारतीय ऐसी मानसिक अस्वस्थता से जूझ रहे हैं, जो गंभीर तो नहीं पर आने वाले समय में भयावह रूप ले लेगी. ऐसे रोगियों की बड़ी संख्या है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती करने और पर्याप्त देखभाल और इलाज मुहैया करवाने की सख्त ज़रुरत है.’
वर्तमान समय में मानसिक रोग और रोगियों के लिए बड़े शहरों में अस्पताल और डॉक्टर तो मौजूद हैं. इन अस्पतालों में इलाज और दवाओं का खर्च कमरतोड़ है. लेकिन एकदम छोटे स्तर पर बात की जाए तो उदय कुमार जैसी पहल करने वालों की बहुत ज्यादा कमी है. डॉ. उदय कुमार सिन्हा ऐसे कुछ लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने अमेरिकन मेन्टल हॉस्पिटल के सुनहरे मौके को छोड़ डेहरी में रहकर लोगों की सेवा करने को ज्यादा ज़रूरी समझा.
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