सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
दिल्ली: पद्मभूषण और पद्मश्री जैसे सम्मानों से सम्मानित चित्रकार और पेंटर सैयद हैदर रज़ा का आज दिल्ली में निधन हो गया. सैयद हैदर रज़ा की उम्र 94 साल थी. मकबूल फ़िदा हुसैन के साथ-साथ रज़ा साहब को भारतीय कला को देश-विदेश में चर्चित कराने का श्रेय जाता है.
अपने दोस्तों और फैन्स में ‘रज़ा साहब’ का जन्म मध्य प्रदेश के एक गांव में 1922 में हुआ था. महज़ 12 साल की उम्र से रज़ा साहब ने चित्रकारी शुरू कर दी थी. उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा मध्य प्रदेश के दामोह के सरकारी विद्यालय से प्राप्त की.
इसके बाद उन्होंने नागपुर आर्ट कॉलेज से पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने साल 1947 तक मुंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स से पढ़ाई की. इसके बाद वे फ्रेंच सरकार की फेलोशिप पर तीन साल तक पेरिस में रहे और इसके बाद उन्होंने पूरे यूरोप में घूम-घूमकर पेंटिंग बनायी और तारीफें बटोरीं.
पारिवारिक तौर पर भी सैयद हैदर रज़ा ने कई मुश्किलों का सामना किया. जे.जे स्कूल के ही दिनों में उनकी माता का निधन हो गया और कॉलेज से निकलने के बाद उनके पिता भी चल बसे. देश को आज़ादी मिली तो बंटवारा भी हुआ. रज़ा साहब के बड़े भाई-बहन देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए. लेकिन रज़ा साहब ने हिन्दुस्तान में रहकर अपनी कला को साधने का बीड़ा उठाया और तमाम मुश्किलों के बीच वे कला का रास्ता तय करते रहे.
साल 1956 में फ्रेंच सरकार ने उन्हें कला का क्रिटिक अवार्ड दिया. इस अवार्ड को पाने वाले रज़ा साहब पहले गैर-फ्रांसीसी शख्स बने. पेरिस में ही अपनी रिहाईश के दौरान रज़ा साहब ने जैने मोंगिला से शादी की और फिर पेरिस में ही बस गए. कला में उनकी उपलब्धि को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 1981 में पद्मश्री से सम्मानित किया और उसी साल रज़ा साहब को ललित कला अकादमी की फेलोशिप भी मिली.
उपलब्धियों से भरे जीवन में पहली बार सूनापन तब आया जब साल 2002 में उनकी पत्नी का पेरिस में निधन हो गया. बाद में उन्हें आगे चलकर साल 2007 में पद्मभूषण और 2013 में पद्मविभूषण से नवाज़ा गया.
हिन्दी के कवि और लेखक अशोक वाजपेयी के सहयोग से रज़ा साहब ने अपनी पेंटिंग की नीलामी से मिलने वाले पैसों से ‘रज़ा फाउंडेशन’ की नीव रखी. रज़ा फाउन्डेशन की मदद से उन्होंने युवा कलाकारों और रचनाकारों की हुनर को आगे लाने के लिए फेलोशिप देने का काम किया.
रंगों के बेफ़िक्र प्रयोग के लिए मशहूर रज़ा साहब ने अपने अंतिम कुछ साल व्हीलचेयर पर बिताए लेकिन फिर भी दिल्ली स्थित अपने आवास में वे रोज पेंटिंग करते थे. आज जब कला जगह में रज़ा साहब नहीं हैं, तो भारतीय चित्रकला का एक बड़ा अध्याय ख़त्म हो गया है.