गुजरात के दलितों से कब सबक लेंगे मुसलमान

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

गुजरात के दलितों से सबक़ लीजिए. गाय की खाल उधेड़ने के नाम पर ऊंचे तबक़े की गुंडागर्दी का किस क़दर क़रारा जवाब दिया है उन्होंने. गुजरात से लेकर दिल्ली तक राजनीति की भाषा पलट दी. संसद में इस क़दर शोर हुआ कि बहरे कानों को भी आवाज़ सुनाई देने लगी. मगर मुसलमानों के हिस्से में जहां इनसे भी ज़्यादा नाइंसाफ़ियां और अत्याचार बरपे हैं, वहां अब तक किसी ने सबक़ लेने की ज़रूरत नहीं समझी है.


Support TwoCircles

अख़लाक़ का उदाहरण सामने है. अख़लाक़ की क्रूर हत्या के बाद उसका परिवार गौहत्या का मुक़दमा झेलने को भी मजबूर है. लेकिन मुस्लिम समाज के कथित रहनुमाओं के मुंह से चूं तक नहीं निकल सकी है. न जाने किस दुनिया में डूबे बैठे हैं ये लोग?

बड़ी-बड़ी मजलिसें करना और झन्नाटेदार तक़रीरें देकर तालियां बजवाना, इनका सारा काम यहीं तक सीमित रह गया है. किसी भी घटना को न फॉलोअप करना और न ही उसके अंजाम तक ले जाना, ऐसी कोई क़वायद ही नहीं की जा रही है. नतीजा यह है कि मुसलमानों पर अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहे हैं और फ़ौरी शोर-शराबे के अलावा ख़ास कुछ भी नहीं होता है.

भोली-सी मासूम गाय के नाम पर रोज़ न जाने कितने मुसलमान संघ, बजरंग दल और अब तो गौरक्षक दल के गुण्डों के हाथों पिट रहे हैं. हमने देखा है कि किस प्रकार उन्मादी भीड़ के हाथों दादरी के अख़लाक़ की हत्या कर दी गई. कैसे लातेहार में पशु व्यापारियों की हत्या कर उनके शवों को पेड़ से लटका दिया गया. किस प्रकार हिमाचल की मंडी में पशु व्यापारी की भीड़ के हाथों हत्या कर दी गई. और फिर पूरी दुनिया ने राजस्थान में एक पशु व्यापारी की ‘राष्ट्रभक्त’ भीड़ के हाथों पिटाई की तस्वीर भी देखी है. आज के दिन भी यह देख रहे हैं कि मध्य प्रदेश के मंदसौर में गौमांस ले जाने के आरोप में दो महिलाओं की किस तरह से खुलेआम पिटाई की गई.

गंभीर बात यह है कि ऐसी सेनाओं के हाथ से पिटने के बाद जेल व मुक़दमों की कार्रवाई भी मुसलमानों को ही झेलना पड़ती है. सबसे चिंता की बात यह है कि ऐसी घटना देश के किसी न किसी इलाक़े में हर दिन घटित हो रही है. यानी ‘गौ-रक्षा’ के नाम पर हिन्दू कट्टरपंथी संगठनों की गुंडागर्दी लगातार जारी है. लेकिन स्थानीय पुलिस घटनास्थल पर होते हुए भी मूकदर्शक बनी रहती है. बल्कि ज़्यादातर पुलिस भी इन गुंडों के साथ पिटाई करते नज़र आती है. जैसे कि इससे पहले कई तस्वीरों में बजरंग दल के ‘गुंडों’ के साथ युवक को बेल्ट से पीटते देख चुके हैं.

हैरानी बात है कि मुस्लिमों के खिलाफ यह गुंडागर्दी जारी रही और आज तक मुस्लिम रहनुमाओं के मुंह से विरोध का एक लफ़्ज़ भी नहीं निकला. लेकिन वहीं जब यह मामला दक्षिणी गुजरात के ऊना में दलितों के साथ हुआ तो उन्होंने दिखा दिया कि गौ-रक्षा के नाम पर यह गुंडागर्दी किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे.

गुजरात के इन दलितों ने दर्जनों मरी हुई गायों को जिला कलक्टर के दफ़्तर के बाहर और सड़कों पर फेंककर विरोध का एक नया इतिहास लिख दिया. सच तो यह है कि हिंदुओं की पवित्र गाय, चाहे वह मरी हुई ही क्यों न हो, का अपमान करने की जुर्रत इससे पहले शायद ही किसी ने की थी.

यह विरोध का एक अलग तरीक़ा था, इसे शांतिपूर्ण कहा जा सकता है तो उग्र भी कहा जा सकता है. इसे भारत के दलित आंदोलन में एक नए आत्मविश्वास के तौर पर देखा जा रहा है. सबसे हैरानी बात यह है कि आज मध्यप्रदेश की घटना पर संसद में बोलने वाली भी एक दलित ही हैं. किसी मुस्लिम नेता ने इस पर पहले मुंह खोलने की जुर्रत महसूस नहीं की.

सच पूछे तो मुसलमान शिक्षा और रोज़गार दोनों ही स्थितियों में बेहद पिछड़े हैं. झूठे मुक़दमों में बेगुनाह युवकों को फंसाने का एक अच्छा-खासा सिलसिला है. इन सबके बावजूद भी अगर क़ौम के लीडर और ज़िम्मेदार लोग अपनी आंखें बंद किए बैठे हैं तो यह मान लीजिए कि वे भी इस साज़िश में शामिल हैं. ऐसे रंगे-पुते चेहरों से समय रहते ख़बरदार हो जाने और अपने मुद्दों व अधिकारों के प्रति समय रहते सजग हो जाने की सख़्त ज़रूरत है.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE