सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी: बनारस के जगतगंज मोहल्ले के एक कोने में एक सुनार की दुकान है. दुकान का नाम है ‘श्रीराम ज्वेलर्स’. औसत से भी निचले दर्जे की इस दुकान के मालिक रामजी गर्ग हैं. रामजी गर्ग की उपलब्धि एक गरीब सुनार होने की नहीं, एक बड़ा पशु-सेवक होने की है.
रामजी गर्ग बनारस के उन कुछ चुनिंदा नामों में से एक हैं, जिनके कामों की उपलब्धि शहर के शोर में सिमटी हुई है. 63 साल के रामजी बनारस में ही पैदा हुए. यहां इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ली, इसके बाद आईटीआई से गोल्डस्मिथ की ट्रेनिंग ली और यहां दुकान खोलकर बैठ गए. चालीस साल से इस धंधे में जुटे हुए रामजी के जीवन में 25 साल पहले ऐसा वाकया हुआ, जिसने रामजी को जीवन का नया आधार दिया.
उस समय उनके मोहल्ले में एक चोटिल सांड आया. रामजी बताते हैं, ‘उसके चारों पैर घाव से पके हुए थे. उसके नाक और कान में से कीड़े निकल रहे थे. उसी समय मैंने उसे पानी पिलाया और उसकी मरहम पट्टी की.’ वे आगे बताते हैं, ‘उस सांड को उस दिन छोड़ देता तो शायद उसकी सहायता का फल नहीं मिलता. मैंने उसे एक महीने तक अपने पास रखा. मैं रोज़ उसके घावों की मरहम-पट्टी करता था और उसे चारा-पानी देता था. एक महीने में वह एकदम ठीक हो गया तो मैंने उसे छोड़ दिया. बस उसी दिन से सिलसिला चल निकला जो आज भी जारी है.’
घायल सांड का इलाज करने के बाद रामजी गर्ग को एक गधा मिला, उसके पैरों में भी घाव थे. उसे दुरुस्त करने के बाद उन्हें दो सांड मिले, जिनकी पीठ को कुछ फेंके जाने से घाव हो गए थे, जो सड़ने लगे थे. रामजी ने उनका भी इलाज किया. रामजी कहते हैं, ‘पहले मैं सुबह पहला काम अपना धंधा जमाने के लिए करता था, फिर उस समय से मेरा पहला काम घायल जानवरों की खोज और उनकी देखभाल में गुजरने लगा.’
वे कहते हैं, ‘यह देखकर अच्छा लगता है कि इन जानवरों को मेरी मेहनत और मेरे समय से आराम मिलता है.’
रामजी बनारस से लगभग 10 किलोमीटर दूर रहते हैं. बनारस-चंदौली बॉर्डर पर पड़ाव नाम की जगह है, जो गंगा के ठीक किनारे है. यहां रामजी गर्ग ने एक छोटा-सा आश्रम बनवाया हुआ है, नाम है ‘बेसहारा पीड़ित पशु-पक्षी एवं जनसेवा समिति’. इतने लम्बे नाम के बारे में हंसकर रामजी बताते हैं, ‘कोई नाम रखना था, तो यही रख लिया.’
एक टीन की छत के आसरे में रामजी गर्ग और उनका दस लोगों का परिवार रहता है और ठीक बगल में प्लास्टिक और बोरियों की छत के आसरे में रामजी के जानवर. रामजी के पास कितने जानवर हैं, इसकी संख्या उन्हें नहीं मालूम. बोलते हैं, ‘अरे एक सांड है, दो गाय, एक बछड़ा….अरे बहुत ज्यादा हैं. अधिकतर तो अब आसरे में नहीं रहते हैं. मैंने बंदरों का इलाज किया है, गधों का किया है. कुत्तों, बिल्लियों का भी किया. सब हैं. दिनभर इधर-उधर घूमते रहते हैं. जो मेरे पास कभी नहीं आए, वो सब भी मेरे जानवर हैं.’
बनारस विकास की दौड़ में अंधा होता शहर है. प्रधानमंत्री यहां के सांसद हैं. शहर को क्योतो बनाने की संभावनाएं रोज़ दम तोड़ रही हैं और आवारा पशुओं और बेसहारा लोगों के लिए चीज़ें रोजाना बदतर होती जा रही हैं. इन लोगों के लिए रामजी गर्ग और अमन यादव जैसे लोग किसी सहारे की तरह है. अमन यादव के बारे में आप पहले भी पढ़ चुके हैं.बीस साल के लड़के का सत्याग्रह
बहरहाल, रामजी गर्ग अपनी दिनचर्या के बारे में बताते हैं, ‘सुबह साढ़े चार तक उठ जाता हूं. जानवरों को खाना, मरहम पट्टी करने के बाद धंधा शुरू करने के लिए तैयार हो जाता हूं. शहर के कई लोगों के पास मेरे नंबर हैं. घर से दुकान तक के रास्ते में पड़ने वाले हरेक जानवर को ध्यान से देखते हुए जाता हूं.’ रामजी के पास बेहद पुरानी स्कूटर है. इसकी डिग्गी में एक सात मीटर लम्बी रस्सी, एक पानी की खाली बोतल और मरहम पट्टी के सामान भरे हैं. इसे दिखाते हुए कहते हैं, ‘जहां कोई घायल और बीमार जानवर दिखता है, ये औजार बाहर निकल जाते हैं. रस्सी से जानवर को पकड़ता हूं और आसपास के किसी घर से बोतल में पानी मांग लेता हूं. फिर उसका उपचार शुरू कर देता हूं. बेहद खराब स्थिति में पड़े जानवर को अपने आसरे ले जाता हूं और यदि घाव कम है तो वहीँ इलाज करता हूं, लेकिन उसके पास तब तक जाता हूं, जब तक बिलकुल ठीक न हो जाए.’
रामजी बड़े रोचक तरीके से जानवर पकड़ने के तरीके बताते हैं. वे कहते हैं, ‘एक तो जानवर घायल और उस पर से चलने-फिरने से परेशान. वो इलाज क्यों कराना चाहेगा, पकड़ में क्यों आना चाहेगा?’ तकनीक के बारे में बताते हैं, ‘यही रस्सी मेरा हथियार है. गाय, सांड और भैंस को तो गर्दन और पैर में बांधकर बैठा देता हूं, फिर मरहम-पट्टी करने तक बांधे रखता हूं. मुश्किल दूसरे जानवरों को लेकर होती है. गधा लात मारता है तो उसके सिर के बीच का बालों का गुच्छा पकड़ता हूं तो वह काबू में आ जाता है. बंदर को चुपके से इलाज के लिए पकड़ना पड़ता है. कुत्ते और बिल्ली को भोजन देता हूं तो वे खुद आ जाते हैं.’
वे हंसते हुए बताते हैं, ‘मेरे इलाज के बाद ठीक हो गए कुछ जानवर तो मुझे ही देखकर भागते हैं कि मैं फिर से उनके साथ कुश्ती न करने लगूं.’ रामजी की पुरानी तस्वीरों में वे बाबा की तरह बड़ी दाढ़ी और बड़े बाल रखे हुए हैं. लेकिन वर्तमान में उनके दाढ़ी-बाल छोटे हैं, जिसके बारे में वे बताते हैं, ‘पशुओं की सेवा करते समय दाढ़ी बाल परेशान करते थे तो हटा दिया.’
वे बताते हैं, ‘कई लोगों के पास मेरा नंबर है. वे मुझे फोन करके बताते हैं कि यहां ये जानवर घायल पड़ा हुआ है, मैं वहां जाता हूं और उनका इलाज करता हूं.’
रामजी गर्ग और जानवरों के साथ-साथ घायल आदमियों की भी सेवा करते हैं. लेकिन यह विडंबना ही है कि रामजी गर्ग से सहायता पाने वालों में बेज़ुबान जानवर ज्यादा हैं और आदमी कम.
जानवरों के चारे, मरहम-पट्टी में काफी पैसे लगते हैं. रामजी की दुकान ऐसी जो चलती नहीं है. रामजी से हमारी मुलाक़ात दोपहर के तीन बजे हुई और तब तक उनकी बोहनी(यानी पहली बिक्री) भी नहीं हुई थी. इस छोटी-सी दुकान में गहने नहीं हैं. देवी-देवताओं की तस्वीर है, रामजी को मिले कुछ सम्मान हैं और दीवार पर उनके काम में आने वाले औजार हैं. यहीं से जो पैसा मिलता है, उससे रामजी गर्ग को घर भी चलाना है और जानवरों की सेवा भी करनी है. वे कहते हैं, ‘सबसे पहले जानवरों की सेवा. घर का काम चल जाएगा. कोई कभी सौ-पचास रूपए दे गया तो ठीक है, लेकिन मैं मांगने नहीं जाता. अपने दम पर करना है और मरते दम तक करना है.’
रामजी की समस्याएं हैं. राजनीतिक पार्टियां उन्हें अपनी ओर खींचने की जुगत में रहती हैं. उन्हें ‘गौ-सेवक’ का तमगा दिया जाता है और उस तमगे से लाभ उठाने की कोशिश की जाती है. वे कहते हैं, ‘सिर्फ गाय की सेवा तो करता नहीं, सभी की करता हूं. कहना है तो सिर्फ सेवक कहो.’ उन्हें लगता है कि उनके बाद इस काम को कोई नहीं करेगा. उनके बेटे-बेटियां उनका साथ देते हैं लेकिन वे फिर भी चिंतित हैं.
उनकी दुकान के बाहर पानी से भरी नाद रखी है. बात के बीच में एक सांड आता है और नाद से पानी पीकर चला जाता है. वे कहते हैं, ‘गाय दूध देती है. पैसा मिलता है. लोगों के बीच गाय का ही महत्त्व है इसीलिए गाय की सेवा-सत्कार सब करेंगे. सांड़ों को कौन प्यार करेगा. बछड़ा पैदा होने के बाद ही उसे घर से निकाल दिया जाता है. गधा कौन पालता है? बंदर? या सड़क का कुत्ता और बिल्ली ही कौन पाल लेता है?’
‘मेरा एक ही ध्येय है. कुछ न कर सकूं तो इन जानवरों को निरोग रख सकूं. उन्हें चैन की ज़िन्दगी दे सकूं. बाकी वे खाएं-पिएं तो क्या दिक्कत है?’, ये कहते हुए रामजी गर्ग मानवता से एक बेहद छोटी-सी अपील करते हैं. वे कहते हैं, ‘कुछ मत करिए, बस घर के बाहर और छत पर जानवरों और चिड़िया-चुनमुन के लिए पानी रख दीजिए. वही आपकी हिस्सेदारी है.’
Related: