TwoCircles.net Staff Reporter
इलाहाबाद: सूचना का अधिकार अधिनियम जब लोगों के हाथ में आया तो लोगों को लगा कि इससे समाज के सभी वर्गों को सूचना प्राप्त करने में सहूलियत होगी, साथ ही साथ लोगों का यह भी सोचना था कि सूचना प्राप्त करने की प्रक्रिया में उनके धर्म और उनकी जाति किसी प्रकार की बाधा नहीं बनेगी.
लेकिन इलाहाबाद से हाल में ही सामने आया मामला इस अधिनियम की पहुँच की कुछ और ही तस्वीर पेश करता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के मोहल्ले गाजीपुर के रहने वाले शम्स तबरेज़ ने जब अपनी नियुक्ति प्रक्रिया के सन्दर्भ में कुछ जानकारी मांगनी चाही तो इलाहाबाद सीआरपीएफ के जनसूचना अधिकारी डीके त्रिपाठी ने कहा कि चूंकि शम्स इस्लाम से ताल्लुक रखते हैं – जो आतंकियों का धर्म है – इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से आपको सूचना नहीं दी जा रही है.
शम्स तबरेज़ ने सीआरपीएफ के भर्ती प्रक्रिया में हिस्सा लिया था. बकौल शम्स, सारे टेस्ट पास करने के बाद मेडिकल टेस्ट में वे सफल नहीं हो सके. शम्स इस परिणाम को लेकर संतुष्ट नहीं थे तो उन्होंने इसे लेकर इलाहाबाद सीआरपीएफ में एक आरटीआई दायर कर दी. उन्होंने मेडिकल जांच के रिपोर्ट की सत्यापित प्रति मांगी थी.
इस आरटीआई आवेदन के जवाब में उन्हें 4 फरवरी को इलाहाबाद सीआरपीएफ के ग्रुप ज़ोन के केन्द्रीय जनसूचना अधिकारी डीके त्रिपाठी की ओर से जवाब मिला, जिसकी बातें पढ़कर कोई भी चौंक सकता है.
जनसूचना अधिकारी डीके त्रिपाठी ने लिखा – आपको अवगत कराया जाता है कि आप मुस्लिम समुदाय से सम्बंधित हैं जो आतंकियों का धर्म है अतः जन सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के सेक्शन 8(1)(क) के तहत सुरक्षा कारणों से सूचना/ दस्तावेज़ नहीं दिया जा सकता.
इसके अलावा शम्स को यह मेडिकल जांच की प्रति उपलब्ध कराने से मना कर दिया गया, जबकि कानूनन शम्स तबरेज़ को यह अधिकार है कि वे जांच की प्रति हासिल करें. प्रश्न यह भी है कि शम्स का मुस्लिम होना क्यों इस देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा है? और यह भी कि एक मेडिकल सर्टिफिकेट मुहैया कराया जाना क्यों देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा है? इसके बाद इलाहाबाद सीआरपीएफ से जनसूचना विभाग से संपर्क साधने की कोशिश की गयी जो असफल रही.
सीआरपीएफ की इस हरकत से देश के सुरक्षा बलों में पारदर्शिता की सचाई सामने आ जाती है. हाशिमपुरा काण्ड के बाद से सीआरपीएफ़ पर अल्पसंख्यक विरोधी होने के आरोप लगाए जाते रहे हैं और शम्स तबरेज़ के साथ हुआ यह वाकया इस आरोप के सत्यापन का एक और अध्याय लगता है.