यूपीएससी में 267वीं रैंक प्राप्त फरहा हुसैन से बातचीत

फहमिना हुसैन, TwoCircles.net

दिल्ली: जब कुछ कर दिखाने का जज़्बा हो और इरादे बुलंद हों, तो कठिन हालात में भी राहें बनने लगती हैं. इस साल संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में अव्वल नंबरों से पास हुईं फरहा हुसैन पर ये बातें बेहद सटीक बैठती हैं. साल 2015 के कल आए नतीजों में फरहा ने 267वीं रैंक हासिल की है.


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उनकी इस कामयाबी के मौके पर TwoCircles.net ने उनसे बातचीत की, जिसमें उन्होंने अपनी सफलता के कुछ सूत्र हमसे साझा किये.

अपनी सफलता पर ख़ुशी दर्ज करते हुए फरहा बताती हैं, ‘मेरी इस सफलता पर न केवल मेरा बल्कि मेरे परिवार और समाज का सपना पूरा हुआ है. मेरा मानना है कि कोई भी चीज असंभव नहीं है. मेहनत, लगन और ईमानदारी के साथ-साथ यदि दिल में कामयाबी हासिल करने का जज्बा भी हो तो मंजिलें खुद चल कर आती हैं.’

फरहा हुसैन का जन्म अजमेर के एक नौकरशाह परिवार में हुआ था. फरहा हुसैन के पिता खुद एक आईएएस अफसर हैं. फरहा की प्राइमरी से लेकर कक्षा 12 तक की पढ़ाई उन्होंने अजमेर से ही की. 12वीं के बाद वे मुंबई के लॉ कॉलेज में आ गयीं. उसके बाद उन्होंने भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा दी, जिसमें उन्हें सफलता हासिल हुई.

सिविल सर्विस की तैयारी और पढाई के संघर्ष के विषय में पूछने पर फरहा बताती हैं, ‘घर में शुरू से ही एक अनुशासन रहा. मुझे शुरू से लगता रहा कि जो सिविल परीक्षा पास करते हैं, वो भी तो इंसान ही होते हैं. जब वो कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं. ज़िन्दगी में कुछ भी पाना आसान नहीं है पर संघर्ष हमेशा सही राह दिखाता है.’

चूंकि घर में लगभग सभी नौकरशाह थे, इसलिए फरहा ने भी सिविल सर्विस का रास्ता चुना.

अल्पसंख्यक और पिछड़े तबकों के लोगों की सिविल सेवा में कम भागीदारी हो रही है, इस पीछे के कारणों के बारे में पूछने पर फरहा बताती है, ‘सरकार पर बार-बार दोष देना मसले का हल नहीं हो सकता है. कमियां कहां हैं, इसे खुद से समझना होगा. अपने आचरण और बर्ताव को बदलकर खुद में सलाहियत लानी होगी. तभी पिछड़े तबकों से अधिक से अधिक लोग सिविल सेवा में आने को उत्सुक होंगे.’ फरहा एक साझा लोकतंत्र की वकालत करती हैं और कहती हैं कि इस देश के सभी हिस्सों में सभी वर्गों की भागीदारी होनी चाहिए. वे कहती हैं,.’हिन्दुस्तान जैसे देश में सभी वर्गों की सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी होनी चाहिए ताकि साझा लोकतंत्र कायम किया जा सके. यह हिस्सेदारी शैक्षिक संस्थाओं में भी होनी चाहिए, जिससे सभी को तरक्की का समान अवसर मिल सके. मौजूदा सचाई अभी बिलकुल अलग हैं. इस पिछड़ेपन के लिए शिक्षा की कमी एक ख़ास वजह है.’

कोई भी सरकार चाहकर भी समाज के लोगों के लिए बहुत अधिक कुछ नहीं कर सकती. यह भी सच है कि सरकार की लापरवाही से समाज शिक्षा और सरकारी नौकरियों में पिछड़ गया है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि समाज ने भी अपनी जिम्मेदारी का पूरी तरह से निर्वहन नहीं किया है.

इस बारे में वे आखिर में कहती हैं, ‘सहयोग बहुत जरूरी है. हममें से ही लोगों को आगे आना पड़ेगा ताकि हम और समाज में पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग को आगे ला सकें.’

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