फहमिना हुसैन, TwoCircles.net
दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू में चल रहा विवाद अब पूरे नए फलक पर आ चुका है. राष्ट्रद्रोह और देशविरोधी कार्यक्रमों के मामले में जांच के लिए गठित की गयी समिति HLEC ने विश्वविद्यालय के छात्रों को अर्थदण्ड और निलंबन की सजा सुनाई थी. इसे जेएनयू छात्रसंघ से जुड़े लोगों और तमाम सारे छात्रों ने एक फाशिस्त और निजामी हरक़त की तरह देखा. इसके बाद भूख हड़ताल का सिलसिला शुरू हुआ, जो अभी तक जारी है.
13 दिनों तक चली इस भूख हड़ताल में कन्हैया कुमार को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. उमर ख़ालिद और रमा नागा की तबीयत बिगड़ी लेकिन छात्र पूरी शिद्दत के साथ HLEC की रिपोर्ट की मुखालफत करते रहे.
इस मामले में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने मीडिया से कहा था, ‘जब कमेटी के गठन पर ही आपत्ति थी, तो सवाल ही नहीं उठता कि उसकी रिपोर्ट को हम मानें. दंडित छात्रों में अधिकांश छात्र या तो अल्पसंख्यक हैं या फिर ओबीसी. समिति के गठन के दौरान इस बात का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा गया कि उसमें अल्पसंख्यकों और पिछड़े समुदाय के लोगों को भी जगह दी जाए.
कन्हैया का ऐसा कहना बिलकुल जायज़ है. इसके पहले भी रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में गठित जांच समिति में एक भी दलित न होने पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय पर सवाल उठाए गए थे. सदन में मायावती ने जब इसे लेकर प्रश्न रखा तो मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने बेहद नाटकीय भाषण दिया था. याद हो कि इस भाषण में स्मृति ईरानी ने धमकी देते हुए कहा था, ‘ध्यान दीजिए मायावती जी! आप मेरे जवाब से यदि संतुष्ट न हुईं तो सिर कलम करके आपके चरणों में छोड़ दूंगी.’
बहरहाल, जेएनयू में छात्रों ने विरोध के तौर पर HLEC की रिपोर्ट भी जलाई और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की. कन्हैया ने साफ कर दिया था कि रिपोर्ट के आगे झुकने का तो सवाल नहीं पैदा होता, बल्कि प्रशासन को झुकाने को लेकर कैंपस में पैदल मार्च भी होगा और भूख हड़ताल भी. कन्हैया ने कहा कि मामला अभी कोर्ट के विचाराधीन है, लिहाजा ऐसे समय में रिपोर्ट का आना इशारा करता है कि आदेश कहीं और से मिल रहा है.
कन्हैया के आरोप से HLEC की कार्रवाई पर भी सवाल उठते हैं. यह बात सही है कि यदि मामला न्यायालय के अधीन था तो किस बिना पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया.
जेएनयू के बहुत सारे पुराने छात्रों ने इसी कड़ी में मानव-श्रृंखला का निर्माण कर छात्रों की इस मुहिम का समर्थन किया था. इस सिलसिले में छात्रसंघ में पूर्व जनरल सेक्रेटरी सरफ़राज़ हामिद बताते है कि पुराने रजिस्टर प्रमोद कुमार ने एक ऑफिस आर्डर जारी किया था, जिसमें कैम्पस में बाहर के लोगों के न आने की बात थी. लेकिन JNUSU ने ये कहा था कि ये लोग JNU के पुराने छात्र हैं और वे लोग इसमें शामिल हो सकते हैं.
सरफ़राज़ हामिद आगे बताते हैं कि इस मामले में नए वाईस चांसलर और रजिस्ट्रार का रवैया बहुत ही एकतरफ़ा है.
जेएनयू के छात्रों का कहना है कि जिस तरीके से JNU को लेकर माहौल बनाया गया है या उमर खालिद पर जिस तरीके से जुर्माना या एक साल के निलंबित करने की बात की गई है, अगर इसके खिलाफ एक्शन नहीं लिया गया तो ये हम सभी के लिए असफ़लता है.
दरअसल जेएनयू के मुद्दे में उमर खालिद के व्यक्तित्व की पहचान ऐसे शख्स के तौर पर हुई है, जिसके नेपथ्य का इस्तेमाल उन्हें एक फ्रेम में फिट करने के लिए हुआ. यह फ्रेम था ‘आतंकवाद’ का और नेपथ्य था ‘अल्पसंख्यक’ होने का. उमर के बारे में बात करते हुए सरफ़राज़ बताते हैं, ‘जैसे उमर खालिद की प्रोफाइलिंग करके उसे एंटी इंडियन का टैग दे दिया गया, उसके लिए लड़ना, कैम्पेन चलाना बहुत ज़रूरी है.’
जेएनयू के मुद्दे में तीन लोगों के नाम टेलीविज़न पर आए. भूख हड़ताल तो अब ख़त्म हो गयी लेकिन कई वेबसाइटों पर कन्हैया और उमर खालिद के नाम ही फ्लैश कर रहे थे. लेकिन इस पूरी मुहिम में कई ऐसे लोग जुड़े हुए थे, जिन्हें लोग कम पहचानते हैं. हिंदी के लेखक हिमांशु पंड्या ने अपनी फेसबुक वाल पर ‘हमारे दौर के नायक’ के नाम से सिरीज़ की शुरुआत की थी, जिसमें उन्होंने अपने गुस्से का इज़हार करते हुए उन लोगों से परिचय कराया था, जो इस भूख-हड़ताल में शामिल थे.
भूख-हड़ताल के बीच जब जेएनयू के कुलपति जगदीश कुमार ने छात्रों को पत्र लिखकर भूख-हड़ताल ख़त्म करने का आग्रह किया तो कुलपति जगदीश कुमार ने एक बड़ी भूल कर दी. उन्होंने अमुक पत्र में करार दिया कि भूख हड़ताल गैर-कानूनी है. जबकि कुलपति जगदीश कुमार यह भूल गए कि यह पूरी तरह से किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अन्दर आता है.
इस मामले में आगे रहे एक और छात्र रामा नागा बातचीत में बताते हैं, ‘जिस तरह से लोगों का सहयोग मिल रहा है, उससे हमें उम्मीद है की कामयाबी मिलेगी भले ही रास्ते थोड़े मुश्किल हैं. आने वाले दिनों में लोग और ज्यादा जुड़ेंगे. इस आंदोलन को और तेज़ करेंगें क्यूंकि ये सच्चाई और अधिकार की जंग है.’
जेएनयू प्रशासन ने कुल मिलाकर मामले को नासमझी में अपने हाथ से फिसल जाने दिया. विश्वविद्यालयों के अंदरूनी मामलों में उचक-उचककर हिस्सा लेने वाली मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कह दिया कि यह छात्रों की बात है तो यह जेएनयू का अंदरूनी मामला है. मंत्रालय इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा. यानी इसका मतलब साफ़ है कि किसी मामले में मंत्रालय के ‘ऑन पेपर’ हस्तक्षेप न करने के बावजूद क्या विश्वविद्यालय अपने अधिकारों का इतना बेजा फायदा उठा सकता है?
मीटिंग से भागे कुलपति जगदीश कुमार ने आरोप लगाया कि छात्रों ने उनका कॉलर पकड़कर उन्हें बाहर किया. लेकिन बाद में यूट्यूब पर वीडियो शेयर हुए और तस्वीरें भी आयीं, जिसमें कुलपति जगदीश कुमार के आरोपों की कलई खुल गयी.
जेएनयू के पूरे प्रकरण में छात्रों ने पूरी तरह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जीत पायी है, और शायद यही बात हुक्मरानों की समझ और इच्छा से बाहर है.