सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
लखनऊ: आतंकवाद के आरोप में पहले उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन कार्यरत एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार किए गए और बाद में निचली अदालत द्वारा आरोपों से बरी कर दिए गए मुस्लिम युवकों के खिलाफ़ उत्तर प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट में अपील की है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने बीती 25 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट में छः मुस्लिम युवकों के बरी होने के खिलाफ अपील की है. इन सभी युवकों को निचली अदालत द्वारा आतंकवाद के आरोपों से बरी कर दिया गया था. सरकार की अपील के बाद हाईकोर्ट ने 29 फरवरी को निचली अदालत से सारी फाइलें और वे कागज़ मंगाए हैं, जिनके आधार पर इन युवकों को बरी किया गया था.
असल में मामला काफी पुराना है. छः युवकों अजीर्जुरहमान, मोहम्मद अली अकबर हुसैन, नौशाद, नूर इस्लाम, शेख मुख्तार हुसैन और जलालुद्दीन को साल 2007 के जून में लखनऊ और कोलकाता से गिरफ़्तार किया गया था. इन सभी पर आतंकवादी संगठन हरक़त-उल-जिहाद-अल-इस्लाम यानी हूजी से जुड़े होने का आरोप था. साथ ही साथ इन पर यह भी आरोप थे कि वे प्रदेश की राजधानी लखनऊ में धमाके की साजिश कर रहे थे.
इसके साथ-साथ एसटीएफ ने इन अभियुक्तों के पास से आरडीएक्स, हैण्ड ग्रेनेड और डेटोनेटर की बरामदगी भी दिखाई थी.
इन अभियुक्तों की गिरफ्तारी की कहानी संदेहास्पद है. क्रम से चलें तो सबसे पहले 23 जून 2007 को जलालुद्दीन और नौशाद को एसटीएफ ने लखनऊ से गिरफ़्तार किया. इस बारे में अभियुक्तों के बयान अलग हैं. जलालुद्दीन का कहना है कि एसटीएफ ने उसे 9 जून को ही कोलकाता से लखनऊ आते वक़्त गिरफ्तार कर लिया था, वहीँ नौशाद का कहना है कि उन्हें 19 जून को राजस्थान के अलवर से गिरफ्तार किया गया था.
इसके बाद 24 जून 2007 को मोहम्मद अली अकबर हुसैन और शेख़ मुख्तार को कोलकाता के उनके घरों से गिरफ्तार किया गया.
26 जून 2007 को अजीजुर्रहमान को पश्चिम बंगाल की सीआईडी के प्रत्यर्पण के ज़रिए हासिल किया गया. अजीजुर्रहमान को सीआईडी ने 22 जून 2007 को गिरफ्तार किया था. लेकिन इस गिरफ्तारी के बारे में अजीजुर्रहमान और उनके वकीक मोहम्मद शोऐब का कहना है कि सीआईडी ने उन्हें 11 जून को ही गिरफ्तार कर लिया था.
इसके बाद 27 जून को नूर इस्लाम को एसटीएफ ने कोलकाता से गिरफ्तार किया.
गिरफ्तारियों का क्रम और अभियुक्तों के दावों में एक बड़ा अंतर फैला हुआ है. वकील मोहम्मद शोऐब बताते हैं कि सरकारों का यही हाल है, सही तस्वीर कभी सामने ही नहीं आ पाती है.
गिरफ्तारी से लेकर आरोपों से बरी होने तक के सफ़र में लगभग 9 सालों का एक लंबा वक़्त लग गया है. अभी जाकर आरोपों से बरी हुए इन अभियुक्तों को अब यह फीवर सताने लगी है कि क्या उन्हें अब फिर से सलाखों की पीछे जाना होगा.
समाजवादी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनावों में अपने घोषणापत्र में यह घोषणा की थी कि प्रदेश के बेगुनाह मुस्लिमों पर लादे गए केस वापिस लिए जाएंगे और उनके पुनर्वास की व्यवस्था भी की जाएगी. इन अभियुक्तों के वकील शोऐब कहते हैं, ‘सरकार मुस्लिम विरोधी गतिविधि पर काम कर रही है. वे हिन्दू वोटबैंक के चक्कर में पड़े हुए हैं. पुनर्वास तो किया नहीं, उलटा उन्हें खुली हवा में सांस भी नहीं लेने दे रहे हैं.’
इस मामले को लेकर जब समाजवादी पार्टी के नेताओं से बात करने की कोशिश की गयी तो उन्होंने बात करने से मना कर दिया. ‘द हिन्दू’ से बातचीत में सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने बस इतना कहा, ‘जब से सपा ने 2012 में प्रदेश में सरकार बनायी है, तब से कोई भी निर्दोष व्यक्ति जेल नहीं गया.’