अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
भोपाल में प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी से कथित तौर पर जुड़े 8 अंडरट्रायल क़ैदियों के एनकाउंटर ने एक सुनियोजित साज़िश का घिनौना सच उधेड़कर रख दिया है. इस तथाकथित एनकाउंटर को लेकर हर किसी के मन में अनगिनत सवाल हैं. कई सवाल तो राजनीतिक हैं तो कई काफी गंभीर व चिंतनीय. वहीं कुछ नेता व उनके समर्थक इन सवालों को उठाने वालों पर सवाल उठाकर अपनी राजनीति चमका रहे हैं. यहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो इस पूरे राजनीति को घटिया बताकर अपने विपक्षी पार्टी के नेताओं पर लानत भी भेज रहे हैं. लेकिन इन सब ‘खेल’ में जिस बात पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है, वह इन अंडरट्रायल क़ैदियों के मुक़दमे से जुड़ी हुई है. इनका मुक़दमा जिस स्टेज पर पहुंच चुका था, वहां से ये कैदी इंसाफ़ की मंजिल से बस कुछ ही दूर थे.
इनके वकील थहव्वुर खान के मुताबिक़ इनके मामलों की सुनवाई लगभग पूरी हो चुकी थी. बस 18-20 गवाहियां और बाक़ी थीं. सच पूछे तो इनकी बेगुनाही के सबूत अदालत की जानकारी में आ चुके थे और मामला फैसले के स्टेज पर पहुंचने वाला था. शायद फैसला अगले एक-दो हफ़्तों में आ जाता.
मगर इसके पहले ही रहस्यमय तरीक़े से इन आरोपियों का भोपाल की आईएसओ प्रमाणित व देश की बेहद ही सुरक्षित जेल से फ़रार हो जाना और फिर उसके बाद भोपाल पुलिस व एटीएस का मिलकर इनका ‘एनकाउंटर’ कर देना जितना संदेहास्पद है, उतने ही अधिक सवाल भी खड़े करता है.
वकील थहव्वुर खान का मानना है कि यह सब साज़िश के तहत किया गया है. वे बताते हैं, ‘मैं इस जेल में कई बार इनसे मिलने गया हूं. वहां जिस तरह की सुरक्षा है, कोई भागने के बारे में भी नहीं सोच सकता. ये भारत की सबसे सुरक्षित जेल है.’
यही नहीं, एक के बाद एक आए इस एनकाउन्टर के तीन वीडियो ने इस साज़िश की सारी परतें खोल कर रख दी हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश में चुनावी आहट को गरमाने के हथियार के तौर पर भी इस ‘एनकाउंटर’ को देखा जाना चाहिए.
शिवराज सरकार के पास उपलब्धियां गिनाने के नाम पर अब कुछ बाक़ी नहीं है. व्यापमं की आंच ने बची-खुची साख को भी ध्वस्त कर दिया है. ऐसे में इस ‘एनकाउंटर’ के ज़रिए शिवराज सिंह चौहान अपने कट्टरपंथी हिन्दू मतदाताओं को एकजुट होने का मैसेज़ देने की क़वायद करते नज़र आ रहे हैं. ये क़वायद आने वाले चुनाव में इस लिहाज़ से मददगार हो सकती है कि भोपाल एनकाउंटर के बाद मध्य प्रदेश की पुलिस इसी तरह की कुछ और सवालिया कार्रवाईयों को अंजाम दे सकती है, जो अंततः एक बड़े राजनीतिक फ़ायदे की वजह बन सकते हैं.
यही नहीं, उत्तर प्रदेश में भी चुनाव सिर पर है और भाजपा और पार्टी के समर्थकों ने इस ‘एनकाउंटर’ के बाद जिस तरह का रूख अख़्तियार किया है, वह मौजूदा चुनावी राजनीति का जीता-जागता उदाहरण है. भाजपा के नेता घूम-घूमकर इस ‘एनकाउंटर’ को बटला हाउस फ़र्ज़ी एनकाउंटर, इशरत जहां व शोहराबुद्दीन फ़र्ज़ी एनकाउंटर और तमाम सारे पिछले एनकाउंटरों से जोड़ रहे हैं और इसे ‘राष्ट्रवाद’ के ऊपर सवाल उठाया जाना क़रार दे रहे हैं.
भाजपा के एक नेता तो यह भी कहते हैं कि ‘यह बेहद शर्मिदगी वाली बात है कि ये सभी पार्टियां आतंकवादियों, अलगाववादियों तथा अपराधियों के तुष्टीकरण में लगी हैं.यह सब राजनीति के तहत किया जा रहा है. विपक्षी पार्टियों की विकृत धर्मनिरपेक्षता उनकी राजनीतिक पराजय का कारण बनेगी. और वैसे भी हमने बाटला हाउस‘मुठभेड़’ में मारे गए आतंकवादी के लिए सोनिया गांधी को आंसू बहाते हुए देखा है. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमने राहुल गांधी को सेना के पराक्रम पर सवाल उठाते हुए देखा है.’
यहां यह भी बताते चलें कि TwoCircles.net ने इससे पहले कई फ़र्ज़ी एनकाउंटरों की पड़ताल की है, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थें. लेखक ने बटला हाउस व शोहराबुद्दीन ‘एनकाउंटर’ के मामले में आरटीआई के ज़रिए हासिल दस्तावेज़ों से कई महत्वपूर्ण तथ्यों को बेनक़ाब किया था. एक आरटीआई के जवाब में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग यह भी बता चुका है कि देश का हर दूसरा एनकाउंटर फ़र्ज़ी होता है. बावजूद इसके, इन सब एनकाउंटरों में तथ्यों को दरकिनार करके एक खास दिशा में मोड़ दिया गया, बिल्कुल वही ‘खेल’ भोपाल ‘एनकाउंटर’ में भी होता नज़र आ रहा है. जिस तरह से बटला हाउस फ़र्ज़ी एनकाउंटर में इंस्पेक्टर मोहनचन्द शर्मा की मौत ने इस पूरे मामले पर पर्दा डालने का काम किया था, ठीक उसी तरह से इस ‘एनकाउंटर’ में रमाशंकर यादव की मौत के सहारे पूरे मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सबसे पहले इस तथ्य की जांच की जाए कि आख़िर रमाशंकर यादव की मौत हुई कैसे?
बहरहाल, प्रथम दृष्टया जिस ‘एनकाउंटर’ पर इतने ज़्यादा सवाल उठ चुके हों, उस ‘एनकाउंटर’ को शुरूआती जांच के पहले ही जायज़ ठहरा देने के मतलब बेहद साफ़ हैं. हैरानी की बात है कि मीडिया भी इस साज़िश में बराबर की हिस्सेदारी निभा रही है. तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया बार-बार इन अंडरट्रायल क़ैदियों को आतंकवादी कहकर प्रचारित कर रही है. एक कारण यह भी हो सकता है कि मध्य प्रदेश में मीडिया की कार्यशैली बेहद दबाव में चल रही है. व्यापमं घोटाले के वक़्त मीडिया में खबरें न चलाने अन्यथा परिणाम भुगतने का दबाव मध्य प्रदेश के मीडियाकर्मियों पर था. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मकान पाए लोगों में मध्य प्रदेश के कई मीडिया संस्थानों के मालिकों और संपादकों के नाम भी शामिल हैं. दबाव कहें या साथ, लेकिन शायद मीडिया शासन व सत्ता की ज़बरदस्ती से जोड़ी गई थ्योरी को वैधानिक रूप देने पर जुटी हुई है. मीडिया का यह रवैया लोकतंत्र के लिए बेहद ही ख़तरनाक है और दो समुदायों के बीच के आपसी भाईचारे और सौहार्द्र को तार-तार करने वाला है.