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नई दिल्ली : जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने भोपाल में सिमी के विचाराधीन क़ैदियों की मुठभेड़ के सम्बन्ध में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि –‘वो आठों आरोपियों के जघन्य नरसंहार तथा भोपाल केंद्रीय जेल से भागने और हवलदार की हत्या की सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में न्यायिक जाँच की मांग करता है.’
इस राष्ट्रीय समन्वय का कहना है कि –‘हम यह लगातार देखते आ रहे हैं कि पुलिस फ़र्जी प्रकरण बनाकर तमाम संगठनों के कार्यकर्ताओं को विभिन्न अपराधों में षड़यंत्रपूर्वक फंसाती रही है तथा ऐसे कई मामलों में न्यायालयों द्धारा ऐसे व्यक्तियों को दोषमुक्त भी किया जाता रहा है. ये बात सर्वविदित है कि प्रतिबंधित संगठन सिमी के आठों सदस्यों को अब तक सज़ा नहीं हुई थी. अभी ये भी तय नहीं हुआ है कि वो सिमी के सदस्य थे या नहीं. अगर आठों आरोपी आतंकवादी थे तो यह न्यायालय में सिद्ध किया जाना चाहिए था तथा निर्णय के अनुसार उन्हें सज़ा दिलाई जानी थी. लेकिन ऐसा हो न सका. सच तो यह है कि सभी विचाराधीन कैदियों के मुक़दमों में जल्दी ही फैसला होने वाला था, फैसले का इन्तजार करने के बजाय उन्हें आतंकवादी बताकर मार दिया जाना देश की न्यायिक प्रक्रिया पर कुठाराघात है. जिस तरह गुजरात में फ़र्जी मुठभेड़ें लगातार की जाती रही हैं उस गुजरात मॉडल को मध्य प्रदेश में लागू करने का षड़यंत्र किया गया है.’
इस राष्ट्रीय समन्वय के मुताबिक़ विचाराधीन आरोपियों के जेल से भागने की पुलिस द्धारा बताई गई पूरी कहानी काल्पनिक एवं नाटकीय दिखलाई देती है, क्योंकि भोपाल जेल अन्तराष्ट्रीय आईएसओ-14001-2004 का दर्जा प्राप्त है, जिसमें सुरक्षा भी एक अहम मानक है. आठ कैदी जेल के अलग-अलग ब्लाक में बंद थे, जिनके बीच काफी दूरी थी. दोनों ब्लॉक से क़ैदियों का एक साथ फ़रार होना संदेहास्पद है. जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने जेल में लगे सीसीटीवी कैमरों का तथा एनकाउंटर के वीडियो फुटेज सरकार से सार्वजनिक करने की मांग की है.