बनारस में संघ की ‘संस्कृति संसद’ : वर्ण व्यवस्था, राष्ट्रवाद, बलूचिस्तान और असमानता का हाई-वोल्टेज ड्रामा

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी: शहर में मौजूद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बहुत लम्बे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रयोगशाला रहा है. लेकिन बीते एक-दो सालों में विश्वविद्यालय प्रयोगशाला से उठकर अब कार्यक्षेत्र में बेहद तेज़ी से तब्दील हुआ है.


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( Photo Courtesy: Jagaran )

बीते दो सालों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बीएचयू में कई बार किस्म-किस्म के सेमिनार करवाता रहता है. कई बार तो संघ और जमाअत-इस्लामी-हिन्द के छात्र प्रकोष्ठ एसआईओ की आयोजन में संयुक्त भागीदारी रही है, इस वजह से एसआईओ को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा है.

इधर बीच संघ द्वारा बीएचयू में पहले ‘संस्कृति संसद’ का आयोजन कराया जाना था. इस संस्कृति संसद में सामने नाम गंगा महासभा का दिखाई दे रहा है, लेकिन तैयारियां संघ की हैं. तैयारियों में लगे जिला प्रचारक नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर हमसे बताते हैं, ‘हम लोग दरअसल आगे का देख रहे हैं. संघ का नाम आने से लोगों को लगेगा कि पार्टी करा रही है, बाकी पार्टी वाला भी बोलने लगेगा. इसलिए हम लोग ऐसे कर रहे हैं, और इसमें बुराई ही क्या है?’



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लेकिन चौतरफा आलोचना से घिरा होने के कारण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने खुद को इस आयोजन से दूर कर लिया और आख़िरी वक़्त में आयोजन को एक निजी होटल में स्थानांतरित करना पड़ा. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय की ओर से कोई प्रतिनिधि भी शामिल नहीं हुआ. विश्वविद्यालय से पूछे जाने पर विश्वविद्यालय ने अनभिज्ञता ज़ाहिर तो की लेकिन कोई सही जवाब दे पाने में असफल रहे.

विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी राजेश सिंह ने पहले तो कार्यक्रम की पृष्ठभूमि, उसके आयोजन मंडल और उससे जुड़े लोगों के बारे में सभी जानकारी बातचीत में कह डाली लेकिन बाद में उन्होंने कहा, ‘विश्वविद्यालय का ऐसे किसी कार्यक्रम में कोई योगदान नहीं है. न ही मुझे इस कार्यक्रम के बारे में कुछ मालूम ही है.’

मालूम हो कि इस आयोजन में बलूचिस्तान का मुद्दा प्रमुख रूप से सामने लाने की कोशिश की जा रही है. बलूचिस्तान से ताल्लुक रखने वाली विश्व बलूच महिला संगठन की नायला कादरी दो दिनों से बनारस में आई हुई हैं. तमाम अखबारों में उनके इंटरव्यू छप रहे हैं.



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मोटे तौरपर देखें तो नायला क़ादरी लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफों में पुल बांधती ही नज़र आयीं. संस्कृति संसद के दूसरे दिन का एक सत्र बलूचिस्तान पर केन्द्रित था, इस सत्र में अधिकतर समय वे बलूचिस्तान के लोगों की समस्याओं, उनकी आज़ादी और उनकी आवाज़ उठाने के लिए नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा ही करती नज़र आयीं. बातचीत में उन्होंने बलूचिस्तान में, यदि वह कभी आज़ाद होता है, नरेंद्र मोदी की मूर्ति लगवाने का ऐलान कर दिया.

मालूम हो कि इस साल स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान का राग छेड़ा, जिसके बाद से भारत और पाकिस्तान के संबंधों में तल्खी बढ़ने लगी, जो आज चलकर एक युद्ध के मोड़ तक आ चुकी है.

ट्रिपल तलाक, यूनिफॉर्म सिविल कोड और बलूचिस्तान जैसे मुद्दों से इस कार्यक्रम में राष्ट्रवाद की भावना को भरसक उकसाने का प्रयास किया गया है. कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले संभावित लोगों में श्रीश्री रविशंकर, जगदगुरु वासुदेवानंद सरस्वती, स्वामी रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य, स्वामी चिदानंद सरस्वती, भंते असाजिथ, मौलाना कल्बे सादिक, फजल नदवी, जनरल जीडी बख्शी, शेखर सेन, अंगूरलता डेका, तारिक फतेह, नाजिया इलाही खान को आमंत्रित किया गया है.



( Photo Courtesy: Jagaran )

संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार, अच्युतानंद मिश्र, जेएनयू से विवेक कुमार, जस्टिस गिरधर मालवीय, रविंद्र शर्मा, तरुण विजय, मनोज तिवारी, केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा, पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ के नाम भी इस कार्यक्रम में शिरकत करने वालों की सूची में शामिल हैं. इन नामों में से कुछ नाम नहीं आए, और जो आए वे अधिकतर समय संस्कृति के नाम पर वर्ण, धर्म और पाकिस्तान के विरोध में बोलते रहे.

‘वर्ण व्यवस्था वैज्ञानिक व दार्शनिक व्यवस्था है’

रक्षा विशेषज्ञ जीडी बक्शी ने बलूचिस्तान के लड़ाकों को तो सैन्य मदद देने तक की पेशकश कर डाली. जागरण के प्रमुख सम्पादक संजय गुप्त ने वर्ण व्यवस्था की वकालत कर डाली और वैलेंटाइन डे और बॉलीवुड पर भारतीय संस्कृति को प्रदूषित करने का आरोप लगा डाला. उन्होंने कहा था, ‘भारतीय संस्कृति को समझने के लिए वर्ण व्यवस्था को समझना जरूरी है. वर्ण व्यवस्था की आलोचना वही करते हैं जिन्होंने इसका अध्ययन नहीं किया, समझा नहीं. वर्ण व्यवस्था वैज्ञानिक व दार्शनिक व्यवस्था है. यह गुण, कर्म व स्वभाव पर आधारित है. इसका यही संदेश है कि व्यक्ति को जन्म की जगह काम से महत्व दें. जीवन मूल्यों के जरिए सत्य को समझने की कोशिश हो, तभी अच्छे समाज का निर्माण होगा.’

कार्य्रकम की रूपरेखा तो ‘राष्ट्रवादी कट्टरपंथ’ की ओर जाती दिख ही रही थी, लेकिन यह भी स्पष्ट हो रहा था कि कार्यक्रम किसी न किसी रूप में उत्तर प्रदेश चुनाव की रूपरेखा तय करने के लिए आयोजित है.

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