काश ऐसा हो कि मेरा नजीब कल-परसों मेरे पास आ जाए –फ़ातिमा नफ़ीस

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

नई दिल्ली : ‘मैं भागते-भागते थक गई हूं. अब मुझ से नहीं भागा जाता. हर सुबह यह सोच कर घर से निकलती हूं कि आज मुझे मेरा नजीब मिल जाएगा, लेकिन हर शाम खाली हाथ लौटना पड़ता है. आख़िर कब तक मैं ऐसे ही खाक छानती फिड़ू. कोई तो मेरे ऊपर रहम करो.’


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ये बातें कहते-कहते जेएनयू से पिछले 15 अक्टूबर से गायब नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस फूट-फूट कर रो पड़ती हैं. रोते हुए ही कहती हैं कि –‘काश कि ऐसा हो कि मेरा बच्चा नजीब कल परसों ही मेरे पास आ जाए.’

TwoCircles.net ने मंगलवार को नजीब के परिवार से लंबी बातचीत की. इस बातचीत में मां फ़ातिमा नफ़ीस कहती हैं कि –‘जितनी ताक़त दिल्ली पुलिस ने परसों हमें अरेस्ट करने में लगाया, अगर उसका 10 फ़ीसद भी पहले नजीब को ढ़ूंढ़ने में लगा दिया होता तो मुझे मेरा बच्चा मिल गया होता.’

बताते चलें कि मंगलवार को नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस व बहन सदफ़ मुशर्रफ़ बदायूं सांसद धर्मेंद्र यादव के अगुवाई में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाक़ात की.

इस मुलाक़ात के सिलसिले में हमने मां फ़ातिमा नफ़ीस से बातचीत और जानना चाहा कि राजनाथ सिंह ने उनसे क्या कहा. इस सवाल पर वो बताती हैं कि –‘राजनाथ सिंह ने कहा कि दिल्ली पुलिस अगर नजीब को नहीं ढ़ूंढ़ पा रही है तो आगे कुछ और करेंगे. इस केस को सीबीआई को दे देंगे.’

आगे फ़ातिमा नफ़ीस उम्मीद जताते हुए कहती हैं कि –‘मुझे उम्मीद है कि वो कुछ अच्छा करेंगे. मेरा बेटा मुझे वापस लाकर देंगे. एक मां के लिए 25 दिन बहुत लंबा अरसा होता है. उसका बच्चा गुम हो गया है और वो सड़कों पर खाक छान रही है, धक्के खा रही है और उसके बेटे का कहीं से कोई सुराग नहीं है.’

बताते चलें कि मंगलवार को ही नजीब के परिवार ने एलजी नजीब जंग से भी मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात के सिलसिले में पूछने पर नजीब की बड़ी बहन सदफ़ मुशर्रफ़ बताती हैं कि –‘नजीब जंग ने भी हमें सिर्फ़ आश्वासन ही दिया…’ सदफ़ की बातों से यह साफ़ झलक रहा था कि वो एलजी नजीब जंग के साथ इस मुलाक़ात से कोई ख़ास उम्मीद नहीं रखतीं.

इस बीच दिल्ली पुलिस नजीब के मामले में एक नया तथ्य मीडिया के सामने रखा है. मीडिया को दिए एक बयान में दिल्ली पुलिस ने कहा कि नजीब अहमद डिप्रेशन का शिकार था और 4 साल से नजीब का इलाज होली फैमिली अस्पताल में चल रहा था. पुलिस के मुताबिक़ ये बात परिवार ने उनसे छिपाई थी. पुलिस के मुताबिक़ जिस बीमारी का नजीब शिकार था, इसमें अक्सर लोग घर छोड़कर चले जाते हैं. पुलिस अब नजीब के परिवार से ये जानना चाहती है कि क्या नजीब कभी घर छोड़कर गया था?

यह नजीब की बहन सदफ़ मुशर्रफ़ से पूछने पर बोलती हैं –‘अगर उसका इलाज 4 साल से होली फैमिली अस्पताल में चल रहा था तो दिल्ली पुलिस सिर्फ़ 4 महीने के इलाज का रिकार्ड ही हमारे सामने लाकर दिखा दे. उसको ऐसी कोई बीमारी नहीं थी. दरअसल पुलिस नजीब को ढ़ूढ़ने के बजाए उसे बदनाम करने की कोशिश कर रही है.’

नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस का कहना है कि –‘मेरा बेटा कहां है? किस हालत में है? इससे दिल्ली पुलिस को कुछ लेना देना नहीं है, वो अब अपनी नाकामी को छिपाने के लिए मेरे बच्चे को बदनाम करना चाहती है. आप ये बताईए कि मैं तो अपने बेटे को मांग रही हूं. मैंने तो उसकी बीमारियों के बारे में पूछा ही नहीं. मैं जानती हूं कि मेरा बेटा कैसा है. जिसने 4 यूनिवर्सिटियों के इंट्रेंस टेस्ट क्रैक किया और जेएनयू पहुंचा, क्या वो दिमाग़ी तौर पर अस्थिर हो सकता है. क्या जेएनयू में उन्हीं के दाख़िला होता है जो दिमाग़ी संतुलन खो बैठे हैं.’

फ़ातिमा नफ़ीस स्पष्ट तौर पर कहती हैं कि –‘इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी, इतना नामी-गिरामी कैम्पस, जहां से नजीब गायब हो जाता है और किसी ने देखा तक नहीं. ये कितनी हैरानी की बात है. मेरे समझ में नहीं आता कि ये लोग साबित क्या करना चाहते हैं. अपनी नाकामी को छिपाना चाह रहे हैं या मेरे बच्चे पर झूठा इल्ज़ाम लगाकर कुछ और रंग देना चाह रहे हैं. आख़िर ये चाहते क्या हैं. मेरे बच्चे पर सियासत क्यों कर रहे हैं. मुझे किसी चीज़ से कोई लेना-देना नहीं है. मुझे बस मेरा नजीब चाहिए.’

TwoCircles.net ने नजीब अहमद के बहनोई इरशाद अहमद से भी बातचीत की. उन्होंने इस बातचीत में कहा है कि –‘अब तक हम पुलिस की बातों पर ही भरोसा कर रहे हैं और पुलिस के पास अब तक नजीब का कोई सुराग नहीं है. हालांकि वो हमें बता रहे हैं कि वो काफी मेहनत कर रहे हैं. 200 से 250 पुलिसकर्मियों को नजीब को तलाशने में लगा रखा है. ईनाम की रक़म को भी 50 हज़ार से बढ़ाकर 2 लाख कर दिया है. लेकिन सब नाकाम…’

इरशाद बताते हैं कि –‘पुलिस का कहना है कि नजीब के लैपटॉप से दरगाहों के फोटो मिले हैं. तो पुलिस अब उसे दिल्ली व आस-पास के दरगाहों में खोज रही है. क्योंकि पुलिस यह मानकर चल रही है कि नजीब को किसी ने गायब नहीं किया बल्कि वो खुद से गायब है. और शांति की तलाश में या इस सदमें से उभरने के लिए किसी दरगाह में चला गया होगा.’

आगे इरशाह कहते हैं कि –‘लेकिन आप ज़रा सोचिए कि मारपीट से जुड़ी बाक़ी के केसों में कोई भी पुलिस क्या करती है? जिन लोगों से मार-पीट होता है, उनसे बातचीत करती है. उन्हें हिरासत में लेती है. लेकिन नजीब के इस केस में पुलिस व प्रशासन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया.’

बताते चलें कि नजीब के परिवार से TwoCircles.net की इस लंबी बातचीत के बाद मीडिया में यह ख़बर भी आ रही है कि नजीब अहमद को बिहार के दरभंगा ज़िला में देखा गया. ज़्यादातर वेबसाइटों में यह ख़बर एलजी नजीब जंग के हवाले से प्रकाशित की गई है. नजीब जंग का कहना है कि नजीब अहमद को बिहार के दरभंगा में देखे जाने की ख़बर है. स्पेएशल इंवेस्टीागेशन टीम (एसआईटी) को दरभंगा भेजा गया है. पुलिस उसे ढूंढ़ने के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन अब तक नजीब के मिलने का कोई सुराग़ किसी को नज़र नहीं आ रहा है.

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