देवबंद में माविआ अली की जीत का मतलब

आस मोहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

लखनऊ: 6 साल पहले जब देवबंद दारुल उलूम में वस्तानवी को मोहतमीम (प्रबंधक) बनाने की बात चली थी तो कई तरह की बड़ी बातें हुई थीं, दारुल उलूम बदलाव की ओर चल रहा था और समाज में तरक़्क़ी की पैरोकारी का अलम्बरदार वस्तानवी को माना जा रहा था. वस्तानवी गुजरात से थे और बड़े तालीमी ईदारों को चला रहे थे. दारुल उलूम में उनकी आमद के बाद बहुत से चूल्हों की आंच तपिश दे रही थी. बस वस्तानवी का भारी विरोध होने लगा.


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दारुल उलूम में तहजीब के रखवाले होने का ढोंग करने वालों ने उन पर टमाटर और अंडो की बारिश करवा दी. वस्तानवी का समर्थन करने वाला मदनी परिवार की आंख़ में खटकने लगा. बड़े मुस्लिम लोग भी साहस नहीं दिखा पाये यह जानकर भी कि वस्तानवी गलत नहीं हैं.

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खौफ से सब अपनी जान बचा रहे थे तभी माविआ अली ने वस्तानवी का समर्थन कर दिया. माविआ उस समय समाजवादी पार्टी में प्रदेश सचिव थे. इसके बाद से दारुल उलूम में हलचल हो गयी. क्षेत्रीय लोगों में माविआ अली के साहस को लेकर बात होने लगी. चूंकि खुलेतौर पर ऐसा करने का साहस कोई नहीं जुटा पाया था और यह घर में ही हो गया तो मदनी परिवार पर बहुत फ़र्क़ पड़ा. मदनी परिवार ने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए माविआ अली को समाजवादी पार्टी से मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा निलंबित करा दिया.

माविआ अली के समर्थन में जनसैलाब उमड़ पड़ा, मगर निलंबन ज्यों का त्यों बना रहा. सहानभूति मविआ के साथ थी और इस लहर ने उन्हें मदनी परिवार के विरोध के बावजूद देवबंद का चेयरमैन बनवा दिया.

आगे देवबंद विधानसभा से राजेन्द्र राणा विधायक बने और सपा से जिले का अकेला विधायक होने के कारण उन्हें मंत्री बना दिया गया. माविआ चेयरमैन थे और राजेन्द्र राणा विधायक, तभी राजेन्द्र राणा बीमार हो गए और पिछले साल उनकी मौत हो गयी. इमरान मसूद की पैरवी पर कांग्रेस ने माविआ को देवबंद से अपना प्रत्याशी बनाया और बेहद अप्रत्याशित परिणाम देते हुए मदनी परिवार के विरोध के बावजूद माविआ अली देवबंद के विधायक बन गए.

अब उनकी खाली हुई देवबंद की नगर पालिका की कुर्सी पर फिर चुनाव हुआ, जिसके दौरान माविआ ने अपना वर्चस्व बनाए रखते हुए अपनी पत्नी खुर्शीदा को काबिज़ करा दिया. माविआ ने यह सब मदनी परिवार के विरोध के बावजूद किया.

दारुल उलूम देवबंद के मदनी परिवार की मुसलमानों में बड़ी धमक बताई जाती है मगर घर में ही उन्हें राजनीतिक रूप से स्वीकार न करना और उनके विरोधियों को जनता द्वारा बार-बार जिता देना दो बड़े संकेत देता है कि एक, पहला जनता में मदनी परिवार की स्वीकार्यता कमजोर हो रही है और दूसरा कि माविआ अली मदनी परिवार से ज्यादा ताक़तवर हैं.

गौरतलब है कि सामाजिक संग़ठन जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी खुले तौर पर सूबे में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी का समर्थन करते हैं. कभी वो कांग्रेस से और उनके भतीजे मौलाना महमूद मदनी रालोद से सांसद रह चुके हैं. एक और भतीजे मौलाना मसूद मदनी उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हैं. मगर इस बार उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी का कड़ा विरोध किया फिर भी माविआ जीत गए.

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