अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये ऐलान किया है कि वो भारत सरकार के लॉ कमीशन के ज़रिए यूनिफॉर्म सिविल कोड के सिलसिले में जारी किए गए सवालों का जवाब नहीं देगा, बल्कि हर सतह पर इसका बायकॉट करेगा.
बताते चलें कि लॉ कमीशन ने देश भर से तमाम धर्मों के रीति-रिवाजों और पारिवारिक मामलों के सिलसिले में सुझाव मांगा है. कमीशन ने 16 सवालों की एक प्रश्नावली बनाई है जिसमें ‘तीन तलाक़’ और महिलाओं के प्रॉपर्टी राइट्स से संबंधित मुद्दे शामिल हैं. कमीशन इसके ज़रिए यूनिफार्म सिविल कोड के सभी मॉडल्स पर चर्चा करवाना चाहता है. इन सवालों के जवाब 45 दिन में दिए जा सकते हैं. हमारे पाठक लॉ कमीशन के इन सवालों को यहां जाकर देख सकते हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे अल्पसंख्यकों के मज़हबी मामले में हस्तक्षेप और यूनिफॉर्म सिविल कोड के ज़बरदस्ती थोपने की कोशिश के तौर पर देखता है. बोर्ड के सचिव मौलाना वली रहमानी TwoCircles.net के साथ बातचीत में बताते हैं कि –‘लॉ कमीशन द्ववारा जारी प्रश्नावली कमीशन के बुरी नियत को दर्शाती है. प्रश्नावली के कई प्रश्नों से ये यह स्पष्ट होता है कि एक ख़ास धर्म के मानने वाले लोगों और उनके पर्सनल लॉ को निशाना बनाया गया है. यह मुसलमानों के पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की साज़िश है.’
वली रहमानी आगे बताते हैं कि –‘लॉ कमीशन ने धारा-44 का हवाला देते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड को एक संवैधानिक रूप में पेश करने की कोशिश की है, जो बिल्कुल धोखा और झूठ है. हक़ीक़त ये है कि यह धारा सिर्फ़ और सिर्फ़ हिदायत का हिस्सा है, जिस पर अमल करना ज़रूरी नहीं है. जबकि संविधान में धारा-25 को विशेष महत्व हासिल है, जिसमें देश के हर नागरिक को धर्म के अनुसार आस्था रखने, धार्मिक क्रियाकलाप व अनुष्ठान पर अमल करने और धर्म के प्रचार-प्रसार का अधिकार हासिल है, इस पर सरकार ने कभी विशेष ध्यान नहीं दिया. जबकि माननीय अदालतों ने भी हमेशा इस बात को माना है कि इसकी अहमियत बुनियादी अधिकार की है. ’
वली रहमानी ने मोदी सरकार के नियत पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि –‘पिछले ढाई सालों में ही यह सरकार हर महाज़ पर पूरी तरह विफल है. ऐसे में मोदी देश की जनता का ध्यान असल मुद्दे से भटकाना चाहते हैं. मोदी सरकार से सरहद तो संभल नहीं रही है और वो अंदरूनी जंग के लिए फ़िज़ा तैयार कर रही है.’
वली रहमानी ने आगे कहा कि –‘वैसे तो मोदी हर समय अमेरिका का पिछलग्गू बनते हैं, लेकिन इस मामले में अमेरिका से कुछ नहीं सीखते. हम बता दें कि अमेरिका के हर प्रदेश में अपने-अपने पर्सनल लॉ हैं.’
रहमानी ने आगे कहा कि –‘हम सरकार से यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ तमाम मुसलामानों के दिलों की आवाज़ है, वो अपनी शरियत में एक अक्षर की भी तब्दीली को सहन नहीं कर सकता है.’
जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष अरशद मदनी व दूसरे मुस्लिम रहनुमाओं का मानना है कि –‘ये सब कुछ सियासी फ़ायदे के लिए किया जा रहा है. और जिसकी पहली फ़सल यूपी चुनाव में काटने की तैयारी हो रही है. मुसलमानों को इसके मद्देनज़र निशाना बनाया जा रहा है, मगर देश का मुसलमान कभी इसको क़बूल नहीं करेगा. सुप्रीम कोर्ट से लेकर देश के तमाम हिस्सों में इसके ख़िलाफ़ क़ानूनी, सामाजिक और सियासी हर तरह की लड़ाई लड़ी जाएगी.’
मुस्लिम समाज के हर मसलक व फिरके से जुड़े तमाम उलेमाओं व रहनुमाओं ने आज प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में यह साफ़ कर दिया कि वो इस मसले में एक साथ हैं. बोर्ड के इस मंच पर आज ऐसे उलेमाओं की भी मौजूदगी दिखी, जिनकी आपस में कभी नहीं बनती है, जो वक़्त-बवक़्त एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से भी बाज़ नहीं आतें. आज के इस मंच पर ख़ास तौर से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी वली रहमानी, जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अरशद मदनी व महमूद मदनी, जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के मुहम्मद जाफ़र, जमीयत अहले हदीस के असग़र इमाम मेहदी सल्फी, इत्तेहाद मिल्लत कौंसिल के तौक़ीर रज़ा खान, ऑल इंडिया मिल्ली कौंसिल के डॉ. मंज़ूर आलम, दारुल उलूम देवबंद के अबुल क़ासिम नुमानी, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के नावेद हामिद और दिल्ली के कश्मीरी गेट शिया मस्जिद के इमाम मोहसिन तक़्वी मौजूद रहें.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आज सबको एक मंच पर लाकर क़ौम के हक़ में आवाज़ बुलंद करने और इत्तेहाद क़ायम रखने का ऐलान किया.
लेकिन सवाल यह है कि आख़िर सरकार पर इस इत्तेहाद का कितना असर पड़ेगा? क्या सरकार बोर्ड के नुमाइंदों से बातचीत का कोई रास्ता निकालेगी या फिर पूरे मामले को सियासी फ़ायदे की लेबोरेट्री के तौर पर देखा जाएगा? यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अभी कई सवाल भविष्य के गर्भ में है, मगर सुगबुगाहट बताती हैं कि यह मसला आसानी से ख़त्म होने वाला नहीं है.