TwoCircles.net Staff Reporter
लखनऊ : भोपाल के केन्द्रीय कारागार से प्रतिबंधित संगठन सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) से कथित रूप से जुड़े आठ युवकों का जेल से भागना और फिर 8 घंटे के अंदर ही एनकाउंटर में मारे जाने के मामले पर अब सवाल उठने शुरू हो चुके हैं.
उत्तर प्रदेश की सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने आतंकवाद के आरोप में क़ैद आठ युवकों की फ़रारी व मुठभेड़ को फ़र्ज़ी क़रार दिया है.
रिहाई मंच के मुताबिक़ सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो क्लिप को बुनियाद बनाकर कहा है कि –‘वीडियो में जिस तरह शव दिख रहे हैं, उससे साफ़ है कि उन्हें मारकर फेंका गया है. यही नहीं, जिस तरह से एक पुलिस वाला एक शख्स पर गोली चला रहा है और पीछे से गालियों के साथ एक आवाज़ आ रही है कि मत मार वीडियो बन रहा है, से साफ़ हो जाता है कि मारने बाद पुलिस मीडिया के सामने अपने को सच साबित करने के लिए मुठभेड़ का नाटकीय रुपांतरण कर रही है.’
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए मंच ने सवाल उठाया कि कल होने वाले मध्य प्रदेश स्थापना दिवस को लेकर बहुसंख्यक आवाम में दहशत फैलाने के लिए क्या पुलिस ने इस घटना को अंजाम दिया? मुठभेड़ के नाम पर शिवराज सिंह अपने आपराधिक कृत्य में जनता को भागीदार बनाकर अपने ऊपर उठने वाले व्यापम जैसे भ्रष्टाचारों के सवालों को दबाना चाहते हैं. मंच ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के नेतृत्व में न्यायिक जांच की मांग की है.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने बताया कि मारे गए ज़ाकिर हुसैन के पिता बदरुल हुसैन से इस घटना के संबंध में बात हुई. वे इस घटना से काफी स्तब्ध थे. उन्होंने बताया कि उनका एक और बेटा अब्दुल्ला उर्फ़ अल्ताफ़ हुसैन भी जेल में बंद है. उसकी सुरक्षा को लेकर वह बेहद चिंतित थे. मारे गए युवकों में कई कुछ केसों में बरी भी हो चुके हैं. परिजनों का सवाल है कि 33 फुट ऊंची दीवार को कोई कैसे फांद कर भाग सकता है.
राजीव यादव ने कहा कि फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारे गए लोगों के पास से पुलिस जिस तरह विस्फोटकों और हथियारों की बात कह रही है, वह स्पष्ट करता है कि इसका सहारा लेकर पुलिस और बेक़सूर लोगों को फंसाने की पटकथा तैयार कर चुकी है. परिजनों ने कई बार जेल में सुरक्षा को लेकर सवाल उठाया पर उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई. कुछ परिजनों का तो यहां तक आरोप है कि वीडियो कांफ्रेंसिग के ज़रिए होने वाली सुनवाई में बिना वीडियो कांफ्रेंसिग के ही गवाहों के बयान दर्ज कर दिए जाते हैं और पुलिस की कहानी के मुताबिक़ गवाही न देने पर जज खुद ही बयान को सुधरवाते हैं. ऐसे हालात जब मध्य प्रदेश की न्यायालयों के हैं, तो इससे समझा जा सकता है कि जेलों की क्या स्थिति होगी.
राजीव यादव ने बताया कि आज सुबह जब हाजी फैसल जो कि आतंकवाद के मामले से बरी हो चुके हैं भोपाल से अपने साढू के वालिद की इंतक़ाल की मिट्टी से लौट रहे थे, तो उन्हें सुबह नौ-सवा नौ बजे के तक़रीबन पुलिस ने चलती बस से उतरवाया और पूछताछ की. उसके बाद जब वे घर पहुंच गए तो फिर 10 बजे के क़रीब नरसिंहगढ़ थाने की पुलिस ने उन्हें फिर बुलवाया. उन्होंने यह भी बताया की बरी होने के बावजूद आज भी जब भी कोई पीएम या वीवीआईपी का दौरा होता है तो उन्हें थाने बुला लिया जाता है जिससे वह काफी परेशान हो चुके हैं.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि भोपाल में हुई घटना के बाद देश के विभिन्न जेलों में कैद आतंक के आरोपियों के परिजन काफी डरे हुए हैं कि कहीं इंसाफ़ मिलने से पहले ही उनके बच्चों का क़त्ल न कर दिया जाए, जिस तरह से यर्वदा जेल में क़तील सिद्दीकी और लखनऊ में खालिद मुजाहिद का पुलिस ने हिरासत में क़त्ल कर दिया था. ऐसे में रिहाई मंच ने देश के विभिन्न जेलों में बंद आतंक के आरोपियों की सुरक्षा की गांरटी की मांग की है ताकि टेरर पॉलिटिक्स का असली चेहरा सामने आ सके न कि बेगुनाहों की लाशें.
वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने भी मीडिया से बातचीत में इस पूरे मामले पर प्रश्न-चिन्ह लगाया है. ओवैसी का सवाल है कि –‘भोपाल की हाई सिक्योरिटी जेल से इन आठ लोगों का भाग जाना, और भागने से पहले वहां पर एक सिक्योरिटी गार्ड को जान से मार देना और फिर 10 घंटे के बाद 10 किलोमीटर के अंदर एनकाउंटर हो जाना. अगर हम उनकी लाशें देखते हैं तो पैरों में जूते हैं, हाथों में घड़ी है, कलाई में बैंड और कमर में बेल्ट भी बंधी है. मगर जब भी कोई अंडरट्रायल होता है तो उनको ना तो जूते पहनने की इजाज़त होती है और ना ही बैंड या घड़ी लगा सकते हैं. फिर ये कैसे मुमकिन है. यह पूरा मामला संदिग्ध है. सुप्रीम कोर्ट को इस पर जांच बिठानी चाहिए.’