एक सुनहरा सबक़ है शामली की नग़मा मंसूरी का यूनिवर्सिटी टॉपर बनना

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net


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शामली : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ग्रामीण पृष्ठभूमि और पिछड़ेपन से जुड़ी ख़बरों को लेकर चर्चा में रहने वाले शामली ने इस बार गौरव की अभिव्यक्ति दी है. यहां की नग़मा मंसूरी ने लड़कियों की तालीम के लिए बने मुश्किल माहौल में मेरठ विश्वविद्यालय टॉप किया है.

नग़मा की क़ाबिलयत का अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि उसकी किसी रिश्तेदार, जान-पहचान या उसके समाज की किसी भी लडक़ी ने ऐसा नहीं किया है, सिर्फ़ उनकी बहन के अलावा. बहन की बड़ी बहन तबस्सुम मंसूरी 2014 में यूनिवर्सटी टॉप कर चुकी हैं.

सिर्फ़ आठवीं तक स्कूल गए अब्बा और कभी स्कूल न गई माँ की दोनों बेटियां यूनिवर्सिटी टॉप करती हैं तो यह ‘शैक्षिक चमत्कार’ ही है.

नग़मा के पिता मोहम्मद इस्लाम शामली के सब्ज़ी मंडी में एक आड़त चलाते हैं. हालांकि उनका एक बेटा कंप्यूटर इंजीनियर है. उनकी बीवी फ़रज़ाना मंसूरी कभी स्कूल नहीं गई, मगर बातचीत में अंग्रेज़ी के अल्फ़ाज़ बोल लेती हैं. वो हमसे बताती हैं कि बच्चों ने सिखाई है.

नग़मा को पिछले सोमवार मेरठ विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश के गवर्नर राम नाईक से स्वर्ण पदक मिला है.

उनकी एक रिश्तेदार मेहनाज़ हमें बताती हैं, भाई इस्लाम की लड़की पढ़ने-लिखने में तेज़ है. उसे सोने का सिक्का मिला है.

वहीं नग़मा का कहना है कि, सोने के मेडल की बात अलग है, मगर सबसे आगे रहने जो अहसास है वो एक गाड़ी सोने में भी नहीं खरीदी जा सकती है. समाज को थोड़ा ऊंचा होकर सोचना चाहिए.

नग़मा की पढ़ाई-लिखाई बेहद मुश्किल हालात में हुई है. बावजूद इसके उन्होंने फिज़िक्स में टॉप किया है. यहां गौरतलब ये भी है कि अमूमन यहां की लड़किया साइंस नहीं पढ़ती, लेकिन नग़मा के हौसलों की दाद दीजिए कि उसने बैचलर और मास्टर दोनों ही फिज़िक्स में किया है.

नग़मा कहती हैं, साईंस बोरियत पैदा नहीं करता. इसमें हमेशा नया सीखने को मिलता है. लेकिन हां, इतिहास बहुत बोरिंग है, वही पुरानी बात… अब अकबर-बीरबल से अच्छा तो न्यूटन आइंस्टीन को पढ़ना ही है. इतना बोलकर वो हंस देती हैं.

नग़मा बताती हैं कि, जब बाजी (बड़ी बहन) ने टॉप किया और उनको सम्मान मिला तो सबने कहा कि यह (नग़मा) भी पक्का टॉप करेगी. सब मानते थे कि मैं पढ़ाई-लिखाई में तेज़ हूं.

नग़मा के मुताबिक़ उन्होंने हाई स्कूल और इंटरमीडियट में भी स्कूल टॉप किया था, मगर यूनिवर्सटी टॉप करने का मतलब है 25 हज़ार बच्चों में सबसे आगे आ जाना.

नग़मा अब पीएचडी की तैयारी कर रही हैं. क्योंकि अब वो प्रोफेसर बनना चाहती हैं, ताकि दूसरी लड़कियों को प्रेरित कर सकें.

शामली में अक्सर दबंगों का दबदबा रहता है. 2013 में दंगो के दौरान यहां नफ़रत बहुत बढ़ गई. न जाने कितनी ही लड़कियों की ज़िन्दगी बर्बाद हो गई. बहुत सारे मुस्लिम समाज के बच्चे-बच्चियों ने स्कूल जाना छोड़ दिया. वैसे भी शामली के आसपास के इलाक़ों में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं समझा जाता, इसके बावजूद नग़मा पढ़ीं और उन्होंने शामली के आर.के. पीजी कॉलेज का नाम मशहूर कर दिया.

नग़मा कहती हैं कि, कुछ लोगों के करनी की सज़ा सब भुगतते हैं. मेरे अब्बू को अपना काम छोड़कर मुझे स्कूल पहुंचाने व लेने जाना पड़ता है. जबकि वो वक़्त पैसे कमाने के लिहाज़ से सबसे अहम वक़्त है.

जब हमने नग़मा के पिता इस्लाम साहब से ये सवाल किया कि बच्चियों को पढ़ाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली तो वो बताते हैं, मेरे पिता हाजी मंगते का आड़त का कारोबार था. मुनीम अक्सर हिसाब में गड़बड़ करते थे. फिर उन्होंने मुझे पढ़ाया. लेकिन मैं सिर्फ़ इतना ही पढ़ पाया कि हिसाब किताब रख सकूं, मतलब आठवीं. लेकिन इतनी सी पढ़ाई से मेरी समझ में शिक्षा का मतलब समझ में आ गया. बस मैंने बच्चों को पढ़ाने में पूरी ताक़त झोंक दी. अब ख़ास बात यह है कि बड़ी बेटी तब्बसुम ने मैथेमेटिकस में मास्टर किया है. नग़मा के चारों भाई भी उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं.

मां फ़रज़ाना बुढ़ाना की हैं. वो बताती हैं कि, किसी ने कभी सामने आकर तो नहीं कहा कि लड़कियों को मत पढ़ाना, मगर हां, लोग आपस में तरह-तरह की बात ज़रूर करते थे. लेकिन अब मुझे खुशी इस बात की है कि सभी रिश्तेदार और पड़ोसी अपनी लड़कियों को नग़मा जैसी बनने को कहते हैं.

नियमित तौर पर नमाज़ पढ़ने वाली हंसमुख नग़मा को उनकी बड़ी बहन तबस्सुम कहती हैं —इसको अल्लाह की तरफ़ से थोड़ा सा ज्यादा दिमाग़ मिला है.

नग़मा और उनकी बड़ी बहन तबस्सुम का मुश्किल हालातों में पढ़ाई करके यूनिवर्सिटी टॉपर बनना यक़ीनन शामली की लड़कियों के लिए एक सुनहरा सबक़ की तरह है. इनकी ये कामयाबी इलाक़े के दूसरी लड़कियों को भी हौसला दे रही है.

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