आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
मुज़फ्फरनगर : पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले मुज़फ्फरनगर दंगों की छाप उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव के लिये 11 फरवरी को होने वाले पहले चरण के मतदान से पहले साफ दिखाई पड़ रही है. 2013 में अगस्त से सितम्बर के बीच मुज़फ्फरनगर, शामली, सहारनपुर तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में हुए दंगों ने करीब 50 लोगों की जान ले ली थी. डेढ़ सौ से अधिक घायल हुए थे. हजारों लोगों को अपने ही प्रदेश में शरणार्थी बनकर रहने पर मजबूर होना पडा था.
चुनाव में खासतौर पर शामली के कैराना से एक समुदाय विशेष के पलायन का मामले ने भी ज़ोर पकड़ लिया. करीब आठ महीने पहले भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने कैराना से पलायन का मामला उठाया था. इस पर खूब राजनीति हुई, विधानमंडल के दोनो सदनों में भी इसे लेकर गरमागरम बहस हुयी थी. मुज़फ्फरनगर दंगों ने उस समय समाज में स्पष्ट रुप से विभाजन रेखा खींच दी थी, हालांकि इसे पाटने की भी कोशिश की गयी. दंगों में एक हजार से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हुई थी और दस हजार से ज्यादा को नजरबंद कर दिया गया था. कवाल गांव में छेड़छाड़ की मामूली घटना से पूरे इलाके में नफरत फ़ैल गयी थी. उस समय का आलम यह था कि एक वर्ग दूसरे वर्ग को शक की निगाह से देखता था.
दंगों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य दल एक दूसरे के निशाने पर थे. भाजपा सांसद कुंवर भारतेन्दु सिंह, हुकुम सिंह, विधायक सुरेश राणा, संगीत सोम, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पूर्व सांसद कादिर राणा, नूर सलीम, मौलाना जमील और कांग्रेस के सैय्यदजुमा जैसे राजनेताओं को आरोपी बनाया गया था. स्टिंग आपरेशन की वजह से दंगों को लेकर सपा के वरिष्ठ नेता और नगर विकास मंत्री मोहम्मद आजम खां भी सुर्खियों में रहे.
प्रथम चरण में मुज़फ्फरनगर दंगों के आरोपी संगीत सोम और सुरेश राणा के चुनाव क्षेत्र में भी मतदान होना है. दोनो दंगे के आरोपी हैं. संगीत सोम थानाभवन क्षेत्र से और सुरेश राणा सरधना सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. अन्य चरणों की अपेक्षा प्रथम चरण का चुनाव काफी संवेदनशील माना जा रहा है. सांप्रदायिक दृष्टि से राज्य का पश्चिमी इलाका संवेदनशील है. मुजफ्फरनगर दंगों के बाद इसकी संवेदनशीलता और भी बढ़ गयी. राजनीतिक दल अपने-अपने पक्ष में मतों का ध्रुवीकरण कराना चाहते हैं. भाजपा नेता इलाके के दौरों में दंगों का जिक्र कर रहे हैं, हालांकि मुख्यमंत्री मुज़फ्फरनगर की अपनी रैली में दंगों पर कुछ भी बोलने से बचते रहे. दंगों के बाद पहली बार मुज़फ्फरनगर में पीड़ितों से मिलने गये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि दंगे का यह काला धब्बा उन पर जीवन भर रहेगा. इस बयान से ही मुज़फ्फरनगर दंगों की भयावहता का अंदाज़ लगाया जा सकता है. मौजूदा चुनाव में दंगों की छाप स्पष्ट नजर आ रही है, राजनीतिक दल क्षेत्र में इसे किसी न किसी तरीके से मुद्दा बना रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इसका जिक्र चुनाव घोषणापत्र जारी करते समय भी किया था. संगीत सोम ने दंगों से जुड़े वीडियो को अपने प्रचार का आधार भी बनाना चाहा था, जिसे चुनाव आयोग की मुस्तैदी से टाल दिया गया. भाजपा नेता मुज़फ्फरनगर के आसपास के इलाकों में कर्फ्यू लगवाने का ऐलान कर चुके हैं. मुज़फ्फरनगर दंगे बसपा के भी चुनावी प्रचार का प्रमुख आधार बनकर आए हैं. सपा को भाजपा जितना ही दोषी करार देते हुए बसपा सुप्रीमो कहती रही हैं कि सपा ने मुस्लिमों के साथ धोखा दिया है. मायावती का दलित-मुस्लिम एकता का समीकरण भी इन्हीं दंगों की पृष्ठभूमि पर जन्म लेता है.
मौजूदा चुनावों में प्रथम चरण में दंगा प्रभावित रहे क्षेत्रों में भी मतदान होना है. दंगों के समय दोनो वर्गों के लोग मुखर थे, लेकिन समय के साथ क्षेत्रवासियों की मुखरता में कमी आयी लेकिन ‘कसक’ अभी भी देखी जा रही है. दंगों के पहले आमतौर पर जाटबहुल सूबे के पश्चिमी इलाकों में यह जाति मुसलमानों के साथ मिलकर वोट करती थी, लेकिन दंगों के बाद इन दोनो में दूरियां बढ़ गयीं. लोकसभा चुनाव में ज्यादातर जाटों ने मुसलमानों के साथ मिलकर मतदान नहीं किया. जाटों ने अपनी पार्टी समझे जाने वाले राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को भी दरकिनार कर मोदी के नाम पर भाजपा को वोट दे दिया. जाटों के सबसे बड़े नेता रहे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र और रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को बागपत और पौत्र जयन्त चौधरी को मथुरा में साथ नहीं दिया और दोनों ही चुनाव हार गये. प्रथम चरण में शामली, मुज़फ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, बुलन्दशहर, अलीगढ, मथुरा, आगरा और एटा जिलों की कैराना, थानाभवन, शामली, बुढाना, चरथावल, पुरकाजी(सु़), मुज़फ्फरनगर, खतौली, मीरापुर, छपरौली, बडौत, बागपत, शिवालखास, सरधना, हस्तिनापुर(सु), किठौर, मेरठ कैन्ट, मेरठ, मेरठ दक्षिण, लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद, मोदीनगर, नोएडा, दादरी, जेवर, धौलाना, हापुड़, गढमुक्तेश्वर, सिकंदराबाद, बुलन्दशहर, स्याना, अनूपशहर, डिबाई, शिकारपुर, खुर्जा(सु), खैर(सु), बरौली, अतरौली, छर्रा, कोल, अलीगढ, इगलास (सु), छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा, बलदेव, हाथरस, शाहाबाद, सिकन्दराराव, एत्मादपुर, आगरा कैंट(सु), आगरा दक्षिणी, आगरा उत्तरी, आगरा ग्रामीण (सु), फतेहपुर सीकरी, खैरागढ़, फतेहाबाद, बाह, टुंडला(सु), जसराना, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, सिरसागंज, अलीगंज, एटा, मरहरा, जलेसर (सु), कासगंज, अमनपुर और पटियाली क्षेत्रों में मतदान कराये जायेंगे.