दंगों के बाद क्या होगा मुज़फ्फरनगर में चुनाव का रुख?

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

मुज़फ्फरनगर : ये शहर अब चुनावों में उतर रहा है, लेकिन सच है कि इस इलाके ने चुनाव के पहले क़त्लेआम देखा है. यहीं इंसानियत शर्मसार हुई थी और उत्तर प्रदेश कलंकित हुआ था. अब यहां चुनाव हैं और आम जनमानस का दिल अब भी दहशत में है.


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मुजफ्फरनगर दंगों में पचास हज़ार से अधिक की आबादी को अपने ही क्षेत्र में शरणार्थी होना पड़ा था. मुज़फ्फरनगर में पहले चरण में चुनाव होगा. रोजी-रोटी के लिए पढ़ाई बीच में छोड़ने को मजबूर हुए जमीर बुढ़ाना के रहने वाले है और 19 साल के है अपने डर को जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘हम उन दंगों को कभी नहीं भूल सकते. उसके लिए भाजपा और सपा दोनों ही जिम्मेदार हैं. ये राजनीतिक दल हैं और राजनीतिक लाभ के लिए कुछ भी कर सकते हैं.’

हाफ़िज़ जाकिर अगस्त की उस काली रात को याद करते हैं, जब भीड़ ने मुज़फ्फरनगर के खतौली में बुनकरों के एक कारखाने में आग लगा थी और उनके साथियों की हत्या कर दी थी. अब दिहाड़ी मजदूरी करने वाले जाकिर कहते हैं, ‘काम की तलाश में मैंने खतौली छोड़ दी. लेकिन जब मुझे काम नहीं मिला तो मैंने दिहाड़ी मजदूरी शुरू कर दी. दंगों ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी.’ लेकिन ऐसा लगता है कि इन दंगों ने इलाके के मुस्लिमों को एक कर दिया है. इनमें से अधिकांश लोगों ने कहा कि भाजपा को रोकने के लिए उनके पास सबसे अच्छा विकल्प अखिलेश यादव ही हैं.

मुज़फ्फरनगर के खालापार इलाके में सुबह 8 बजे के करीब कुछ मुस्लिम युवा आपस में बातें कर रहे हैं. उनमें से एक​ ​40 वर्षीय सभासद ​​​असद जमा कहते हैं, ‘अखिलेश ने ढेरों विकास कार्य किए हैं. वह भेदभाव नहीं करते. लोग उन्हीं को वोट देंगे. कांग्रेस से गठबंधन करने का सपा को फायदा मिलेगा.’ आसपास खड़े युवक उनका समर्थन करते हैं. एक अन्य 35 वर्षीय युवा वसीम मंसूरी कहते हैं, ‘भाजपा खराब नहीं है, लेकिन उनकी कथनी और करनी में अंतर है. वे कहते तो हैं कि ‘सबका साथ-सबका विकास’ लेकिन वास्तविकता अलग है. संजीव बालियान और संगीत सोम उल्टे सीधे बयान देते रहते हैं, लेकिन पार्टी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती.’

सपा ने पूर्व मंत्री चितरंजन स्वरूप के बेटे गौरव स्वरूप को मुजफ्फरनगर सदर से अपना प्रत्याशी बनाया है. गौरव पिछले वर्ष उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी कपिल देव अग्रवाल से हार गए थे. चितरंजन स्वरूप का देहांत हो जाने के कारण उपचुनाव कराना पड़ा था. भाजपा ने इस बार फिर अग्रवाल को ही टिकट दिया है. उपचुनाव में बसपा ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था, जिसके चलते दलित वोट अग्रवाल की ओर चला गया था. अग्रवाल और गौरव के अलावा इस सीट पर 14 उम्मीदवार और खड़े हैं, जिनमें बसपा के राकेश शर्मा और रालोद की पायल माहेश्वरी शामिल हैं.

संयोग से सपा, भाजपा और रालोद तीनों ही दलों के उम्मीदवार बनिया समुदाय से हैं, जबकि बसपा उम्मीदवार ब्राह्मण है. मल्लूपुरा के मोहम्मद शमशाद खान कहते हैं, ‘मुजफ्फरनगर के मुस्लिमों में मतभेद है. शिया बसपा के पक्ष में मतदान करेंगे और सुन्नी सपा के पक्ष में. लेकिन खालापार में पड़ने वाले वोट निर्णायक होंगे.’

बसपा यहां से कभी जीत नहीं सकी है, लेकिन बीते पांच बार से उसे 20 से 30 फीसदी मत मिलते आए हैं. यहां से भाजपा 1993, 1996 और 2007 में जीती, जबकि सपा को 2002 और 2012 में जीत मिली. इस विधानसभा क्षेत्र में तीन लाख के करीब मतदाता हैं, जिसमें 40 फीसदी मुसलमान हैं. मुसलमानों की ही तरह इलाके के हिंदू भी जाति और स्थानीयता के आधार पर बंटे हुए हैं.

मुज़फ्फरनगर रेलवे स्टेशन के पास दुकान चलाने वाले आशीष सिंह कहते हैं, ‘भाजपा इस बार मजबूत है. हिंदुओं के लिए यह एकमात्र विकल्प है.’ एक अन्य दुकानदार नवनीत कहते हैं कि हिंदू भी सपा प्रत्याशी को वोट देंगे, क्योंकि उनके पिता दिवंगत चितरंजन स्वरूप (गौरव स्वरुप के पिता)ने​​ ​दोनों समुदायों के लिए काम किया है.

​​साइकिल के कारोबारी 54 वर्षीय ​नवनीत गुप्ता ​केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले की भी निंदा करते हैं. उन्होंने कहा, ‘इस फैसले से सरकार ने क्या हासिल किया? इससे सिर्फ असुविधा पनपी. हमारा कारोबार ठप पड़ गया. इससे पहले मैं हर रोज दो-तीन साइकिलें बेच लेता था, लेकिन पिछले दो महीने के दौरान सिर्फ दर्जन भर साइकिलें बिक सकी हैं.’

वहीं कपड़ों की दुकान चलाने वाले 38 वर्षीय रवि कक्कड़ का कहना है, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि नोटबंदी से हमारा कारोबार खराब हुआ है, लेकिन मैं इसके लिए तैयार था. मुझे पता था कि कारोबार गिरेगा, लेकिन देशहित में मैंने किसी तरह काम चलाया.’ प्रेमपुरी इलाके में रहने वाले 38 वर्षीय सफाईकर्मी नरेश गौतम कहते हैं कि उपचुनाव में उनके समुदाय ने भाजपा को वोट दिया, लेकिन इस बार वे बसपा के पक्ष में वोट करेंगे.

नरेश ने कहा, ‘अगर दंगों के दौरान मायावती मुख्यमंत्री होतीं, तो स्थिति इतनी खराब नहीं हो पाती. वह काबिल नेता हैं.’ वहीं नरेश इस बात से भी इनकार करते हैं कि अधिकांश मुस्लिम बसपा के पक्ष में मतदान करने वाले हैं.

इलाके का जाट समुदाय भी भाजपा और रालोद के बीच बंटा हुआ है.​​ हालांकि दंगो को लेकर अब जाटों में भी गहरा पछतावा है. मीरापुर के रेस्टोरेंट स्वामी चौधरी धनवीर कहते हैं, ‘नेताओं ने बेड़ा गर्क कर दिया. व्यापार-प्यार सब चौपट कर दिया. किसान एकता टूट गयी और अब मिल मालिक मनमानी करते हैं.’

भाकियू के जिलाध्यक्ष राजू अहलावत कहते हैं, ‘मुजफ्फरनगर 20 साल पीछे चला गया है. दंगा दोनो समुदायों के खिलाफ षड्यंत्र था. समझने मे देर लगी. अब दोनों समुदायो को एक होकर साजिश करने वालों को जवाब देना चाहिए.’ कुतुबपुर के पूर्व ब्लॉक प्रमुख रवि किरण कहते है कि पछतावा सबको है और सब जानते है यह क्यों हुआ? ‘अब ऐसा कभी नही होंने देंगे, बेगुनाह ही मारे गए और बेगुनाह ही जेल में हैं.’

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