सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
मीरजापुर: ये उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जनपद है. थोड़ा सोनभद्र से लगायत है तो थोड़ा बनारस से. थोड़ा भदोही से भी लगता है. अपने मिट्टी और लकड़ी के कामों के लिए मीरजापुर बेहद प्रचलित है. यहां चुनार का किला है और हिन्दू धर्मावलंबियों की आस्था का स्थल विंध्यांचल है. पहाड़ है, झरने हैं और तो और यह फूलन देवी की संसदीय सीट भी रह चुका है.
लेकिन इतनी रोचक और भुनाए जा सकने वाली खूबियों के बावजूद मीरजापुर विधानसभा भाजपा के लिए एक अधूरे ख़्वाब और एक टीस के रूप मौजूद है.
दरअसल मीरजापुर में पांच विधानसभा सीटें हैं. मझवां, मड़िहान, मीरजापुर, चुनार और छानबे. छानबे सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इन सीटों पर भाजपा को क्यों समस्या है, लिखने का मतलब साफ़ है कि भाजपा इन पांच सीटों में से एक पर भी जीत नहीं दर्ज कर सकी है. तीन सीटें सपा के पास हैं, एक कांग्रेस के पास और बची हुई एक बसपा के पास. सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर या तो बसपा रही है या सपा. इन सीटों पर भाजपा तीसरा और चौथा स्थान बनाने में ही कामयाब हो सकी है. इसी के साथ मीरजापुर को भाजपा की टीस बताने का मतलब समझाना चाहें तो वह इसलिए कि यहां एनडीए के घटक दल अपना दल की अनुप्रिया पटेल सांसद हैं, लेकिन चुनाव प्रचार और क्षेत्र में दौरे के नाम पर वे नदारद हैं, इसलिए भाजपा का वोटबैंक भी लगभग नदारद है.
साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को सरसरी निगाह से देखें तो मझवां विधानसभा पर बसपा के प्रत्याशी रमेश चन्द्र बिंद ने जीत दर्ज की थी. 2012 में रमेश चन्द्र बिंद ने 83,870 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी जबकि सपा के राजेन्द्र प्रसाद दस हज़ार वोटों से पीछे छूट गए थे. राजेन्द्र प्रसाद ने 74,141 वोट पाए थे. मझवां विधानसभा सीट मीरजापुर की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है, जिसमें शहर के चारों ओर मौजूद गांव और बस्तियां मौजूद हैं. इस बार मझवां की सीट पर बसपा के टिकट पर तो रमेश बिंद ही खड़े हैं लेकिन सपा से इस बार राजेन्द्र प्रसाद को टिकट न देकर युवा प्रत्याशी रोहित शुक्ला ‘लल्लू’ को टिकट दिया गया है. भाजपा की ओर से इस सीट पर सुचिस्मिता मौर्य को टिकट दिया गया है.
अब आते हैं मीरजापुर विधानसभा सीट पर तो यहां बीते विधानसभा चुनावों में कैलाश नाथ चौरसिया ने 69,099 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी, जबकि मीरजापुर के ही साथ-साथ प्रदेश की राजनीति में जाने-पहचाने नाम रंगनाथ मिश्रा बसपा के टिकट पर 46,800 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. 2014 में लोकसभा चुनावों के बाद रंगनाथ मिश्रा ने भाजपा का दामन थाम लिया और अब फिर से बसपा में हैं. इस साल भी सपा ने कैलाशनाथ चौरसिया पर से अपना दांव नहीं हटाया है और वे पूर्ववत रूप से प्रत्याशी हैं. बसपा की ओर से इस सीट पर मुस्लिम चेहरे के रूप में मोहम्मद परवेज़ खान सामने आए हैं क्योंकि बसपा के पुराने चेहरे रंगनाथ मिश्रा अब भदोही से प्रत्याशी हैं. भाजपा ने विंध्याचल के प्रसिद्ध पंडा परिवार से ताल्लुक रखने वाले रत्नाकर मिश्रा को टिकट दिया है.
मड़िहान विधानसभा सीट के बारे में बात करें तो यह एक ऐसी विधानसभा सीट है, जिस पर रुझानों की बात करना या आंकलन करना भी एक बेमानी की तरह माना जा सकता है क्योंकि कालान्तर से यह सीट कांग्रेस के पास रही आई है. फिलहाल मड़िहान से दिवंगत कांग्रेसी नेता पं. कमलापति त्रिपाठी के पड़पोते ललितेशपति त्रिपाठी विधायक हैं. क्षेत्र में उनका दबदबा भी है और लोग उन्हें जानते भी हैं. बीते चुनाव की बात करें तो ललितेशपति त्रिपाठी ने 63,492 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी जबकि समाजवादी पार्टी एक सत्येन्द्र पटेल 54,969 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. इस बार सपा और कांग्रेस में गठबंधन है, इसलिए सपा अपना कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा करेगी. बसपा ने इस सीट पर अवधेश सिंह पटेल को खड़ा किया है, जिनके बारे में क्षेत्र में कोई सुगबुगाहट नहीं है. भाजपा ने इस सीट पर अभी तक कोई प्रत्याशी नहीं खडा किया है. अपना दल के लिए यह सीट छोड़ी गयी थी, लेकिन अपना दल खुद अपने पचड़े में फंसी हुई है कि उसे प्रत्याशी के चयन का ख़याल भी नहीं है. हालांकि भाजपा द्वारा इस पटेलबहुल सीट को अपना दल के लिए छोड़ना साफ़ बताता है कि भाजपा इस सीट पर प्रत्याशी को खड़ा करके कोई शर्मिंदगी मोल नहीं लेना चाहती है, क्योंकि इस सीट पर भी कांग्रेस और बसपा के बीच में लड़ाई होगी, जिसे कांटे की लड़ाई नहीं कहा जा सकता है.
छानबे, जो मीरजापुर की पश्चिमी छोर की आखिरी विधानसभा सीट है और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, पर सपा के कद्दावर नेता भाईलाल कोल राज कर रहे हैं. इस सीट के बारे में कहा जाता है कि यह मीरजापुर के गुच्छे से बाहर मौजूद है. अकसर विवादों में रहने वाले भाईलाल कोल की अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ है और उन्हें हरा पाना किसी प्रत्याशी के लिए मुश्किल है. शायद इसीलिए समाजवादी पार्टी ने भाईलाल कोल का टिकट बरकरार रखा है. इस सीट पर भी भाजपा ने कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है और इस सीट को अनुप्रिया पटेल के लिए रख छोड़ा गया है, लेकिन अभी भी अपना दल की अनुप्रिया पटेल की ओर से इस पर कोई प्रत्याशी घोषित नहीं किया जा सका है. हालांकि सोनेलाल पटेल गुट की ओर से राहुल कोल को टिकट देने की बात सामने आई है. बसपा ने धनेश्वर गौतम को टिकट दिया है, जो अक्सर अखबारों और न्यूज़ वेबसाइटों पर दिख जाते हैं, लेकिन क्षेत्र में मजबूत नहीं हैं. 2012 में इस सीट पर भाईलाल कोल ने 57,488 वोट पाकर जीत दर्ज की थी, जबकि बसपा के शशि भूषण 47,194 वोट पाकर दूसरे स्थान पर सिमट गए थे.
आखिर में चुनार सीट आती है. बनारस और मीरजापुर के बॉर्डर पर मौजूद चुनार विधानसभा सीट काफ़ी बड़ी है और यहां सपा के जगदम्बा सिंह विधायक हैं. जगदम्बा सिंह ने 2012 में 67,265 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी और दूसरे स्थान पर बसपा के घनश्याम लाल 46,557 वोटों के साथ रहे थे. बसपा ने इस सीट पर भी अपना प्रत्याशी बदल दिया है और इस बार अनमोल सिंह पटेल को टिकट दिया है. सपा की ओर से टिकट में कोई बदलाव नहीं है. भाजपा की ओर से पार्टी के पुराने नेता ओमप्रकाश सिंह के बेटे अनुराग सिंह को टिकट दिया गया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में ओमप्रकाश सिंह अपने बेटे के लिए टिकट के लिए लगे हुए थे, लेकिन सीट चली गयी अपना दल के खाते में. ऐसे में इलाके में यह अफवाह आम है कि उस समय का गम दूर करने के लिए अनुराग सिंह को टिकट दिया गया है. हालांकि यह भी माना जा रहा है कि भाजपा इस सीट पर जीत दर्ज कर सकती है क्योंकि अनुराग सिंह चुनार के इलाकों में जाने-पहचाने जाते हैं. ओमप्रकाश सिंह का फैक्टर भी काम कर सकता है ऐसे में इस सीट पर भाजपा लड़ाई करेगी, ऐसी प्रबल संभावना है.
तो कुल मिलाकर मीरजापुर की इन पांच सीटों में से भाजपा महज़ एक सीट पर लड़ाई की स्थिति में दिख रही है, जिस पर जीत के बादल भी थोड़े धुंधले दिख रहे हैं. ऐसे में बनारस के बाद मीरजापुर ऐसा जिला साबित होता जा रहा है, जिससे पूर्वांचल में भाजपा की स्थिति का असल अंदाज़ लग जाता है.