‘बिजनौर के नौशाद की गिरफ्तारी अखिलेश सरकार के मुस्लिम विरोधी चरित्र का ताज़ा उदाहरण’

TCN Staff Reporter

लखनऊ : आज से ठीक एक साल पहले बिजनौर का नौशाद पूरे 8 साल 9 महीने जेल में रहकर आतंकवाद के आरोप से बाइज़्ज़त बरी हुआ था, लेकिन खुद को मुसलमानों का मसीहा बताने वाली अखिलेश सरकार की पुलिस ने नौशाद को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया है.


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लखनऊ की सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने नौशाद को दुबारा गिरफ्तार किए जाने की इस घटना को अखिलेश सरकार के मुस्लिम विरोधी चरित्र का ताज़ा उदाहरण बताया है.

मंच ने आरोप लगाया है कि अखिलेश सरकार ने आतंकवाद के आरोपों में बंद बेगुनाह मुसलमानों को छोड़ने का वादा तो नहीं निभाया लेकिन जो लोग अदालतों से बरी हुए हैं उनके खिलाफ़ हाई कोर्ट में अपील करके उन पर आतंकी का ठप्पा लगाने के लिए बहुत उतावली है.

मंच 16 जनवरी को सरकारों द्वारा आंतकवाद के नाम पर मुसलमानों के उत्पीड़न के खिलाफ़ यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में सम्मेलन कर अखिलेश के मुस्लिम विरोधी चेहरे को बेनक़ाब करेगा.

मंच ने कहा कि अखिलेश बेगुनाहों को जेल भेज रहे हैं जबकि अपने परिवार के भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को संरक्षण दे रहे हैं.

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि पिछले साल जनवरी में 8 साल 9 महीने तक बेगुनाह होते हुए भी आतंकवाद के आरोप में जेल में रहने के बाद बरी हुए बिजनौर निवासी नौशाद के खिलाफ़ पुलिस ने झूठी रिपोर्ट लगा दी कि वे राज्य से बाहर फ़रार चल रहे हैं, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें आज 13 जनवरी को उनके गांव चक उदयचंद छामली ज़िला बिजनौर से गिरफ्तार कर लिया. जिसके बाद कस्टडी से ही नौशाद ने रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुऐब को फोन करके पूरा प्रकरण बताया.

राजीव यादव ने कहा कि रिहाई के बाद जहां होना तो यह चाहिए था कि बेगुनाहों को न छोड़ने के कारण अखिलेश यादव को उनसे माफ़ी मांगनी चाहिए थी और उनके पुर्नवास और मुआवजे की गारंटी करनी चाहिए थी. पर उल्टे 29 फरवरी 2016 को उच्च न्यायालय में उनकी रिहाई के खिलाफ़ अपील दायर कर दी.

उन्होंने कहा कि इस दौरान रिहाई मंच के अध्यक्ष मो. शुऐब से अखिलेश यादव ने एक मुलाक़ात में लीव टू अपील वापस लेने का आश्वासन दिया था. ठीक यही आश्वासन अपर महाधिवक्ता ज़फ़रयाब जिलानी और सपा विधायक आलमबदी ने भी दिया और लीव टू अपील वापस लेने की ख़बर मीडिया में भी आई. लेकिन ऐसा न कर अपने वादे से मुकरते हुए सरकार ने गुपचुप तरीक़े से 8 नवम्बर 2016 को अपील को अदालत में मंजूर कराया और 10 दिसम्बर 2016 को उनके खिलाफ़ गैर-ज़मानती वारंट जारी करवा कर फिर से उन बेगुनाहों की जिंदगी नरक बनाने की साजिश रच दी, जिसकी सुनवाई की तारीख 31 जनवरी है.

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मुलायम सिंह यादव को चाहिए कि आतंकवाद के नाम पर क़ैद बेगुनाहों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें क्योंकि वे लगातार इस मुद्दे पर मुसलमानों को गुमराह करते रहे हैं और अपने बेटे अखिलेश यादव को डिफेंड करते रहे हैं.

उन्होंने कहा कि मुलायम को तो अपने बेटे द्वारा बुढ़ापे में पार्टी से बेदख़ल कर दिए जाने का बहुत अफ़सोस है लेकिन उनकी पूर्ववर्ती सरकार और उनके बेटे की मौजूदा सरकार ने जिन नौजवान मुसलमानों को उनके घर परिवार से अलग करके जेलों में सड़ाया है उनके परिवारों के दर्द को भी समझना चाहिए. उनके लिए दूसरे बुजुर्गों की भावनाओं को समझने का यह सबसे अच्छा अवसर है.

शाहनवाज़ आलम ने पूछा कि जब मुलायम सिंह यह कह रहे हैं कि रामगोपाल अपने बेटे और बहू को बचाने के लिए मुसलमानों के हत्यारे अमित शाह से मिल कर सपा को कमज़ोर कर रहे हैं तो उनको यह भी बताना चाहिए कि बेगुनाह मुसलमानों को न छोड़ने की रणनीति अखिलेश-रामगोपाल की थी या खुद उनकी.

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