आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
बागपत/लखनऊ: रालोद ने 8 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. ये सभी सीटें रालोद के मजबूत गढ़ हैं. बागपत की तीनों सीटों पर पार्टी ने अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है. यह रालोद का दुर्ग कहा जाता है. यहां छपरौली से शहेंद्र सिंह चौहान, बड़ौत से साहब सिंह और बागपत विधानसभा से करतार सिंह भड़ाना को प्रत्याशी बनाया गया है.
ग़ाज़ियाबाद की दो सीटों और मथुरा की भी दो सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की गयी है. ये सभी जाटबहुल क्षेत्र हैं. रालोद की पहली सूची में एक भी मुसलमान प्रत्याशी नहीं शामिल है. लोनी से पूर्व विधायक बाहुबली मदन भैया को एक बार फिर टिकट दिया गया है. मोदीनगर से भी पूर्व विधायक सुदेश शर्मा प्रत्याशी बने हैं, छपरौली से पहले रालोद के विधायक रहे वीरपाल सिंह की जगह शहेंद्र सिंह चौहान को टिकट दिया गया है. बड़ौत से सपा में राज्यमंत्री का दर्जा पाकर मलाई काटने वाले साहब सिंह को पाला बदलने का इनाम दिया गया है. बड़ा फैसला बागपत सीट पर है, जहां धनबल के दम पर चुनाव लड़ने वाले खतौली विधायक करतार सिंह भड़ाना को टिकट मिल गया है. यहां पूर्व में बागपत लोकसभा सीट पर भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह ने रालोद मुखिया अजीत सिंह को हरा दिया था. इसका एक कारण यह भी है कि बागपत की दो विधानसभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने पहले ही सेंध लगा दी है, जिससे रालोद का दुर्ग टूटने के कगार पर है. हालांकि रालोद अपने दुर्ग को बचाने के लिए भरपूर प्रयास कर रही है. इसलिए प्रत्याशियों के चयन में भी गम्भीरता दिखाई गयी है ताकि अपनी खोई हुई विरासत को बचाया जा सके.
बसपा पहले ही अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है लेकिन बसपा विधायकों से यहां की जनता नाराज नजर आ रही है. समाजवादी पार्टी का घमासान पार्टी को पहले ही काफी नुकसान पहुंचा चुका है, जिसके चलते बागपत में भाजपा बनाम रालोद का चुनाव होना तय माना जा रहा है.
एकबानगी चुनाव पिछले चुनाव परिणाम पर नज़र डाल लेते हैं. जैसे छपरौली से साल 2012 के चुनाव में वीरपाल राठी रालोद से 69394 वोट लेकर विधायक बने. देवपाल बसपा से 47823 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे. मनोज कुमार सपा से 14103 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे जबकि बड़ौत विधानसभा लोकेश दीक्षित बसपा से 57209 वोट लेकर विधायक बने और अश्वनी तोमर रालोद से 51539 वोट पाकर दूसरे स्थान पर पहुंच गए. बागपत विधानसभा क्षेत्र से हेमलता चौधरी बसपा से 56957 वोट पाकर विधायक चुनी गयीं. और कोकब हमीद रालोद से 49294 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे, अब कोकब हमीद के बेटे बसपा से लड़ रहे हैं. साहब सिंह सपा से 41584 वोट पाकर तीसरे नंबर पर खिसक गए थे मगर अब रालोद के टिकट पर लड़ रहे हैं.
नीरज शर्मा भाजपा से 4916 वोट लेकर चौथे नंबर पर ठहर गए. यहां खास बात यह है कि चुनावो में भले ही रालोद को बसपा ने झटका दिया हो, लेकिन बसपा ने दूसरे स्थान पर असर बनाए रखा. हालांकि लोकसभा की सीट हारने के बाद रालोद खेमे को भारी झटका लगा और कई नेता रालोद छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये और कुछ सपा नेता रालोद में शामिल हो गए. लेकिन इस बार विधानसभा का चुनाव रालोद के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है और रालोद अपनी इज्जत बचाने के लिए भरपूर प्रयास कर रही है. वहीं भाजपा और सपा भी यहां सेंधमारी की काशिश में है. दोनों पार्टियां चाहती हैं कि बसपा और रालोद के इस गढ़ में किसी तरह अपना कब्जा हो हालांकि सपा में लंबे समय से अपनी पहचान बनाने वाले साहब सिंह के इस्तीफे के बाद सपा की हालत खस्ता है. उधर भाजपा भी किसान नेताओं तथा जाट बिरादरी के बलबूते फतह का फार्मूला तलाश रही है जबकि बसपा ने बागपत में अपना किला मजबूत कर लिया है. बड़ौत तथा बागपत सीट पर बसपा का कब्जा है.
बसपा इन सीटों पर अपना कब्जा बनाये रखना चाहती है. इसके लिए बसपा बड़ौत में अपने एमएलए तथा बागपत में नवाब कोकब हमीद के सहारे है. यहां कोकब का पुत्र बसपा का चेहरा है. इस सीट पर जाट व मुस्लिमवोट निर्णायक हैं, जिनका गणित बैठाने में पार्टियां लगी रहती हैं.
छपरौली विधानसभा सीट की बात करें तो यहां यमुना पर हरियाणा और छपरौली के बीच पुल का निर्माण होना है, जिसका वादा रालोद चौधरी चरण सिंह के समय से करती आ रही है. परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है. जल प्रदूषण को लेकर यहां की जनता बेहाल है. 200 से ज्यादा लोग जहरीला पानी पीकर मौत की नींद सो चुके हैं, लेकिन हिंडन नदी के किनारे बसे गांव की सुध लेने वाला कोई नहीं है जबकि पानी बचाने को लेकर अब तक करोड़ों रूपये प्रचार अभियान में खर्च किये जा चुके हैं.
यहां किसानों के बीच भी हरियाणा और यूपी की सीमा विवाद को लेकर संघर्ष रहता है. आये दिन फायरिंग होती रहती है, लेकिन सीमा विवाद नहीं सुलझाया जा सका है. यहां की चौगामा नहर पानी को तरस गयी है. आज तक नहरों में पानी नहीं छोड़ा गया है. बागपत विधानसभा सीट की बात करें तो यहां पर 1993 से लेकर 2012 तक रालोद से हमीद विधायक रहे, जिसके बाद बसपा ने इस सीट पर कब्जा किया, लेकिन यहां के हालात आज तक नहीं सुधरे है, जिससे यहां का व्यापारी पलायन करने को मजबूर है. बागपत और टटीरी से कितने ही व्यापारी पलायन कर चुके हैं। आये दिन रंगदारी के मामलों ने व्यापारियों की कमर तोड़कर रखी हुई है, वहीं गन्ने की समस्या बड़ी है. दिल्ली यमुनोत्री हाईवे निर्माण की मांग काफी समय से चली आ रही है, जिससे यहां का विकास रुका हुआ है. खेल प्रतिभाएं हरियाणा और दिल्ली के लिए जा रही हैं, जिससे यह जनपद पिछड़ता ही जा रहा है. इसलिए भी रालोद के सामने बड़ी चिंता है, मथुरा की तीनों जाटबहुल सीटें छाता,गोवर्धन और बलदेव से जाति समीकरण का ख्याल कर प्रत्याशी उतरे हैं. ये सभी प्रत्याशी दमदार हैं मतलब रालोद ने पहली चोट अच्छी की है.