‘अभी बासी खाई है, शाम के लिए कोई इंतज़ाम नहीं है…’

सिराज माही


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बहराईच : हर इंसान का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो, उस घर में उसका परिवार अपना वंश आगे बढ़ाए. ज़रा सोचिए उन लोगों पर तब क्या गुज़रती होगी जब बाढ़ उनके घर के साथ इस सपने को बहा ले जाती हो.

यह कहानी है उन लोगों की, जिनके घर हर साल बाढ़ में बह जाते हैं. ये लोग हर साल अपने आशियाने को बनाते हैं और हर साल बाढ़ इनके घरों के साथ-साथ इनके भविष्य को भी ले डूबती है.

बहराईच ज़िले के कैसरगंज विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव गोड़य्या नम्बर एक, गोड़य्या नम्बर दो, गोड़य्या नम्बर तीन, महाराजगंज और मंगल मेला में रहने वाले कुछ लोगों का दर्द कुछ ऐसा ही है. इन लोगों के घर पिछले साल या उससे पहले आई बाढ़ में बह गए. उसके बाद इन लोगों ने पल्ली तान कर तो किसी ने रोड पर रहकर बसर किया.

तमाम कठिनाईयों के बाद इन लोगों ने किसी तरह फूस का घर तो बना लिया, लेकिन इन लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट अभी भी बरक़रार है.

क़ैसरगंज के रानीबाग से एक रास्ता गांव गोड़य्या नम्बर एक, गोड़य्या नम्बर दो, गोड़य्या नम्बर तीन, महाराजगंज और मंगल मेला की तरफ़ जाता है. इस रास्ते पर थोड़ा आगे बढ़ने पर एक जगह ऐसी आएगी जब रोड ख़त्म हो जाएगी, लेकिन यहां आबादी ख़त्म नहीं होती. यहां भी लोग रहते हैं. ये वे लोग हैं जो बाढ़ से पीड़ित हैं. यह लोग मजबूरी में यहां रह रहे हैं, क्योंकि बाढ़ ने इनका सब कुछ छीन लिया है. 

यहां के मंशाराम बताते हैं कि पिछले साल मेरा गांव मकान सहित बाढ़ में बह गया. एक साल हो गया अब जाकर रहने के लिए एक छप्पर रख पाया हूं. तब से अब तक सरकार की तरफ़ से दी हुई पन्नी में रह रहे थे. बाढ़ के बाद मुआवज़े में सरकार ने हमें 6000 रुपए दिए थे. उन्हीं पैसों से यहां आकर एक ठाकुर से ज़मीन ख़रीदी थी.

मंशाराम बताते हैं कि यहां कोई रोज़गार नहीं है. खाने के लाले पड़े हैं. कल शाम को हमने खाना बनाया था, अभी बासी खाई है. अब शाम के लिए कोई इंतज़ाम नहीं है.

मंशाराम बताते हैं कि बाढ़ ने हमारा पीछा अब तक नहीं छोड़ा है. कई बार बाढ़ का पानी यहां तक आ जाता है. बाढ़ में खाना के साथ शौच जाने में भी दिक़्कत होती है. कई बार तो हम नाव पर बैठकर शौच करते हैं.

मंशाराम फिलहाल बहराईच ज़िले के कैसरगंज विधानसभा क्षेत्र के गजराज सिंह पुरवा बाबू राम मदही गांव में रह रहे हैं.

पास के गांव महाराजगंज में दुलारे अपने घर के आंगन की मिट्टी बराबर कर रहे हैं. वह बताते हैं कि पिछले साल घाघरा में कटान लगा था. उसमें मेरा घर बह गया. बाढ़ आने के बाद कई दिनों तक हमने बंधा (कच्ची रोड) पर गुज़र बसर किया. हमारे पास कुछ भैंसे थीं, उन्हें बेच कर कुछ ज़मीन ख़रीदी हैं. किसी पंच प्रधान ने ज़मीन नहीं दी तब ख़ुद ही ख़रीदा है. अब जाकर घर बन पाया है. यहां जब घर बनाने लगे तो लोगों ने घर में मिट्टी पटाई के लिए रोका. तब हमने दूर खेतों से मिट्टी लाकर यहां पटाई की है. इस बार अगर गंगा मैय्या छोड़ देंगी तो हमारा घर बचा रहेगा, वर्ना फ़िर दूसरा घर बनाना पड़ेगा.

दुलारे बताते हैं, कटान से अब तक मज़दूरी मेहनत करके किसी तरह ख़र्च चला. आधे पर किसी का खेत बोया. उसमें जो गल्ला हुआ उसमें से आधा खेत के मालिक को दे देना पड़ा. यहां खेत कम हैं, इसलिए मज़दूरी का काम भी नहीं मिलता. अगर तीन चार दिन के बाद काम मिलता भी है तो सौ रुपए मज़दूरी मिलती है. यूं समझ लो कि बस वक़्त गुज़ार रहे हैं. अजीब क़िस्मत है कि अब हमें मोहताज होना पड़ता है, वरना हमारे ही खेत में इतना गल्ला होता था कि साल भर आराम से खा सकते थे. लेकिन सब नदी में सब बह गया.

दुलारे थोड़ा ग़मगीन होकर बताते हैं कि अब अपने पास पैसा नहीं है तो कोई 100 रुपए की जगह 50 रुपए ही मजदूरी देता है. हमारी मजबूरी है तो हमें जाना पड़ता है. अगर मज़दूरी करने नहीं जाएंगे तो क्या खाएंगे. पहले हमारे पास जब सब कुछ था तब हम उतनी मज़दूरी लेते थे जितनी चलती है.

नागेसर जिनका अभी आधा घर ही घाघरा में कटा है. बताते हैं कि, यह घर गोड़य्या नम्बर 3 में आता है, लेकिन गांव का अभी कोई नाम नहीं है. अभी इसकी गिनती हो रही है. पहले हम घाघरा नदी के किनारे रहते थे. एक बार हमारा घर बहा तो दूसरी जगह पहुंचे. फ़िर एक बार कटा तो यहां पहुंचे. पिछले साल हमारा घर घाघरा में आधा बह गया, खेत भी चला गया लेकिन कोई मुआवज़ा नहीं मिला. एक अधिकारी से बताया तो कहा कि जब पूरा घर बह जाएगा तब मुआवज़ा मिलेगा.

गोड़य्या नम्बर दो में रहने वाले गोकुल प्रसाद बताते हैं कि यहां नदी किनारे बालू वाली ज़मीन है, इसमें खेती नहीं होती. मज़दूरी करके जितना कमाते हैं वह खाने भर का भी नहीं होता. गोकुल प्रसाद पहले बझौवा गांव में रहते थे. उनका गांव क़रीब चार साल पहले कटा था.

ज्ञानी राम शरन जो अभी गोड़य्या नम्बर तीन में रह रहे हैं. वह बताते हैं कि हमारा 20 लोगों का परिवार है जिसे चलाना थोड़ा मुश्किल है.

बालकानन्द यादव जो गोड़य्या नम्बर-2 के स्थानीय डॉक्टर हैं. बताते हैं कि मोदी सरकार की आवास और शौचालय योजना यहां दम तोड़ देती हैं. यहां अभी तक किसी को न तो शौचालय के लिए प्रोत्साहन दिया गया है न ही किसी को आवास के लिए कोई सहायता दी गई है.

बता दें कि ये बाढ़ से प्रभावित लोग महसी, क़ैसरगंज, फ़ख़रपुर और जरवल के क़रीब वाले गांवों से हैं. घाघरा नदी में पानी बढ़ने से इन इलाक़ों के गांव अक्सर बाढ़ से प्रभावित होते हैं.

दरअसल, ये बाढ़ से पीड़ित लोग अब भी घाघरा नदी पर बंधे बांध के आस पास ही रह रहे हैं. यहां कभी भी बाढ़ का पानी आ जाता है. कई बार बाढ़ की मार झेल चुके इन लोगों ने अपनी जान जोखिम में डाल फिर अपना आशियाना बनाया है. डिजिटल इंडिया और ‘सबका साथ सबका विकास’ का दम भरने वाली सरकार की इन लोगों की तरफ़ से इतनी बेरुख़ी है कि इन्हें उन क्षेत्रों में अब तक ज़मीन नहीं दिला सकी है, जहां घाघरा के बाढ़ का पानी इन क़िस्मत के मारों तक न पहुंच पाए.

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