18 अगस्त को रिलीज़ होगी मुज़फ़्फ़रनगर दंगो पर बनी फ़िल्म ‘मुज़फ़्फ़रनगर 2013’

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net


Support TwoCircles

मुज़फ़्फ़रनगर/मुम्बई : अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का सबब बने मुज़फ़्फ़रनगर दंगे पर बनी फ़िल्म ‘मुज़फ़्फ़रनगर 2013’ आगामी 18 अगस्त को रिलीज़ की जाएगी.

पहले सेंसर बोर्ड ने इस पर आपत्ति जताई थी, मगर अब इसे यु/ए प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है.

फ़िल्म के निर्माता और लेखक मनोज बालियान जनपद के एक गांव मोरना के रहने वाले हैं. फ़िल्म की ख़ास बात यह है कि इसकी आधे से ज़्यादा शुटिंग उन्हीं स्थानों पर की गयी है, जहां दंगा हुआ था. जैसे पंचायत स्थल और जॉली नहर को फ़िल्म में हूबहू दिखाया गया है. 

फ़िल्म के निर्देशक दक्षिण की फ़िल्मों के चर्चित नाम हरीश कुमार हैं. हरीश के मुताबिक़ फ़िल्म को सच के क़रीब दिखाने के लिए ही मुज़फ़्फ़रनगर में ही शूटिंग की गई है.

हरीश अपने सभी फ़िल्म कलाकारों के साथ 3 महीने तक मुज़फ़्फ़रनगर में रहे. फ़िल्म की अभिनेत्री ऐश्वर्या देवन हैं, जो फ़िल्म में एक आईपीएस महिला का किरदार निभा रही हैं. इस किरदार को दंगे के समय यहां एसएसपी रही मंज़िल सैनी से प्रेरित बताया जा रहा है.

फ़िल्म के निर्माता व लेखक मनोज कुमार के मुताबिक़ फिल्म में दंगे को कलंक बताते हुए साम्प्रदयिक सौहार्द का सन्देश देने की कोशिश की गई है. दंगे ने मुज़फ़्फ़रनगर में सब कुछ बर्बाद कर दिया था. फ़िल्म की शूटिंग में दंगे का प्रारम्भ माने जाने वाला गांव कवाल भी है. 

ग़ौरतलब है कि इसी कवाल गांव में 2013 में तीन हत्याएं होने के बाद पंचायतों का एक दौर चला था, जिसके बाद दंगे भड़क उठे थे. 100 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और लाखों लोग बेघर हो गए थे. लोग अब भी इससे उबर नहीं सके हैं.

बुढ़ाना के प्रतिभाशाली अभिनेता और बजरंगी भाई जान फेम मुर्सलीम कुरैशी मुख्य खलनायक की भूमिका में हैं, जबकि देव शर्मा हीरो बने हैं. 2 घंटे की इस फ़िल्म का बजट 10 करोड़ बताया जा रहा है.

निर्माता मनोज बताते हैं कि दंगो ने उन्हें अंदर तक परेशान किया. वो जानवरों के कारोबार से जुड़े हैं जिसका सीधा ताल्लुक़ मूसलमानों से है. दंगों के बाद 1 साल तक कारोबार बिल्कुल ठप हो गया. उन्हें लगा कि कुछ अच्छा करना चाहिए, इसलिए मैंने अनुभव न होते हुए भी अपनी सारी पूंजी जोड़कर यह फ़िल्म बनाई, जिससे हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश जा सके.

मनोज कुमार का दावा है कि फ़िल्म देखने के बाद इलाक़े में जाट-मुस्लिम रिश्ते और मज़बूत होंगे और नफ़रत दूर होगी.

उनके अनुसार फ़िल्म में ऐसे कई दृश्य हैं, जब मुसलमान हिन्दुओं की जान बचाते हैं और हिन्दू मुसलमानों की. यह सभी सच पर आधारित है. हालांकि इस ट्रेलर देखने वाले लोग बताते हैं कि कई जगह तथ्यों के साथ काफ़ी बदलाव किया गया है. कई जगह मुस्लिम नेताओं को भड़काऊ भाषण देते हुए दिखाया गया है, जिसका हक़ीक़त के साथ कोई वास्ता नहीं है.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE