‘गांधी ने भी की है शेख़ गुलाब के साथ बेईमानी’

TwoCircles.net Staff Reporter


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मोतिहारी/बेतिया (बिहार) : महात्मा गांधी की कर्मस्थली चम्पारण के मोतिहारी शहर में चम्पारण सत्याग्रह के असल हीरो शेख़ गुलाब पर चम्पारण की ज़मीन से जुड़े पत्रकार अफ़रोज़ आलम साहिल द्वारा लिखे एक पुस्तक ‘शेख़ गुलाब : नील आन्दोलन के एक नायक’ लोकार्पण बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी व केन्द्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह के हाथों शनिवार को एक अन्तर्राष्टीय सेमिनार में हुआ. यह कार्यक्रम मोतिहारी शहर के राधा कृष्ण सिकारिया बीएड कॉलेज में ‘चम्पारण प्रेस क्लब’ की ओर से आयोजित किया गया था.

इस लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान डीएम अनुपम कुमार, एडीएम अरशद अली, विधायक प्रमोद कुमार, श्याम बाबू प्रसाद यादव, एमएलसी बब्लू गुप्ता, चौथी दुनिया के सम्पादक संतोष भरतिया के साथ-साथ देश दुनिया से आए सैकड़ों पत्रकार व विद्वान मौजूद थे.

इससे पूर्व शुक्रवार को बेतिया शहर के उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल (इमाम बाड़ा) में लोकार्पण व परिचर्चा का कार्यक्रम रखा गया. ये कार्यक्रम ‘अमन वेलफेयर एंड कल्चरल सोसाईटी’ की ओर से आयोजित किया गया था.

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जेपी आन्दोलनकारी रहे शहर के प्रसिद्ध समाजसेवी ठाकुर प्रसाद त्यागी कर रहे थे. उन्होंने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि, चम्पारण के शेख़ गुलाब ही ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने चम्पारण की धरती से देश के आज़ादी की लड़ाई का बीजारोपन किया और ख़ासतौर पर देश के किसानों को अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने की ताक़त दी.

उन्होंने कहा कि, चम्पारण सत्याग्रह में बाक़ी लोग तो टिमटिमाते हुए बल्ब थे. असली पावर-हाऊस तो  शेख़ गुलाब थे.

उन्होंने आरोप लगाया कि देश के तमाम इतिहासकारों ने एक ख़ास मानसिकता के तहत शेख़ गुलाब को नज़रअंदाज़ किया है. कड़वी सच्चाई तो यह है कि गांधी ने भी चम्पारण के साथ बेईमानी की है.

वहीं हिंदी के प्रसिद्ध कवि डा. गोरख प्रसाद ‘मस्ताना’ ने कहा कि, चम्पारण के पहले गांधी सिर्फ़ मोहनदास करमचन्द गांधी थे. उन्हें महात्मा बनाया इस चम्पारण ने, और इसका श्रेय जाता है सिर्फ़ शेख़ गुलाब, पीर मुहम्मद मूनिस और राजकुमार शुक्ल को.

मस्ताना ने भी स्पष्ट शब्दों नें कहा कि, गांधी ने भी शेख़ गुलाब के साथ बेईमानी की है. आख़िर उन्होंने अपनी आत्मकथा में इनका ज़िक्र क्यों नहीं किया, जबकि शेख़ गुलाब उनके साथ थे. यक़ीनन शेख़ गुलाब के साथ अन्याय हुआ है. लेकिन आज लेखक अफ़रोज़ साहिल ने उन्हें फिर से ज़िन्दा कर दिया है. 

इस अवसर पर इस पुस्तक के लेखक अफ़रोज़ आलम साहिल ने दोनों शहरों में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि, आज से क़रीब 110 साल पहले जब अंग्रेज़ों ने किसानों के ऊपर ज़ुल्म करना शुरू किया तो उसके विरोध में आवाज़ उठाने वाला पहले शख़्स शेख़ गुलाब ही थे. आज फिर से इस चम्पारण को एक शेख़ गुलाब की ज़रूरत है. क्योंकि किसानों पर वही ज़ुल्म आज भी हो रहा है. शायद अंग्रेज़ी शासनकाल में किसानों के धरना-प्रदर्शन पर अंग्रेज़ों ने गोली नहीं चलाई थी, किसानों को आत्मदाह करने की नौबत नहीं आई थी, लेकिन आज आज़ाद भारत में इसी चम्पारण की इसी धरती चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में दो किसान आत्मदाह कर चुके हैं. विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस फायरिंग कर चुकी है.   

उन्होंने कहा कि, जब पूरा देश चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष का जश्न मना रहा है, ज़रूरत इस बात की है कि चम्पारण के नायकों व गुमनाम क्रांतिकारियों के बारे में जानकारी जुटाना बेहद ज़रूरी है.

उन्होंने कहा कि शेख़ गुलाब की तरह ही ऐसे बहुत से नाम हैं जो गहन शोध की मांग करते हैं. इनमें शीतल राय, पीर मुहम्मद मूनिस, हरवंश सहाय, हाफ़िज़ दीन मुहम्मद, हाफ़िज़ मुहम्मद सानी, राधेमल मोटानी, संत राउत, खेन्हर राय, बत्तख मियां अंसारी, लोमराज सिंह व भीखू सिंह आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है.

साहिल ने कहा कि, इसमें कोई शक नहीं कि साठी के चांदबरवा गांव में जन्मे शेख़ गुलाब चम्पारण की धरती के असली गौरव हैं. चम्पारण के किसानों ने ‘तिनकठिया’ का जो दंश झेला, उसे सबसे पहले शेख़ गुलाब ने न सिर्फ़ खुद महसूस किया, बल्कि अंग्रेज़ों समेत उस समय की कांग्रेस के अगली सफ़ के नेताओं को भी महससू करा दिया. कड़वी हक़ीक़त यह है कि गांधी का चम्पारण आना यूं ही नहीं था. दरअसल, शेख़ गुलाब ने चम्पारण के गुमनाम मज़लूम किसानों की समस्याओं को इस शिद्दत से उठाया कि उस दौरान कांग्रेस पूरे लाव-लश्कर के साथ इस मुहिम में शरीक हो गई. यक़ीनन यह काम महात्मा गांधी की अगुवाई में हुआ और इसी चम्पारण सत्याग्रह से गांधी को पूरे देश में असली पहचान मिली. ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हम इस सच्चे देशभक्त को भूला बैठे हैं. अंग्रेज़ों ने तो सिर्फ़ उनकी ज़मीन छीनी थी, हम भारतीयों ने तो उनकी पहचान ही छीन ली है.

बताते चलें कि लेखक अफ़रोज़ आलम साहिल इससे पूर्व पीर मुहम्मद मूनिस पर एक किताब लिख चुके हैं और इन दिनों चम्पारण सत्याग्रह में किसानों की भूमिका पर काम कर रहे हैं.

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