तारोन दोद्राई की सीखने की ये ललक आपको हौसलों से भर देगी

प्रियंका सुबर्नो

झारखंड के खूंटी ज़िला के तोरपा ब्लॉक, ज़रिया पंचायत, रंगरू टोली गांव में स्थित ‘विलेज लेवल सर्विस सेंटर’ (वी.एल.एस.सी.) ग्राम स्तर सेवा केंद्र की उद्यमी तारोन दोद्राई की सीखने की ललक ने ये साबित कर दिया है कि भाषा बाधाओं को ख़त्म कर देती है.


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मां के बिना तीन भाई-बहनों के साथ बचपन का हर दिन उनके लिए चुनौती भरा था. ख़राब स्थिति से जूझ रहे परिवार में बड़ी बहन होने के नाते वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे सकी. कारणवश उनकी शिक्षा कमज़ोर होती गई. परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्होंने मुरमुरे बनाकर बेचें, जिससे लगभग 500 रूपये से 1000 रूपये की आय होने लगी. स्थिति कुछ अच्छी हुई तो चांदी के कुछ गहने भी ख़रीदे, लेकिन अचानक आई वित्तीय संकट के कारण कुछ वर्षों बाद सारे आभूषण बेचने पड़ें.

वो 17 साल की थी, जब शादी हो गई. परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करना कठिन हो रहा था.  पति मज़दूरी करते थे. दो साल बाद वह पति के साथ पहले हिमाचल प्रदेश और फिर गुजरात चली गयीं, जहां उनके पति हिमाचल प्रदेश में सड़क निर्माण में रोज़ मज़दूरी करते थे. जबकि गुजरात में दोनों ने एक प्रिंटिंग प्रेस में मजदूरी का काम किया. परंतु गुजराती भाषा का न आना पति-पत्नी के लिए समस्याएं खड़ी कर रहा था. क्योंकि वह केवल अपनी मातृभाषा (मुंडारी) ही जानते थे.

उसके बाद वह कुछ युवा लड़कियों से मिली, जिन्होंने उन्हें हिन्दी सिखाई और लोगों से बात करना थोड़ा सा आसान हो गया. इस बारे में वो कहती हैं कि, ‘उन्होंने हर जगह ग़रीबी की समस्या को देखा और यह सोचा कि अगर वह ठान लें तो खुद इससे बाहर निकल सकती हैं.’

उन्होंने अपने परिवार के साथ बेहतर जीवन जीने का सपना देखा ताकि उनके दोनों बच्चे एक अच्छे स्कूल में पढ़ सकें क्योंकि वित्तीय समस्या के चलते वो खुद पढ़ न सकीं थी.

हिमाचल प्रदेश और गुजरात दोनों स्थानों पर किए काम के कारण उन्होंने 10,000 रुपये से अधिक की बचत की और मुरमुरे बनाने के कौशल को अपने परिवार के लिए आय का एक स्रोत बना दिया. हालांकि उन्हें ये भी डर था कि पति शराब पर पैसा खर्च करेगा. इसलिए बैंक में बचत खाता खोलने का निर्णय लिया. बैंक गई परंतु राशन कार्ड अथवा आधार कार्ड नहीं होने के कारण खाता नहीं खुलवा सकी.

वर्ष 2015 में झारखंड वापस आने के बाद वो अपने गांव में अटलबा महिला मंडल (स्वयं सहायता समूह) की सदस्य बन गई और समूह की बचत से उन्होंने एक बैंक खाता खोलने का फैसला किया, जिसे वह अब नियमित रूप से चला रही हैं.

इस समय तारोन एक सफल उद्यमी के रुप में अपने गांव में सेवा केंद्र चला रही हैं, जहां लोगों को आवश्यकताओं की सारी चीजें प्राप्त हो जाती हैं. इस काम को करने में मदद की उद्योगिनी नामक संस्था ने. आपको बता दें कि 1992 में बनी इस संस्था का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं का आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण करना है. इसी संस्था से तारोन ने प्रशिक्षण हासिल किया है.

तारोन दोद्राई बताती हैं कि, ‘व्यापार के इस प्रशिक्षण ने उन्हें व्यापारियों के साथ बातचीत करने में बहुत मदद की. प्रशिक्षण ने उन्हें यह समझने का मौक़ा दिया कि समुदाय की मांग उनके उद्यम (रोज़गार) के माध्यम से कैसे पूरी की जा सकती है.’

तारोन की शिक्षा केवल पहली कक्षा तक की है. इसलिए अपने सेवा केंद्र को चलाने के लिए और रजिस्टर को बनाने के लिए उद्योगियनी द्वारा संचालित महिला साक्षरता केंद्र में भाग लिया. वह महिला साक्षरता केंद्र में अपना अधिक समय बिताकर अपने दैनिक बिक्री और खरीद को बनाए रखने के लिए मूल गणित भी सीखा.     

कुछ समय बाद उनके पति मानसिक बीमारी (भूलने की बिमारी) से पीड़ित हो गए, जिससे किया गया बचत पति के इलाज पर खर्च हो रहा था. यहां तक कि जो 5000 रूपये अपनी वी.एल.एस.सी. खोलने के लिए जमा किये थे वो भी इलाज में खर्च हो गये. फिर भी तारोन हार नहीं मानी, बल्कि किसी तरह कुछ पैसे इकट्ठा कर अपनी राशि का 25% जबकि उद्योगिनी द्वारा 75% राशि ऋण के रुप में लेकर अपने घर में उद्यम सेवा केंद्र की शुरुआत की और एक सफल उद्यमी बन गई. आज उनका मासिक औसत लाभ 2000 रूपये प्रति माह है. वह वी.एल.एस.सी. के लिए फुटकर बिक्री की खरीद के लिए प्रति माह 3000-3500 रुपये का निवेश करती है. समुदाय को फुटकर बिक्री सेवाओं के साथ सहयोग करने के बाद उन्होंने इमली के एकत्रीकरण के साथ अपनी सेवाओं का विस्तार किया है.

तारोन दोद्राई के अनुभवों ने उसे केवल फुटकर वस्तुओं का विक्रेता और एक समस्त विक्रेता ही नहीं, एक सामाजिक उद्यमी भी बना दिया है जो यह सुनिश्चित करता है कि चूल्हा उनके घर में नहीं बल्कि उत्पादक जिनके उत्पाद ग्राम स्तर सेवा केंद्र में खरीदे जाते है उनके यहां भी जलाया जाए.

वह हिंदी बोलने में संकोच करती हैं, लेकिन वह जानती है कि उनका ग्राम स्तर सेवा केंद्र न केवल उनके लिए बल्कि उनके गांव के साथियों की प्रगति के लिए भी लाभदायक है.

तारोन दोद्राई आत्मविश्वास से कहती हैं, ‘अगर आपके पास कोई काम करने की योजना और कौशल है, तो कोई भी रुकावट नहीं है जो आपको रोक सके.’

वह यह भी कहती हैं, ‘गांव में दुकान न होने के कारण मुझे माचिस की डिब्बी खरीदने के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता था. छोटी–छोटी चीज़ों के लिए बाज़ार का पूरे हफ्ते इंतजार करना पड़ता था. मैं नहीं चाहती थी कि एक छोटी सी ज़रूरत के लिए लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़े, इसलिए मैंने खुद का उद्यम शुरू कर दिया. अब लोगों को रात के समय भी दिक्कत नहीं होती और उनकी सारी ज़रूरत मेरे उद्यम सेवा केन्द्र से पूरी हो जाती हैं. काम इतना बढ़ चुका है कि मुरमुरे बनाने का समय नहीं मिलता. काम आसान इसलिए भी हुआ क्योंकि मैंने भाषा की महत्वपूर्णता को समझा और हिंदी भाषा सीखी.

वो आगे कहती हैं, थोड़ी बहुत ही लेकिन जब मैं हिंदी भाषा का प्रयोग अपने ग्राहकों के सामने करती हूं तो उन्हें मुझमें एक अलग आत्मविश्वास दिखता है. मैं चाहती हूं भविष्य में मेरा काम और बढ़े. मुझे नई- नई जगहों पर जाने का मौक़ा मिले, इसके लिए अंग्रेज़ी भी सीखनी हो तो संकोच नहीं करुंगी.’ (चरखा फीचर्स)

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