फ़ातिमा फ़रहीन, TwoCircles.net
नई दिल्ली: ‘लोगों की मदद करने का ज़कात एक बेहतरीन ज़रीया है. हम ज़कात के रूप में सिर्फ़ पैसा ही देने के बजाए किसी ज़रुरतमंद को अपना वक़्त, हुनर, प्यार और सेवा भी दें, क्यूंकि मौजूदा वक़्त में बस पैसे देना बहुत आसान हो गया है, जो ज़कात के असल मक़सद और अहमियत को ख़त्म करता है.’
ये बातें सोमवार को शाहीन बाग के होटल रिवर व्यू में रमज़ान में मुसलमानों द्वारा निकाली जाने वाली ज़कात पर इस्लामिक रिलीफ़ ऑफ इंडिया के ‘अमानत’ नाम के एक कैंपेन लांच के अवसर पर आयोजित पैनल डिस्कशन में जामिया सोशल वर्क डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर ज़ुबैर मीनाई ने कहा. ज़ुबैर मीनाई इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे.
प्रोग्राम की शुरुआत में इस्लामिक रिलीफ़ इंडिया के मिशन हेड मोहम्मद अकमल शरीफ़ ने इस्लामिक रिलीफ़ इंडिया के काम से लोगों को रूबरू कराते हुए ज़कात कैंपेन ‘अमानत’ के बारे में बताया.
आगे बात करते हुए कहा कि मीडिया ने रमज़ान की तस्वीर जब भी जनता के सामने पेश की है उसमें खाना, जामा मस्जिद या नमाज़ पढ़ता हुआ मुसलमान ही दिखाया है. मीडिया ने ये कभी नहीं बताया कि रमज़ान का मतलब है —त्याग या क़ुरबानी. यह कभी नहीं बताया कि ज़कात के नाम पर किस तरह मुसलमान अपने कुल जायदाद का ढ़ाई प्रतिशत पैसे निकाल कर गरीबों की मदद करता है, ताकि वो भी बेहतर ज़िन्दगी गुज़ार पाएं.
इसके जवाब में राष्ट्रीय सहारा उर्दू के पूर्व एडिटर फ़ैसल अली ने कहा कि, मीडिया समाज का आईना है और मीडिया वही दिखाता है, जो समाज का हाल होता है. और जब हिन्दुस्तानी मुसलमान सत्तर सालों में अपने हालात नहीं बदल पाएं तो मीडिया उनकी तस्वीर को कैसे पेश करे.
ज़कात पर अपनी बात रखते हुए फ़ैसल अली ने कहा कि, ‘चैरिटी बिगिन्स एट होम’, ज़कात की शुरुआत घर से होती है. पहले आप अपने घर में ज़कात निकालिए और फिर दुसरे मुसलामानों की भी इसकी अहमियत और इस्तेमाल के बारे में बताइए.
वहीं इस कार्यक्रम में शामिल आरजे नावेद ने ज़कात की पूरी संकल्पना को बहुत खूबसूरत बताते हुए कहा कि, ज़कात देने का मक़सद ज़रुरतमंदों की मदद है. इस पर और बात होनी चाहिए और लोगों को इसकी अहमियत से परिचित कराना चाहिए.
बताते चलें कि आरजे नावेद मुर्गा नाम से एक फ़ोन-इन प्रोग्राम करते हैं, जो सोशल मैसेज़ पर आधारित होता है. आरजे नावेद ने बताया की ज़कात पर भी उन्होंने एक ऑडियो-क्लिप बनाया जो काफी वायरल हुआ और लोगों ने उसे बहुत पसंद किया.
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मशावरत के अध्यक्ष नवेद हामिद ने मौजूदा वक़्त में ज़कात देने के तौर-तरीक़े का एक भयावह रूप का ज़िक्र लोगों के सामने किया. नावेद हामिद ने कहा की कि मौजूदा वक़्त में ज़कात के इस्तेमाल की पारदर्शिता और जवाबदेही ख़त्म हो गई है.
गौरतलब है कि इस्लामिक रिलीफ़ इंडिया का यह प्रोग्राम ज़कात इकठ्ठा करने के कैंपेन ‘अमानत’ के अंतर्गत किया गया था, जिसमें पैनल डिस्कशन के बाद अफ्तार का भी इंतज़ाम था.
इस्लामिक रिलीफ़ ऑफ़ इंडिया पिछले 25 सालों से 45 देशों में गरीबी, शिक्षा, हेल्थ, भूख, जेंडर, साफ़-सफाई, साफ़ पानी जैसी समस्याओं पर काम करती है, जो पूरी तरह से इस्लामिक मान्यताओं पर आधारित होता है. वो मान्यताएं जिसका फ़ायदा मुसलमानों के साथ-साथ सभी धर्म को पहुंचाने के लिए है.
इससे पहले हाल ही में इस्लामिक रिलीफ़ ने “फीड द हंगर” नाम से भी एक कैंपेन शुरू किया है, जिसे उन्होंने कुछ होटल के सहयोग से लांच किया है, जिसमें नज़ीर, अल-बैक, करीम, रिवर व्यू शामिल हैं.