चोरी हुई खच्चर तो खुद के कंधे पर 70 किलोमीटर तक बुग्गी खींचती रही मीना सलीम

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

शामली : यह दर्दनाक कहानी एक ऐसी लडक़ी की है, जिसने अपनी बुग्गी को 120 किलोमीटर तक अपने कंधे पर खच्चर की जगह जुत कर खींचा है. मीना के ज़रिए ऐसा करने की वजह उसके खच्चर का चोरी हो जाना है.


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मीना अपने अंधे पिता व मां के साथ हरिद्वार अपने 12 साल की छोटी बहन खेरूना को तलाशने पहुंची थी, जिसे दो माह पूर्व एक अज्ञात साधू ‘अपरहण’ कर हरिद्वार ले आया था. अपहरण के समय मीना भी अपनी बहन के साथ ही थी, लेकिन वो बचकर निकल गई.

मीना का पूरा परिवार बाग़पत में डीएम आवास के क़रीब एक झुग्गी में रहता है. अपनी बच्ची के ‘अपहरण’ की ख़बर सुनते ही नेत्रहीन पिता व मां से रहा नहीं गया. बस फिर क्या था. मीना सलीम अपने मां-बाप को लेकर अपने बुग्गी से हरिद्वार के लिए निकल गई.  यहां अपनी बहन की तलाश करती रही. लेकिन एक महीने तक तलाश करने के बाद भी बहन न मिली. इस दौरान पूरा परिवार भीख मांगकर खाता रहा. इस बीच इनका खच्चर भी चोरी हो गया. ऐसे में इनकी परेशानी और भी बढ़ गई.

मायूस परिवार अब घर लौटना चाहता था, लेकिन बुग्गी का खच्चर ही गायब है. बस फिर क्या था, मीना ने खुद ही खच्चर की जगह जुतकर हरिद्वार से शामली तक ले आती है. इस दृश्य पर अनुज सैनी व एक स्थानीय पत्रकार प्रताप राठौर की नज़र पड़ती है. प्रताप एक स्थानीय अख़बार से जुड़े हैं.

TwoCircles.net के साथ बातचीत में प्रताप राठौर बताते हैं कि, कैमरे पर मेरी पकड़ हमेशा मज़बूत रहती है, मगर यह तस्वीर लेते हुए मेरे हाथ कांप रहे थे. युवती के ज़रिए खुद बुग्गी को खींचे जाने की यह तस्वीर जैसे ही सोशल मीडिया पर आई तो शामली प्रशासन हरकत में आ गया. शामली के ज़िलाधिकारी इंद्रपाल सिंह और शामली-बागपत के संयुक्त पुलिस कप्तान अजयपाल शर्मा ने अपना अमला इस परिवार को तलाश करने पर लगा दिया. दो घंटे में ही तलाश लिया गया. डीएम खुद एसपी को लेकर उनके पास पहुंच गए. तुरंत प्रशासन ने उन्हें घोड़ा उपलब्ध करा दिया. एसपी बागपत और शामली अजयपाल शर्मा ने एक टीम उसकी बहन को तलाश करने हरिद्वार भी भेजी है. फ़िलहाल मीना अपने ठिकाने यानी बागपत पहुंच चुकी है.

TwoCircles.net के साथ फोन पर हुई बातचीत में मीना सलीम बताती है कि, घोड़ी तो कलक्टर बाबू ने दिलवाई है और एसपी साहब ने हमारी बहन को तलाशने के लिए पुलिस भेजी है. मगर असली हमारी मदद तो उन दो लड़कों ने की है, जिन्होंने हमारा फोटो खींचा था. हमारा अपना घर नहीं है. यहां झुग्गी में सड़क के किनारे रहते हैं और मांग कर खाते हैं. मेरे पिता आँख से देख नहीं सकते.

वो बताती है कि, मां मेरी छोटी बहन को याद कर तड़पती हैं. उसे ही ढूढने गए थे. वहां बहन तो नहीं मिली, उल्टे खच्चर चोरी हो गई. अब बुग्गी वापस कैसे लाते. घोड़ी या खच्चर 40-50 हज़ार की आती है. इकट्ठा करने में कई साल लग जाते. बस मजबूर थे.

मीना के नेत्रहीन पिता सलीम कहते हैं कि, जब उनकी बेटी बुग्गी खींच रही थी तो वो सोच रहे थे कि ज़मीन फ़ट जाए और मैं उसमें समा जाऊं. मैं अंधा हूं, वरना ऐसा उसे कैसे करने देता.

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