फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
जहां एक तरफ़ ‘विश्व खाद्य दिवस’ पर इस देश के कृषि एवं कल्याण मंत्री अख़बारों में अपना संदेश देकर बड़े-बड़े वादे करते हैं, वहीं ठीक उसी समय देश में एक बच्ची की मौत इसलिए हो जाती है क्योंकि उसका परिवार अपने राशन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक नहीं करा पाया था.
गंभीर बात यह है कि कृषि मंत्री जी ने अपना संदेश जारी करने से पहले यह भी नहीं सोचा कि वैश्विक भूख सूचकांक में कहां से कहां पहुंच गए हैं हम.
बताते चलें कि इस साल का वैश्विक भूख सूचकांक में हम तीन पायदान नीचे लुढ़क कर उत्तर कोरिया से भी पिछड़ गए हैं. हद तो यह है कि नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देश हमसे इस मामले में बेहतर नज़र आ रहे हैं.
गौरतलब रहे कि 119 देशों के आंकड़ों को मिलाकर तैयार इस सूचकांक में भारत 100वें स्थान पर है. और इसे ‘गंभीर श्रेणी’ में रखा गया है. ये रिपोर्ट कहती है कि ‘चूंकि दक्षिण एशिया की तीन चौथाई आबादी भारत में रहती है, इसलिए इस मुल्क में भूख के हालात दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय सफलता पर व्यापक असर डालते हैं.’
मौजूदा भारत सरकार की व्यवस्था देश को और भी ख़तरनाक रास्ते पर ले जाते हुए दिख रही है. ऐसा लग रहा है कि हमारा देश भारत भूखे-नंगों का देश बनने की राह पर चल पड़ा है.
बताते चलें कि केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद सभी सरकारी योजनाओं को आधार संख्या से जोड़ने का आदेश जारी कर दिया गया है. ये अलग बात है कि इसके तकनीकी और सामाजिक स्तिथि के खामियाजों की ओर बार-बार सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ध्यान दिलाने की भरपूर कोशिश की है, लेकिन सरकार इसका कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है.
मौजूदा हालात की बात करें तो आधार कार्ड और बैंक खाते के आभाव में बहुत से परिवारों का राशन कार्ड रद्द होने की कहानी सामने आ रही है. इसके साथ ही आधार संख्या नहीं जुड़े होने से राशन दुकानदारों को भी पूरी मनमानी करने की खूली छूट मिल गई है. ये राशन दुकानदार कभी अंगूठा नहीं मिलने तो कभी बैंक खाता लिंक नहीं होने जैसी कारणों का हवाला देकर राशन देने से इंकार कर रहे हैं. इसी का खामियाजा झारखण्ड के सिमडेगा के एक परिवार को झेलना पड़ा है. यहां 11 वर्षीय संतोषी कुमारी नाम की बच्ची की मौत सिर्फ इस वजह से हो गई है कि उसके परिवार का आधार कार्ड, राशन कार्ड से लिंक नहीं था. संतोषी ने चार दिन ने भूख से लड़ते हुए दम तोड़ दिया.
बताते चलें कि सिमडेगा के करिमति गांव में रहने वाली संतोषी के परिवार के पास ना तो ज़मीन है, ना ही नौकरी और ना ही स्थायी आय सुविधा. ये पूरा परिवार नेशनल फ़ूड सिक्युरिटी के तहत मिलने वाले राशन पर ही ज़िन्दगी गुजरने को बेबस थी. लेकिन फ़रवरी माह से ही राशन मिलना बंद हो गया था, जिससे परिवार में भूखमरी की भयानक स्तिथि पैदा हो गई. संतोषी की मां दातुन बेचकर और दूसरों के मवेशी चराकर मिलने वाले अनाज और चंद पैसों से अपना घर चलाती थी.