नशे के प्रति दिल्ली के युवाओं का बढ़ता रुझान, सरकार क्यों है असफ़ल?

उज़मा प्रवीन


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दिल्ली : भारत वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा युवा शक्ति प्रधान देश है. इसका भविष्य युवाओं पर टिका है पर क्या! वे स्वस्थ है?

ये जानना आवश्यक है, क्योंकि जब युवा ही स्वस्थ नहीं होंगे, तो भारत का भविष्य कैसे स्वस्थ और सुरक्षित हो सकता है? और स्वस्थ और सुरक्षित युवाओं के बिना विकसित देश की कल्पना नहीं की जा सकती.

साल 2016 में आई फिल्म “उड़ता पंजाब” आपको याद होगी, जिसमें दवाइयों के दुरूपयोग और उसकी गंभीर वास्तविकता को दिखाया गया है. आज बच्चों के बीच दवाइयों का दुरूपयोग तेज़ी से बढ़ रहा है कारणवश अपराध दर में भी वृद्धि दर्ज की जा रही है.

‘दी इकोनॉमिक्स टाइम्स’ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 2014 में नशीले पदार्थों के नशे की लत और नशे की वजह से भारत में 3,647 आत्महत्याएं दर्ज की गईं हैं. इसके साथ ही हिंदुस्तान टाइम्स में छपे एक लेख के अनुसार, भारत में पिछले दस सालों में नशीली दवाओं के सेवन की लत से सम्बंधित समस्याओं से कम से कम 25426 लोग आत्महत्या कर चुके हैं. यानी हर साल औसतन 2542 आत्महत्याएं, 211 प्रति माह और 7 प्रति दिन तक होती हैं.

“दिल्ली स्टेट एड्स कन्ट्रोल सोसाइटी” के सर्वेक्षण के आनुसार 23,240 बेघर बच्चे पिछले एक साल से नशे का सेवन कर रहें हैं. महिला एवं बाल विकास विभाग के 2016 के सर्वेक्षण के आनुसार दिल्ली में 70,000  बच्चे नशे के आदि हैं.

पूरे भारत से अधिकतर युवा अच्छी नौकरी और शिक्षा के लिए दिल्ली आते हैं. मेरे ज़ेहन में अक्सर ये सवाल आता है कि आज का युवा नशे का आदि क्यों होता जा रहा है? क्या इसको रोकने का कोई तरीक़ा नहीं है? इसको रोकने के लिए हमारी शासन-प्रशासन कितनी सफल है?

दरअसल, युवाओं का नशे की ओर रुझान का सबसे अहम कारण उनकी सही देखभाल न होना है. जिसके लिए खुद वो और उनके अभिभावक जिम्मेदार हैं, जो दिल्ली जैसे शहरों में अधिक पैसे और शोहरत कमाने के चक्कर में अपने बच्चों को समय नहीं देते. जिससे उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें सही ग़लत का अंतर नहीं पता चलता और बच्चे भटक जाते हैं. अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए नशे का सहारा लेते हैं.

देश के प्रधानमंत्री से लेकर आम व्यक्ति तक इस बात को जानता है कि नशे से विनाश होता है. बीड़ी, सिगरेट ख़तरनाक है. यह चेतावनी पैकेट पर साफ़-साफ़ शब्दों में लिखा होता है, परंतु उसी पैकेट से बीड़ी, सिगरेट निकालकर धूम्रपान का आनंद लिया जाता है. उससे भी मज़ेदार व सोचनीय बात यह है कि जब हमारी सरकारें जानती हैं कि ये ख़तरनाक है, तो फिर देश में इसका बिजनेस क्यों होने दे रही हैं.  सच तो यह है कि राज्य बिहार में सरकार ने शराबबंदी तो कर दी, इसके कारण यक़ीनन कई लोगों के जीवन में बदलाव भी आया, लेकिन सिगरेट और गुटका तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन अब भी जारी है. मतलब साफ़ है जब तक हम स्वंय अपने जीवन का मूल्य नही समझेंगे, नशे की आदत से कोई क़ानून हमें नहीं बचा सकता. चाहे नशा किसी भी प्रकार का क्यों न हो. बेहतर यही है कि सरकार उसके उत्पाद को ही हमेशा के लिए रोक दे. (चरखा फीचर्स)

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