आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मुज़फ़्फ़रनगर : 7 सितम्बर को नगला मंदौड़ की पंचायत में मंच पर मौजूद रहे तमाम भाजपा नेता आज माननीय हैं. वो जो भाजपा के नहीं थे, अब सब पैदल हैं. यह पूरी तरह एक बड़ा राजनीतिक बदलाव है.
जिन तीन नेताओं पर रासुका लगी वो विधायक बन गए. एक मंत्री भी बन चुका है. तीन लोग जो मंच पर थे, आज सांसद हैं. यानी ये दंगा एक ओर जहां मुज़फ़्फ़रनगर की जनता के लिए आफ़त और देशभर में बदनामी की वजह बना, वहीं भाजपा के लिए वरदान बन गया.
मुज़फ़्फ़रनगर में आज से चार साल पहले एक सप्ताह तक चले इस दंगे में क़रीब सत्तर लोग मारे गए, सैंकड़ों घायल हुए और लाखों अपना घर छोड़ने को मज़बूर हुए. चार साल बाद भी ये बेघर अपने घर नहीं लौटे हैं.
दिल में है अब भी दूरियां
दंगे के चार साल बाद भी लोगों के दिल की दूरियां मिट नहीं पाई हैं और भोराकलां, काकड़ा, मुंडभर, कुटबा, हलोली, खरड़ सहित कई गाँवों की दर्जनों मस्जिदों में ताला लगा है. एक बार जो यहां से चला गया वो लौट कर नहीं आया. कई सामाजिक संस्थानों ने दूरियां मिटाने की कोशिशें की, मगर शरणार्थी के दिलों में आज भी इतना डर है कि अब वापस नहीं जाना चाहते.
कुटबा के यामीन के अनुसार, हम अब उन पर भरोसा नहीं कर सकते. हमने हमेशा जाटों को ही वोट की, फिर भी वो हमारे नहीं हुए.
खाई को मिटाने की भी हो रही है कोशिशें
जाट और मुस्लिमों के बीच हुए इस दंगे से पैदा हुई खाई को मिटाने की कोशिशें भी लगातार जारी हैं. इसके लिए सबसे ज्यादा प्रयास रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह कर रहे हैं. उन्होंने हाल ही में भारतीय किसान मजदूर मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुलाम मोहम्मद जौला से लंबा विचार विमर्श कर दोनों समूहों को क़रीब लाने की बात कही है. इसके लिए उनकी पार्टी रालोद लगातार ‘जाट-मुस्लिम एकता सम्मेलन’ भी आयोजित कर रही है.
बाग़पत में आयोजित एक सम्मेलन के आयोजक वेदराम राठी कहते हैं, ‘जाटों को भी यह समझ लेना चाहिए कि इस झगड़े में उन्हें भड़काकर दूसरे हिन्दू दूर रहें, जबकि नुक़सान सिर्फ़ जाटों का हुआ. हम लोगों का मुसलमानों के साथ लम्बा रिश्ता है. हमारे खेत खलिहान बराबर हैं. हम मिलकर राजनीति करते थे. यह दंगा जाट और मुसलमान एकता तोड़ने की साज़िश थी. हम फिर एक हो जाएंगे.’
थानाभवन से रालोद के विधानसभा प्रत्याशी रहे कुंवर जावेद कहते हैं, ‘मुझे 30 हज़ार वोट मिलें, इनमें जाटों की बहुत समर्थन रहा. क्या वो ये नहीं जानते कि मैं मुसलमान हूं. दंगे की साज़िश को सब समझ गए हैं.’
दंगों पर फ़िल्म बनाने वाले मोरना के मनोज बालियान कहते हैं, ‘दंगा राजनैतिक फ़ायदा के लिए कराया गया था. यह पूरी तरह योजना बनाकर किया गया. लोग तब भी समझ गए थे, मगर मूंछ के लिए लड़ने लगे.’
चार साल में अब तक सिर्फ़ दो गवाही
दंगो की जांच एसआईटी को दी गयी थी, जिसमें कुल 169 मुक़दमो में सबूत इकट्ठा कर चार्जशीट दाखिल की गई. कुल 164 मुक़दमों का अभी ट्रायल चल रहा है. अभी गैंगरेप के 5 मुक़दमों में सुनवाई प्रारम्भ भी नहीं हुई है. हालांकि इन 5 मुक़दमों में नामजद किए गए 40 लोगों को अदालत बरी कर चुकी है.
दूसरी तरफ़ कवाल में हुई गौरव सचिन की हत्या में रविंद्र सिंह की गवाही हो चुकी है. पांचों आरोपी मुजाशिम, जहांगीर, मुज़म्मिल, फुरक़ान और नदीम अभी तक जेल में हैं.
मुज़म्मिल के पिता नसीम अहमद कहते हैं कि, दूसरे लोगों को एक महीने के अंदर ज़मानत मिल गई, मगर यह चार साल से जेल में हैं.
कितने परिवारों को मिला मुअावज़ा
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, कुल 1880 परिवारों को सरकार ने 94 करोड़ का मुआवज़ा दिया, जिसमें राज्य सरकार की ओर से मृतक परिवार को 10 लाख और केंद्र सरकार की ओर से 2 लाख रुपए दिए गए. इसके अलावा सरकारी नौकरी और मकान के लिए 5 लाख भी दिए. यह मुआवज़ा कुछ चुने गए गांव के लोगों को मिला.
पुलिस के पाठ्यक्रम में शामिल हुआ मुज़फ़्फ़रनगर दंगा
आज़ादी के बाद के सबसे डरावने इस दंगे को पुलिस पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. मुरादाबाद प्रशिक्षण केंद्र और एकेडमी दोनों में दंगा का स्वरुप, पिछले दंगों से अंतर, एक्शन-रिएक्शन और प्रस्तावित क़दम पढ़ाया जा रहा है.
पुलिस अधिकरियों के मुताबिक़ यह अलग तरह का दंगा था, जिस पर भविष्य में रोकथाम के उपाय सीखे जा रहे हैं.