चुपचाप मौत को गले लगा रहे हैं चम्पारण में हज़ारों किसान

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net


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चम्पारण (बिहार) : बिहार के भीषण बाढ़ को गुज़रे एक महीना से ज़्यादा वक़्त गुज़र चुका है. इस एक महीने में जैसे-जैसे बाढ़ का पानी उतरता गया है, वैसे-वैसे बाढ़ की भयावहता अंदाज़ा होता जा रहा है. पानी कम होने के साथ ही दर्द और तबाही का मंज़र सामने आने लगा है. इस तबाही की मार सबसे ज़्यादा किसानों पर पड़ी है. किसानों की फ़सल तबाह होने के साथ ही उनके अरमान भी पानी के धार में डूब गए हैं.

हमने चम्पारण के दोनों ज़िले के किसानों का जायज़ा लिया. ये वही चम्पारण है, जहां 111 साल पहले 1906 में आई बाढ़ के बाद यहां के किसानों ने अंग्रेज़ों द्वारा कराई जा रही नील की खेती और तीन कठिया प्रथा का विरोध किया और काफ़ी हद तक कामयाब रहे. मगर आज आज़ाद भारत में हालात उलट गए हैं. अब ये किसान अपनी परेशानियों पर मुंह नहीं खोल सकते. इस बार आई बाढ़ ने पश्चिम चम्पारण में 41 और पूर्वी चम्पारण में 19 लोगों को लील लिया. ये सरकारी आंकड़ें हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक़ मरने वालों की असल संख्या सैकड़ों में है, लेकिन शोर में कहीं गुम गया है.

बाढ़ के इस क़हर ने पूर्वी चम्पारण के किसानों को बुरी तरह से तोड़ कर रख दिया है. सबकी बस एक ही चिंता है —घर, खेत तो सब बर्बाद हो गया, अब खाद का उधार पैसा चुकेगा कैसे? महाजन का कर्ज़ कौन अदा करेगा? अभी तो रबी की फ़सल में जो ओलापात हुआ था और गेहूं की फ़सल पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी, सरकार ने आज तक उस पर ही कोई कार्यवाही नहीं की, अब इस बाढ़ का मुवाअज़ा कब और कैसे देगी?

पूर्वी चम्पारण के तिरवाह क्षेत्र के किसान अक़ील अहमद (35) बताते हैं कि, हमारे परिवार की 20 एकड़ खेती थी. हमने क़र्ज़ लेकर खेती की है. पहले बारिश नहीं हो रही थी तो पानी पर खर्च करना पड़ा और अब बाढ़ के पानी ने सबकुछ बर्बाद कर दिया. आज हमारी कोई फ़सल नहीं बची है.

वो यह भी बताते हैं कि आमतौर पर यहां के किसान धान की खेती नहीं करते थे. लेकिन पिछले 10-12 सालों से यहां बाढ़ नहीं आ रही थी तो यहां हम लोगों ने धान की खेती शुरू कर दी, लेकिन सब बह गई.

पटखौली गांव के किसान संतोष साहू (62) बर्बादी के सवाल पर पहले भड़क उठते हैं, फिर थोड़ी दिलासा देने पर कहते हैं कि हम सब तो बर्बाद हो गए. ये भगवान भी ग़रीबों को ही बर्बाद करते हैं. अब आप ही बताईए कि केसीसी से 50 हज़ार का लोन लिए थे. महाजन से भी 70 हज़ार रूपये ब्याज़ पर क़र्ज़ लिए थे. बताइए, अब क्या करें. सवा लाख रूपये पानी में बह गया.

इनके मुताबिक़, इन्होंने 22 कट्ठे में केला, 16 कट्ठा में धान, दो बीघे में गन्ना और एक बीघे में केसऊर की फ़सल लगाई थी, जिसे इस बाढ़ ने पूरी तरह से बर्बाद कर दिया.      

‘धान का कटोरा’ और ‘गन्ना के नैहर’ के नाम से मशहूर पश्चिमी चम्पारण के किसानों का तो और भी बुरा हाल है. यहां का बासमती एवं दूसरे सुगंधित धान तो पूरी से तबाह व बर्बाद हो गए. बैगन, गोभी व दूसरी हरी सब्ज़ियों के पौधे भी डूब चुके हैं.

यहां के किसानों का कहना है कि, गन्ना व धान में जितनी पूंजी लगानी थी वो लगा चुके थे, अब तो फ़सल कटने के समय का इंतज़ार था. 

बगहा के अमरेन्द्र कुमार का कहना है कि, इस बाढ़ में हमारा घर तो डूबा ही, साथ ही केले की फ़सल भी पूरे तरह से तबाह-बर्बाद हो गई. हालांकि इसी दशहरे में ये केले कटने लायक़ हो गए थे. लेकिन अधिकांश पौधे पीले होकर सूख चुके हैं. हमारा इससे कम से कम 9-10 लाख का नुक़सान हो गया.

बलुआ गोईठही गांव के परशु राम पांडेय (46) बताते हैं कि, घर तो ख़त्म हो ही गया. साथ में बख़ारी के लिए रखा धान व अनाज भी इस बाढ़ ने समाप्त कर दिया. पता नहीं, अब आगे खेती कैसे करेंगे.

बखारी का मतलब यह है कि किसान अपने घर के बाहर अनाज रखते हैं और इसी अनाज का इस्तेमाल वो अपने खाने-पीने में करते हैं. इसे ही मजदूरों को मजदूरी की शक्ल में दी जाती है और यही अगले साल बीज का भी काम करता है.

वो आगे बताते हैं कि, धान के पत्तों में कीड़ा पकड़ रहा है और बालू ने धान को बुरी तरह से पीट दिया है. हमारी बर्बादी की भरपाई की बात तो दूर, हमें कोई नेता देखने तक नहीं आया.

गौनाहा प्रखंड के नौशाद आलम (32) मूल रूप से खेती ही करते हैं. लेकिन इस बार कुछ नया करने की सोची. उन्होंने घर के बाहर ही पोखरा खोदकर मछली पालन का काम शुरू किया, लेकिन इस बाढ़ में पता नहीं उनकी मछली कहां चली गईं.

वो बताते हैं कि पहली बार कुछ अलग करने की सोची. 15-20 हज़ार रूपये खर्च किए. लेकिन बाढ़ की वजह से मछली भाग गई और दाना भी सड़ गया. पहली बार सब्ज़ी भी लगाई थी. लेकिन घिवड़ा, बोड़ी और भिंडी सब बर्बाद हो गया. शहर के लोग मदद नहीं करते तो हम भूखों मर जाते.    

चम्पारण में यही कहानी तक़रीबन हर किसान की है. किसी बाहरी को देखते ही लोग यहां पीछे दौड़ पड़ते हैं. उन्हें लगता है कि शायद हम उनकी तस्वीर मीडिया में दिखा देंगे. और उनकी तस्वीर देखते ही उनकी परेशानी दूर करने के लिए नेता दौड़ पड़ेंगे.

यहां के किसानों के मुताबिक़, इस बाढ़ से खेतों में बालू व शील्ट भर गया है. इससे आगे रबी की फ़सलों के उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ेगा. जिनके खेतों में बालू या शील्ट नहीं आया है वो मन ही मन खुश भी हैं कि चलो जो बर्बादी हुई सो हुई, लेकिन इसी बहाने खेत की ज़मीन थोड़ी उपजाऊ भी हो गई. वहीं दूसरी तरफ़ यहां किसान बारिश न होने की वजह से भी परेशान हैं. इनक किसानों की फ़सले भी सुख गई हैं.    

किसानों को मिले फ़सल बीमा का लाभ

किसानों के मुद्दे पर काम करने वाले एडवोकेट मनव्वर आलम का कहना है कि बाढ़ से किसान की चौतरफ़ा क्षति हुई है. खेत में फ़सल का नुक़सान तो हुआ ही है, साथ ही घरों में रखे अनाज बर्बाद हो चुके हैं. जबकि किसान इन्हीं अनाजों के सहारे पूरे साल खाता-पीता है. उसी से शादी-ब्याह सबकुछ चलता है. उसे ही बेचकर अपनी ज़रूरत की चीज़ों को खरीदता है. लेकिन सरकार इन किसानों की ओर ध्यान नहीं दे रही है. मुवाअज़े के नाम पर काफ़ी सारी धांधलियां सामने आ रही हैं. अब इन मुद्दों को लेकर मैं जनहित याचिका के ज़रिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की सोच रहा हूं. 

वो मांग करते हैं कि बाढ़ से तबाह व बर्बाद हुए सभी किसानों के केसीसी लोन को माफ़ किया जाए. साथ ही इन्हें फ़सल बीमा योजना का भी लाभ मिले.

सरकारी आंकड़ों में बर्बादी

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, सिर्फ़ पूर्वी चम्पारण में क़रीब एक लाख 08 हज़ार 175 हेक्टेयर में लगी फ़सलों की बर्बादी हुई है. तो वहीं पश्चिम चम्पारण ज़िले में लगभग 1.47 लाख हेक्टेयर में लगे गन्ने की फ़सल बर्बाद हुई है, 74 हज़ार हेक्टेयर में लगी धान की फ़सल का नुक़सान हुआ है. इसके अलावा मक्का व सब्ज़ियां आदि की बर्बादी का आंकड़ा अलग है. एक आंकड़े के मुताबिक़ सिर्फ़ पश्चिम चम्पारण में डेढ़ लाख से अधिक किसानों को इस बाढ़ ने एक झटके में ही धो डाला है. इनका सबकुछ बर्बाद हो चुका है.

कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने अपने एक बयान में कहा है कि बाढ़ से जिन किसानों का नुक़सान हुआ है, उसकी क्षतिपूर्ति विभाग करेगा. इसके लिए उन्होंने अधिकारियों से नुक़सान का वास्तविक आंकलन जल्द करने को कहा है.

आकस्मिक फ़सलों से मिलेगा किसानों को लाभ

कृषि विभाग के दोनों ज़िला कृषि पदाधिकारियों के अनुसार यहां के किसानों को जल्द ही आकस्मिक फ़सल योजना के अंतर्गत कम अवधि की फ़सलों जैसे कि उरद, कुलथी, तोरी, अगात मटर, अगात सरसो, मक्का, ज्वार, मूली व पालक आदि की खेती के लिए बीज का वितरण किया जाएगा. इसके लिए विभाग की ओर से सरकार को पत्र लिखा गया है.

किसान हो रहे हैं हिंसक

पूर्वी चम्पारण के मोतिहारी में रहने वाले जेपी सेनानी बजरंगी नारायण ठाकुर का कहना है कि, किसी भी नुक़सान की भरपाई सरकार कभी नहीं कर सकती. लेकिन सरकार को इस बाढ़ के बाद जितना करना चाहिए, वो नहीं कर सकी है. सरकारी अफ़सर अपना ही पेट भरने में लगे हुए हैं. यहां सिस्टम सही से काम नहीं कर रहा है. इसके कारण यहां के किसान अब हिंसक होते जा रहे हैं. हिंसा के कई वारदातें पूरे चम्पारण में देखने को मिल रही हैं. कहीं लोग पथराव कर रहे हैं तो कहीं विधायक समेत अधिकारियों को बंधक बना रहे हैं. और उससे भी बड़ी ग़लती सरकार यह कर रही है कि इन हिंसक कार्रवाईयों को रोकने के लिए इन पर अलग-अलग तरह से ज़ुल्म करने लगी है. कई जगह बाढ़ से तबाह व बर्बाद हुए किसानों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है. 

सरकार का किसानों के साथ मज़ाक़

पश्चिम चम्पारण में भूमि अधिकार सत्याग्रह के प्रभारी व भाकपा माले नेता विरेन्द्र प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि, चम्पारण में 60-70 फ़ीसदी खेती बंटाई पर होती है. लेकिन विडंबना यह है कि सरकार बंटाईदारों को किसान नहीं मान रही है. यानी इन्हें मुवाअज़ा नहीं मिलेगा. मुवाअज़ा पाने के लिए इन्हें ज़मीन की रसीद देना होगा, जिन्हें ज़मीनदार देने को तैयार नहीं हैं. और जिस किसान के पास ज़मीन की रसीद है, उसे भी अधिकतम दो हेक्टेयर खेती का ही मुवाअज़ा मिल सकेगा. यानी मर जाए, ख़त्म हो जाए, सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है.

विरेन्द्र गुप्ता आगे बताते हैं कि समस्या यह भी है कि यहां बालू खनन पूरी तरह से बंद है. ऐसे में किसान मजदूरी भी नहीं कर सकता, क्योंकि बालू के अभाव में निर्माण-कार्य पूरी तरह से ठप्प है. ऐसे में किसान करे तो क्या करे?

वो यह भी बताते हैं कि पश्चिम चम्पारण में तक़रीबन 45 फ़ीसदी ज़मीन पर गन्ने की खेती है. सरकार इनको मुवाअज़ा चीनी मिल्स के मार्फ़त देने की बात कह रही है. यक़ीनन इससे बड़े ज़मीनदारों को लाभ मिलेगा और व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता. इसलिए हमारी मांग है कि सरकार सीधे गन्ना किसानों को मुवाअज़ा दे.  

(अफ़रोज़ आलम साहिल ‘नेशनल फाउंडेशन फ़ॉर इंडिया’ के ‘नेशनल मीडिया अवार्ड -2017’ के अंतर्गत इन दिनों चम्पारण के किसानों व उनकी हालत पर काम कर रहे हैं. इनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है.)

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