अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
भारत में सुरक्षा एजेंसियों का आतंकवाद के नाम पर मुसलमान युवकों को उठाना और फिर उनका अदालतों से बरी हो जाना भी कोई नई बात नहीं है. लेकिन बीते दिनों एक नई और ऐतिहासिक बात हुई है. भारत की किसी सुरक्षा एजेंसी ने आतंकवाद के नाम पर उठाए गए एक निर्दोष युवक को हर्जाना दिया है.
दरअसल, दिल्ली पुलिस ने मो. आमिर को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के निर्देश के बाद 5 लाख रूपये का हर्जाना दिया है.
ग़ौरतलब रहे कि पुरानी दिल्ली के मो. आमिर को 27 फ़रवरी 1998 को गिरफ़्तार किया गया था और आतंकवाद का आरोप लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया था. आमिर ग़िरफ़्तारी के वक़्त 18 साल के थे और 14 साल बाद सन 2012 में जब वो जेल से रिहा हुए तो उनकी लगभग आधी उम्र बीत चुकी थी. दिल्ली हाई कोर्ट समेत कई अदालतों ने उन्हें आतंकवाद के आरोपों से बरी किया था और इस समय मो. आमिर आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक जुझारू मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं.
गिरफ़्तारी के बाद आमिर देश की विभिन्न जेलों में रहे. आमिर को ज़्यादातर वक़्त दिल्ली के तिहाड़ जेल में हाई सिक्योरिटी सेल में रखा गया. उन्हें पता ही नहीं था कि इस दौरान उनके पिता की मौत हो गई, आमिर की मां को ब्रेन स्ट्रोक के बाद लकवा मार गया, जिसके बाद उन्होंने बोलने की शक्ति खो दी और फिर आमिर के कुछ दिनों बाद वो भी चल बसीं.
मार्च 2014 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मीडिया रिपोर्टों के आधार पर आमिर के मामले का स्वतः संज्ञान लिया. केन्द्रीय गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस को नोटिस भेजकर मुवाअज़ा देने की बात की. और फिर दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर कहा कि सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे. ऐसे में जब आमिर की पूरी ज़िन्दगी जेल जाने की वजह से पटरी से उतर गई हो, सरकार को मदद के लिए आगे ज़रूर आना चाहिए.
नोटिस में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली सरकार से पूछा था कि बेगुनाह आमिर को ग़लत तरीक़े से गिरफ्तार करके 14 साल जेल में रखने के एवज़ में 5 लाख का मुआवज़ा क्यों न दिया जाए.
यही नहीं, आमिर के इस मामले को आम आदमी पार्टी से जुड़े ओखला के विधायक मो. अमानतुल्लाह खान ने विधानसभा में भी उठाया था और दिल्ली सरकार से मुवाअज़े के साथ-साथ सरकारी नौकरी देने की भी मांग की थी.
TwoCircles.net से बातचीत में मो. आमिर कहते हैं, चार-पांच दिन पहले दिल्ली पुलिस के कुछ ऑफ़िसर मेरे घर आए थे. मैं उस समय ‘अमन बिरादरी’ के ऑफिस में था. मेरे घर वाले पहले तो डर गए. फिर मेरी उनसे बात हुई. मुझे डीसीपी ऑफिस बुलाया गया. मैं खुद भी घबरा गया. फिर मैं अपने वकीलों की सलाह से वहां गया. वहां मेरी मुलाक़ात एसीपी राजेन्द्र सैनी साहब से मुलाक़ात हुई. उन्होंने मुझसे बहुत प्यार से बात की. मेरे उन 14 सालों पर अफ़सोस का इज़हार किया और आगे की ज़िन्दगी के लिए पांच लाख रूपये देने की बात की. जब मैंने पूछा कि ये पांच लाख क्यों? तो उन्होंने बताया कि एनएचआरसी ने गृह मंत्रालय को इस संबंध में नोटिस दिया था और फिर गृह मंत्रालय ने इन्हें मुझे पांच लाख देने को कहा था. अब मेरे अकाउंट में पांच लाख रूपये आ गए हैं.
मो. आमिर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं कि, हालांकि मेरे उन 14 सालों को कोई भी रक़म वापस नहीं ला सकता, मेरे मां-बाप को वापस नहीं दिला सकता. मेरी जवानी व ख़्वाबों को वापस नहीं लौटा सकता, लेकिन ये एनएचआरसी की सकारात्मक क़दम है. ये एक अच्छी शुरूआत है.
मो. आमिर इस रक़म को लेकर उत्साहित नज़र आते हैं. हालांकि ये रक़म काफ़ी मामूली है, इसके बावजूद वो कहते हैं कि, मेरी ख़्वाहिश है कि मैं इस रक़म का कुछ हिस्सा भारत के जेलों में बंद बेगुनाहों पर खर्च करूं और फिर कुछ हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करना चाहता हूं.
बता दें कि आमिर फिलहाल प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर की संस्था ‘अमन बिरादरी’ से जुड़े हैं और अपनी बेपटरी ज़िन्दगी को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. इस बीच मो. आमिर ने अपनी आपबीती को मानवाधिकार वकील व लेखिका नंदिता हक्सर की मदद से किताब की शक्ल दी है, जो फ़रवरी, 2016 में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर में लांच हुई थी. इस पुस्तक का नाम ‘फ्रेम्ड ऐज ए टेररिस्ट : माई 14 ईयर स्ट्रगल टू प्रूव माई इन्नोसेंस’ है. यह पुस्तक दिल्ली के स्पीकिंग टाईगर प्रकाशक द्वारा प्रकाशित की गई है. जल्द ही इस किताब का हिन्दी व उर्दू अनुवाद भी आने वाला है.
दिल्ली पुलिस की आमिर को यह मदद अपने आप में मील का पत्थर है, क्योंकि आमतौर पर बेगुनाह मुसलमानों को आतंकवाद के नाम पर उठाया, जेल में ठूंसा और लंबे समय बाद बरी भी किया जाता रहा है, लेकिन कभी भी इस दौरान हुए उनके नुक़सान की भरपाई के बारे में नहीं सोचा गया. यक़ीनन ये मामला बहुत से बेगुनाह लोग जो अदालत से बरी हुए हैं, उनके लिए भी नज़ीर साबित होगा.