आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
सहारनपुर : सहारनपुर की डिप्टी डायरेक्टर रश्मि वरुण ने अब माफ़ी मांग ली है. कुछ कट्टरपंथियों के कड़ी आलोचना के बाद अब उन्होंने कहा है कि, अगर किसी की भावना आहत हुई हो तो वो माफ़ी चाहती हैं.
बरेली डीएम के बाद वो ऐसी दूसरी अफ़सर हैं, जिन्होंने तिरंगा की आड़ में किए जा रहे बवाल पर टिप्पणी की है.
लेकिन इन दोनों के माफ़ी के बाद भी ये सवाल लोगों के ज़ेहन में ज़िन्दा है कि आख़िर तिरंगे के नाम पर दंगा कौन चाहता है?
सवाल यह भी है कि क्या तिरंगा को बदनाम करने की साज़िश हो रही है. क्या यह किसी कुत्सित योजना का हिस्सा है, क्योंकि तिरंगा के नाम पर खेलम, सहारनपुर और अब कासगंज को झुलसाने की साज़िश का पर्दाफ़ाश हो चुका है.
पूर्व मंत्री दीपक कुमार TwoCircles.net के साथ बातचीत में कहते हैं, पहले दंगा भड़काने के लिए मंदिर-मस्जिद में कुछ ग़लत फेंक दिया जाता था, फिर लोग इसे समझने लगे. कुछ समय गाय के नाम पर हिंसा हुई, मगर इससे भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली. लव जिहाद और छेड़छाड़ जैसे मुद्दे पर भी अब लोग जागरूक हो चुके हैं. ऐसे में तिरंगा को अब यह नया लाए हैं.
कासगंज में जो कुछ भी हुआ वो सबके सामने है. मुज़फ़्फ़रनगर के अब्दुल हक़ हमें बताते हैं कि, यहां से हर साल हरिद्वार कावंड़िये जाते हैं और जल लेकर आते हैं. ये उनकी आस्था है और मुसलमान इसका सम्मान करता है. बल्कि मुसलमान इनके लिए दवाई और खाने के शिविर भी लगाते हैं. इस बार मुसलमानों ने इनकी खूब सेवा की. लेकिन मेरा कहना यह है पिछले साल से कावंड यात्रा में भगवा और तिरंगा झंडा बड़ी संख्या में रहता है. इस बार तो कांवड़ कैटेगिरी का नाम ही तिरंगा कांवड़ था. और कई जगह माहौल ख़राब करने की कोशिश भी देखी गई.
बता दें कि 22 जुलाई को खेलम में बड़ी संख्या में कावंड़िये तिरंगा और भगवा झण्डा हाथ में लेकर नारेबाज़ी करते हुए इस खेलम के मुस्लिम बहुल इलाक़े की ओर बढ़ें. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़, इनका नेतृत्व प्रदेश सरकार में एक कैबिनेट मंत्री का भाई मान सिंह चौहान कर रहा था. इस घटना में भी यही अफ़वाह फैलाई गई थी कि देशभक्त कावंड़िये हाथों में तिरंगा के साथ जा रहे थे और देशद्रोही मुसलमानों ने शिवभक्त कावंड़ियों पर हमला कर दिया.
बरेली के मुख़्तार आलम हमें बताते हैं, तब बहुत मुश्किल से मामला संभाला गया. यह अत्यंत संवेदनशील ज़िला है. अब डीएम सही कह रहे हैं, ये मुस्लिम मोहल्लों में ग़लत नारेबाज़ी करते हुए क्यों जाते हैं. आख़िर इनका मक़सद क्या होता है.
फ़ैसल खान बताते हैं, 22 अप्रैल 2017 को सहारनपुर के सड़क दुधली गांव में हुए बवाल के पीछे भी कारण तिरंगा को ही बनाया गया था.
वो बताते हैं कि, उस दिन सहारनपुर के सांसद राघव लखनापाल ने अम्बेडकर साहब के नाम पर एक यात्रा निकाली. इसमें भगवा झंडे और एक दो लड़के तिरंगा लिए हुए थे. यह सब हिन्दू संगठनों से जुड़े लोग थे. सांसद के भाई राहुल खुद इस यात्रा में थे और यह लोग जानबूझकर मुसलमानों के मोहल्ले में आपत्तिजनक नारे लगाते हुए घुस गए. इस यात्रा में एक भी दलित नौजवान नहीं था. सब बजरंग दल और हिन्दू जागरण मंच के लोग थे. इसके बाद दोनों पक्षो में संघर्ष हुआ. उस समय के एसएसपी के घर पर भाजपा सांसद राघव लखनपाल के नेतृत्व में हमला भी किया गया.
सपा ज़िलाध्यक्ष रुद्रसेन के अनुसार इस यात्रा का एकमात्र उद्देश्य बवाल कराना था. सांसद का भाई राहुल खुद इसका नेतृत्व कर रहा था. यह यात्रा अम्बेडकर जन्मदिन के एक सप्ताह बाद निकल रही थी. दंगा कराने की योजना का भंडाफोड़ भीम आर्मी ने किया और इसके बाद चन्द्रशेखर रावण भगवा समूह की आंख में खटकने लगे. गौरतलब है कि इसके कुछ दिन बाद ही यहां ठाकुर बनाम दलित जातीय संघर्ष हो गया.
कासगंज के बवाल की तरह खेलम में भी तिरंगा यात्रा के नाम पर बवाल हुआ. इसका ज़िक्र डीएम बरेली राघवेंद्र विक्रम सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट में भी किया. सहारनपुर की महिला अफ़सर रश्मि वरुण ने भी यही लिखा कि ऐसा ही सड़क दुधली की घटना में हुआ था. हालांकि बाद में यह पोस्ट हटा ली गई और अब रश्मि वरुण ने माफ़ी भी मांग ली है.