मीडिया और हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला ‘भीमा कोरेगांव’

फोटो : दत्ता कानवटे
फोटो : दत्ता कानवटे

कलीम अज़ीम, TwoCircles.net के लिए

भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा का मामला थमता नज़र नहीं आ रहा है. प्रमुख आरोपियों को गिरफ़्तार करने की मांग करते हुए गुरूवार-शुक्रवार को दलित संघटनों ने ठाणे में ‘रेल रोको आंदोलन’ किया. घटना के तीन दिन बाद भी आरोपियों को हिरासत में लेने की मांग प्रमुखता से बनी रही. वहीं भगवा संगठन ‘शिव प्रतिस्थान’ के सरबराह संभाजी भिड़े और बीजेपी लीडर मिलिंद एकबोटे के मामला दर्ज करने पर इनके हामियों ने सांगली में रैली निकालकर हंगामा बरपा किया.


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ग़ौरतलब है कि गुरुवार को भारिप बहुजन महासंघ के अध्यक्ष प्रकाश अम्बेडकर ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से मुलाक़ात कर दलित समुहों के युवकों का कोम्बिंग ऑपरेशन रोकने की मांग फिर एक बार की.

इसी बीच मुंबई में हो रहे ‘छात्र भारती’ के कार्यक्रम को सुरक्षा कारणों का हवाला देकर सरकार ने रद्द कर दिया है.

इस समारोह में विधायक बने गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवानी तथा दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के उमर ख़ालिद शिरकत करने वाले थे.

पुलिस ने कार्यक्रम के आयोजक विधायक कपिल पाटिल को भी हिरासत में ले लिया, जिससे राज्य में फिर एक बार सरकार के प्रति आक्रोश देखने को मिला.

दक्षिणपंथी गुटों ने जिग्नेश मेवानी और उमर ख़ालिद पर महाराष्ट्र में जातीय तनाव भड़काने का आरोप लगाया है. इन दोनों पर पुणे पुलिस में केस भी दर्ज करवाया गया है, जिससे सोशल मीडिया पर राज्य के बीजेपी सरकार के प्रति फिर एक बार गुस्सा उबल पड़ा.

दूसरी ओर भीमा कोरेगांव हिंसा का मामला राज्यसभा में भी गुंज चुका है. महाराष्ट्र के कई सांसदों ने भीमा कोरेगांव के हिंसा की निंदा की है.

दिलचस्प बात यह है कि एक तरफ़ राज्य भर के दलित संगठन भीमा कोरेगांव हिंसा की जवाबदेही तय करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं, तो दुसरी ओर रिपब्लिकन पार्टी के नेता अठावले बीजेपी को दाग़मुक्त कर रहे हैं. जिससे आम लोगों के मन में यह सवाल पैदा हो रहा है कि आख़िर दंगा किसने किया? और दोषियों को कौन बचा रहा है?

इस बीच मामला फिलहाल शांत होने लगा है. हालांकि संभाजी भिड़े के समर्थकों ने पूरे राज्य में प्रदर्शन करने की धमकी दी है. 

मीडिया को रोल

भीमा कोरेगांव की हिंसा के विरोध में मंगलवार को महाराष्ट्र बंद का ऐलान दलित संगठनों ने किया. इस बंद में मुस्लिम संगठन भी शामिल हुए. औरंगाबाद, कोल्हापूर, पुणे, मुंबई और राज्य में कई जगह शांतीपूर्वक विरोध-प्रदर्शन हुएं. कुछ जगह छिटपूट हिंसा की ख़बरें आईं, पर बंद शांतीपूर्ण रहा. कुछ अपवाद छोड़ दें तो दलित समूहों ने समूचे महाराष्ट्र में शांति बनाए रखी.

लेकिन स्थानिय मीडिया ने इस छिटपूट हिंसा की ख़बरों को बार-बार दिखाकर दहशत का माहौल पैदा किया. दरअसल, ब्रहम्णवादी मीडिया दलितों पर मीडिया अपना गुस्सा निकाल रही थी. नेशनल मीडिया भी इसमें पीछे नहीं था.

सच पूछे तो मीडिया के इन ख़बरों ने दलित युवकों में गुस्सा भड़काने का काम किया. जिसके बाद गुस्साए दलित युवकों ने तोड़-फोड़ शुरु की. मीडिया के ख़बरों के बाद ही औरंगाबाद, नांदेड और कोल्हापूर में हिंसा भड़की.

हिंसा भड़कने के पीछे भिडे़-एकबोटे ग्रूप्स जितने ज़िम्मेदार हैं, उससे कहीं ज़्यादा हमारी मीडिया. हद तो है कि भीमा कोरेगांव हिंसा को मीडिया ने दलित विरुद्ध हिंदू दंगल के नाम से प्रचारित किया. कई प्रमुख न्यूज़ चैनल टॉप हेडर के साथ दलितों को दंगाई बता रही थी.

प्रकाश अम्बेडकर ने तो सीधे तौर पर मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘मीडिया गांव से आई ख़बरें सही तरीक़े से चलाती तो हिंसा नहीं भड़कती, फिर मीडिया ने न्यूज़रुम की ख़बरें चला दी जिससे गुस्साए लोग हिंसा करने पर आमादा हो गए.’

वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले भी हिंसा भड़कने के पीछे मीडिया को ज़िम्मेदार मानते हैं. वागले तो यहां तक कह बैठे कि ‘दंगाई कौन है, यह मीडिया को खुद ही पता चलेगा, जब वह पेशवाई चोला उतार फेकेगा’.

हिंसा की साज़िश रचने के आरोप में मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े को हिरासत में लेने की मांग की जा रही है, पर सरकार ने इन्हें अरेस्ट करने के बजाए, दलित युवको का कोम्बिंग ऑपरेशन कर रही है. जिससे दलित संगठन नाराज हैं.

हालांकि हिंसा की जांच के लिए राज्य सरकार ने एक सिटिंग जज को लेकर एक जांच समिती का गठन किया है. इन जजों को सिविल और क्रिमिनल पावर दोनों देने की मांग प्रकाश अम्बेडकर ने किया है. जिससे हाईकोर्ट के जज घटना की जांच कर दोषियों के ख़िलाफ़ तुरुंत कार्रवाई कर सकेंगे.

भीमा कोरेगांव के हिंसा को लेकर राजनीति भी तेज़ हो गई है. शरद पवार, राहुल गांधी और मायवती ने सरकार को आड़े हाथों लिया है. पर सही माने तो बीजेपी ने अपनी ही क़ब्र खुद ही भीमा कोरेगांव में खोद ली है. दलित संगठन इस हिंसा के पीछे बीजेपी को सीधा ज़िम्मेदार मानते हैं. शनिवार वाडा की ‘एल्गार परिषद’ की भाषण सुने तो बीजेपी अपनी ही सांप्रदायिकता के दलदल में कितनी धंस चुकी है, यह नज़र आएगा. भीमा कोरेगांव की हिंसा इस बात का सबूत दे रही हैं कि बीजेपी की नैय्या डूबने वाली है.

(लेखक महाराष्ट्र से निकलने वाली मराठी पत्रिका ‘सत्याग्रही विचारधारा’ के कार्यकारी संपादक हैं.)

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