‘गेहूं की क़ीमत 15 हज़ार प्रति एकड़ आती है, लेकिन दाम उससे कम मिलता है तो आत्महत्या कैसे रूकेगी?’

TwoCircles.net News Desk   


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बड़वानी : ‘मध्य प्रदेश में हर चार घंटे में 6 किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो इसे रोकने के लिए संपूर्ण क़र्ज़-मुक्ति व हर उपज —फसलों, फलों, सब्जियों आदि के लिए लागत के डेढ़ गुना क़ीमत मिलनी ज़रूरी है. इन दोनों कामों के लिए केन्द्र व राज्य स्तरीय स्तर पर आयोग गठित किया जाए.’

ये बातें रविवार को बड़वानी में ‘अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय’ तथा ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ द्वारा एक विशेष सम्मेलन में मेधा पाटकर ने रखीं.

सम्मेलन में मेधा पाटकर ने संपूर्ण क़र्ज़-मुक्ति और हर उपज का लागत के 1.5 गुना क़ीमत को लेकर दो क़ानूनी मसौदे भी पेश किए. इन मसौदों में कृषि और किसान की परिभाषा व्यापक करते हुए ज़मीन मालिक किसान के साथ भूमिहीन किसान यानी खेत-मज़दूर, मछुआरे, वनोपज पर निर्भर आदिवासियों को भी शामिल किया गया. इन सभी पर आज आत्महत्या करने की स्थिति व मजबूरी थोपी गई है.

इन दोनों मसौदों पर विस्तृत चर्चा करते हुए किसानों ने कई अपने सुझाव भी दिए.

रणवीर तोमर ने कहा, बड़वानी में आज तक कपास की मंडी नहीं लगाई गई. किसानों को न्यूनतम मूल्य से भी कम क़ीमत मिली है. फ़सल बीमा में भारी लूट हो रही है. अब न्यूनतम मूल्य नहीं, सही मूल्य होना चाहिए. मंडियों व व्यापार में ख़रीदी-बिक्री की प्रणाली में बुनियादी सुधार चाहिए.

धुरजी पाटीदार ने विस्तृत ब्यौरा देकर बताया कि गेहूं की क़ीमत प्रति एकड़ 15 हज़ार आती है, लेकिन दाम उससे कम मिलता है तो आत्महत्या कैसे रूकेगी?

बैंकों, सोसायटियों या निजी साहूकारों के ‘चक्रवाति ब्याज’ पर आपत्ति दर्ज कराते हुए सनोवर मंसूरी ने कहा कि, महिला किसानों को विशेष सहुलत और सहयोग देना ज़रूरी है.

देवराम कनेरा ने देशभर चल रहे किसानों के आंदोलनों पर रोशनी डालते हुए कहा कि, जबरन भूअधिग्रहण के साथ, घाटे का सौदा बनाकर खेत-ज़मीन बेचने के लिए किसानों को मजबूर किया जा रहा है. यह सब कंपनियों के पक्ष में हो रहा है. इसलिए संघर्ष के द्वारा ही ये दो क़ानून पारित करवाने पड़ेंगे. चुनावी राजनीति को चुनौती देनी होगी.

कामरेड जसविंदर सिंह ने कहा कि, मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश किए आंकड़ों के अनुसार किसानों की हज़ारों की संख्या में आत्महत्याएं हो रही हैं, लेकिन खेत-मज़दूरों की आत्महत्याएं किसानों से भी ज्यादा संख्या में है.

उन्होंने आगे कहा कि, मोदी शासन के 3 साल और भूतपूर्व शासन द्वारा पिछले 4 सालों में कंपनियों को 2.5 लाख करोड़ रू की टैक्स में छूट दी गई है, तो मध्य प्रदेश में किसानों का 2.5 लाख करोड़ का क़र्ज़ा माफ़ करने में दिक्कत क्या है?

उन्होंने बताया कि, किसानों को बख्शने के बदले फ़सल बीमा के नाम पर 2 लाख 663 करोड़ रूपये कंपनियों ने पाए, लेकिन 2 प्रतिशत रक़म का ही भुगतान किया गया. आपदा नुक़सान की भरपाई नहीं की गई. खुद मुख्यमंत्री के क्षेत्र में मात्र 36 रू का चेक किसानों को देकर अवमानना की गई.

बता दें कि आगामी 18 जनवरी को राज्य-स्तरीय संगोष्ठी होगी. इन दोनों प्रस्तावों पर अधिवक्ता विशेषज्ञ, राष्ट्रीय किसान नेता भी किसानों के साथ शामिल होकर चर्चा करेंगे.

इस सम्मेलन में ख़ास तौर पर नर्मदा घाटी के किसान, मज़दूर, मछुआरे, धनगर/पशुपालक या जिनकी भी प्रकृति पर आजीविका है, सैकड़ों की संख्या में शामिल हुए.

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