TwoCircles.net News Desk
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुज़ुर्गों के अधिकारों पर एक जनहित याचिका (रिट याचिका सिविल नंo 193/2016) की सुनवाई करते हुए राज्य सरकारों को बुढ़ापे की पेंशन की योजनाओं के क्रियान्वयन पर शपथ-पत्र दाख़िल करने का आदेश दिया है. इस आदेश का स्वागत करते हुए ‘पेंशन परिषद’ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह मांग की है कि एक सार्वभौमिक और ग़ैर–अंशदायी वृद्धावस्था पेंशन तत्काल स्थापित की जाए, जिसमें पेंशन की न्यूनतम राशि न्यूनतम मज़दूरी का आधा किया जाए. इस मासिक पेंशन राशि को ना सिर्फ़ महंगाई की दर से जोड़ा जाए, बल्कि इसे समय–समय पर संशोधित भी किया जाए. साथ ही यह भी कहा है कि राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) के तहत लाभों के वितरण के लिए आधार/यूआईडी को अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए.
पेंशन परिषद ने अपने प्रेस विज्ञप्ति में सरकार की निम्न बातों की ओर ध्यान दिलाया है —
1. आधार सम्बन्धी त्रुटियों के कारण पेंशन-भोगियों की भूख से मरने की रिपोर्टें : हाल ही में भुखमरी से पेंशन-धारियों के मरने की कम से कम दो घटनाएं सामने आई हैं —इनमें गढ़वा (झारखंड) के डांडा ब्लॉक की प्रेमानी कुंवर और मांझी गांव ब्लॉक की इटवारिया देवी शामिल हैं. प्रेमानी को अक्टूबर 2017 में पेंशन मिलना बंद हो गया था, क्योंकि उनकी आधार संख्या को किसी अन्य व्यक्ति के बैंक खाते से जोड़ दिया गया था. इटवारिया देवी के मामले में, बायोमेट्रिक्स के सफलतापूर्वक प्रमाणीकरण के बाद भी कॉमन सर्विस प्रोवाइडर ने उन्हें दिसम्बर 2017 की पेंशन नहीं दी और इसका दोष इंटरनेट के ख़राब कनेक्शन के ऊपर डाल दिया गया. हम मांग करते हैं कि ऐसी लापरवाही और ‘हत्या’ के लिए यूआईडीएआई सहित दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई की जाए.
2. वृद्धावस्था पेंशन की अपमानजनक रूप से कम राशि : एक ओर जहां पिछले एक दशक में देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में ऐतिहासिक वृद्धि देखी गई है, वहीं बुढ़ापे की पेंशन की राशि 2006 से 200 रुपए प्रति माह पर ही अटकी हुई है. देखा जाए तो वास्तविक रूप में इसमें 50 फ़ीसदी की कमी आई है और न्यूनतम मज़दूरी के स्तर पर यह लगभग एक दिन की कमाई के बराबर है. हम बुज़ुर्गों के लिए एक सार्वभौमिक, ग़ैर–अंशदायी पेंशन की हमारी मांग दोहराते हैं और चाहते हैं कि पेंशन की राशि न्यूनतम मज़दूरी की कम से कम आधी हो और इसे महंगाई की दर से भी जोड़ा जाए. पिछले हफ़्ते ही अरुणा रॉय और बाबा आधव ने पेंशन परिषद की तरफ़ से प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में भी यह बात दोहराई है.
3. घटता बजट आवंटन : राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) के लिए पिछले तीन वर्षों के दौरान बजटीय आवंटन में ना सिर्फ़ वास्तविक रूप में बल्कि सांकेतिक तौर पर भी गिरावट आई है. NSAP का बजट देश की GDP का केवल 0.06% है, जो कि सरकार के लिए इसकी प्राथमिकता के पूर्ण अभाव को दर्शाता है. राज्य सरकारों के योगदान के बावजूद भारत सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि वह बुजुर्गों के लिए एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए ज़रूरी न्यूनतम बजटीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करे. हम मांग करते हैं कि 2018-19 के लिए NSAP को पर्याप्त बजट आवंटित किया जाए.
वर्ष | NSAP के लिए आवंटन (करोड़ रुपए में) |
2017-18 | 9500 |
2016-17 | 9500 |
2015-16 | 8616 |
2014-15 | 10,635 |
2013-14 | 9,541 |
स्त्रोत: केंद्रीय बजट सम्बंधी दस्तावेज़
4. कम होता कवरेज : इस योजना के कवरेज में वृद्धि करने की बार–बार दी गयी अपनी ही कमिटियों (NSAP टास्क फ़ोर्स, 2013 और 2017 में सुमित बोस की अध्यक्षता में सामाजिक–आर्थिक एवं जाति जनगणना (SECC), 2011 पर बने विशेषज्ञ समूह) की सिफ़ारिशों को भारत सरकार ने नज़रअंदाज किया है. हम इस पेंशन योजना में बुज़ुर्गों के सार्वभौमिक कवरेज की मांग करते हैं. कम से कम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के अंतर्गत आने वाले परिवारों को तो इसमें शामिल किया ही जाना चाहिए.
5. कष्टदायक विलंब : PUCL की भोजन के अधिकार सम्बंधी याचिका के तहत 28 नवम्बर 2001 को हर महीने की 7 तारीख़ तक पेंशन भुगतान किए जाने सम्बंधी सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों का उल्लंघन करते हुए अधिकतर राज्यों में 3-4 महीने की देरी से भुगतान किया जा रहा है. फ़ंड्ज़ के प्रवाह की प्रणाली को ठीक करने के सभी दावों के उलट भारत सरकार स्पष्ट रूप से परिभाषित जनसंख्या को नियमितता के साथ एक नियत पेंशन राशि देने में विफल रही है. हम मांग करते हैं कि पेंशन के भुगतान को नियमित किया जाए.
6. जवाबदेही का अभाव : कई कथित लाभकारी सुधारों जैसे आधार संख्या को बैंक खातों से जोड़ना और नई सार्वजनिक निधि प्रबंधन प्रणाली (PFMS) की वजह से गम्भीर प्रशासनिक विफलताएं सामने आई हैं और पेंशन भुगतान में अत्यधिक देरी भी हुई है. उदाहरण के लिए बिहार में हाल ही में एक क्षेत्रीय अभ्यास से पता चला है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ कुल 63 लाख पंजीकृत पेंशनधारियों में से क़रीब 10 लाख लोगों को आधिकारिक तौर पर पेंशन इसलिए नहीं मिल रही थी, क्योंकि कुछ सरकारी अधिकारी आवश्यक काग़ज़ी कार्रवाई पूरी करने में विफल रहे थे. न केवल यह अमानवीय है बल्कि इस योजना का संचालन करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही भी शून्य प्रतीत होती है. हम मांग करते हैं कि राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) के दिशा-निर्देशों के अनुसार इसके सामाजिक अंकेक्षण को बिना किसी देरी के शुरू करना चाहिए.
7. पारदर्शिता का अभाव : डिजिटलीकरण में वृद्धि और (भुगतान और वितरण के लिए) बैंकिंग संवाददाताओं की ओर जाने से पारदर्शिता और पेंशनधारियों के हाथ में रहने वाले दस्तावेज़ी प्रमाण, दोनों में ही कमी आई है. हम मांग करते हैं कि वृद्धावस्था पेंशन के संचालन के लिए एक ऐसी जनता सूचना प्रणाली (JIS) क़ायम की जाए, जिसमें एक पेंशनधारी के दृष्टिकोण से सारी सूचना सार्वजनिक तौर पर और आसानी से उपलब्ध हो. इसमें महीने के अनुसार पेंशन के भुगतान की तारीख़ और राशि भी होनी चाहिए.
8. बड़ी संख्या में पेंशन योजना से नाम हटाकर उसे ‘बचत’ के तौर पर दिखाना : कई राज्य सरकारें पेंशन डेटाबेस के आधार से जुड़ने के बाद ‘बचत’ होने की घोषणाएं करती आई हैं. राजस्थान में वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए जून तक सरकार ने 600 करोड़ रुपए की बचत होने का दावा किया और लगभग 7 लाख लोगों की पेंशन रद्द कर दीं. हालांकि कई रिपोर्टों से निकलकर सामने आया कि हज़ारों लोग जिन्हें ‘मृत’ या ‘फ़र्ज़ी’ घोषित किया गया था, वे ना सिर्फ़ जीवित थे बल्कि समाज के सबसे वंचित लोगों में से थे. हाल ही में झारखंड सरकार ने भी इस वित्तीय वर्ष में 180 करोड़ रुपयों की ‘बचत’ होने का दावा किया था. लेकिन इस बचत की गणना करने के तरीक़े के सम्बंध में सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जो जानकारी सामने आई है, उससे इसका कोई सुसंगत तरीक़ा नज़र नहीं आता. लगता है कि जिन लोगों के बैंक खाते आधार से नहीं जुड़े हैं, उन्हें सूची से बाहर निकालकर जो राशि बची उसे ‘बचत’ के तौर पर दिखाया जा रहा है. और जिन लोगों के नाम इस तरह हटाए गए हैं उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं दी गई है. हम मांग करते हैं कि इस कथित ‘बचत’ की गणना और इसका ख़ुलासा करने में पूरी पारदर्शिता हो और इसमें किसी तरह के भ्रष्टाचार या रिसाव के पाए जाने पर तत्काल कार्यवाही भी हो.