क्या सोचते हैं यूपीएससी की परीक्षा में मुसलमानों के टॉपर रहे साद मियां खान?

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

दिल में अगर अपनी मंज़िल हासिल करने का जुनून, अपने ख़्वाब के प्रति समर्पण और अल्लाह पर यक़ीन और खुद पर भरोसा हो तो दुनिया का कोई भी इम्तेहान पास करना मुश्किल काम नहीं है. शायद यही बातें साद मियां खान के लिए कामयाबी की बुनियाद बनीं.


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साद की इस कामयाबी के लिए इंतज़ार की घड़ियां थोड़ी लंबी रही, पर जब नतीजे आए तो इन्हें अब कोई गिला-शिकवा नहीं है.

साद इस बार यूपीएससी के सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा में 25वीं रैंक लाने में कामयाब रहे हैं. साद मुस्लिम उम्मीदवारों में पहले स्थान पर हैं, यानी इन्हें यूपीएससी की परीक्षा में मुसलमानों का टॉपर कहा जा सकता है.

साद और उनका परिवार उत्तर प्रदेश के बिजनौर शहर में नई बस्ती ‘बुल्ला का चौराहा’ में रहता है. आपकी 12वीं तक की पढ़ाई बिजनौर के सेन्ट मेरी स्कूल से हुई है. उसके बाद कानपुर के ‘हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट’ से सिविल इजीनियरिंग में बी.टेक की डिग्री हासिल की. और फिर यूपीएससी की तैयारी में लग गए. इन्होंने ये कामयाबी पांचवी कोशिश में हासिल की है.

साद कहते हैं कि, यूपी में लॉ एंड ऑर्डर को देखें तो बहुत मायूसी दिखती है. लोगों को अपने अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं. लोग अधिकारों और इंसाफ़ के लिए कलेक्ट्रेट और थानों का चक्कर लगा रहे हैं. ज़िले के लोग परेशान हैं. पुलिस का व्यवहार इतना अच्छा नहीं है, जितना होना चाहिए. इन्हीं सब चीज़ों को देखा व समझा तो सोचा कि इसमें बदलाव लाना चाहिए. ऐसे में बस एक ही बात दिमाग़ में आई कि आलोचना करने से बेहतर है कि इस सिस्टम में जाया जाए और इसमें सुधार के प्रयास किए जाएं.

वो बताते हैं कि, इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही मैंने पुलिस सर्विस में जाने का फैसला ले लिया था. दरअसल, ये एक ऐसी सर्विस है, जहां आप देश के लिए काम कर सकते हैं. जिन लोगों को इंसाफ़ नहीं मिल पाता; जिन्हें गरीब व शोषित तबक़े का समझकर हर कोई दबा रहा है, उनके लिए कुछ कर सकते हैं.

साद कहते हैं कि, आईपीएस मेरी पहली च्वाईस है. हालांकि मेरी आईएएस की रैंक है, लेकिन मैं पुलिस सर्विस में ही जाना चाहता हूं. वजह पूछने पर बोलते हैं, जब भी किसी शहर में माहौल या लॉ एंड ऑर्डर ख़राब होता है तो लोग सबसे पहले कोर्ट के बजाए पुलिस के पास जाते हैं. यहां पर इंसाफ़ मांगते हैं. यानी यहां जिसके साथ ग़लत हो रहा है, उसे हम न्याय दिला सकते हैं. मेरी शुरू से यही सोच रही है और यही मेरे लिए बेस्ट है.

27 साल के साद के पिता रईस अहमद खान तीन साल पहले मुज़फ़्फ़रनगर के असिस्टेंट इलेक्शन ऑफ़िसर के पद से रिटायर हुए हैं. मां कौसर जहां हाऊस मेकर हैं. साद के दो भाई और दो बहन हैं. यानी चार भाई बहनों में साद का नंबर तीसरा है.

ये पूछने पर कि जब आपकी पोस्टिंग होगी, तब उस ज़िले में आप पहला बदलाव क्या लाना चाहेंगे? इस पर साद कहते हैं, पुलिस के प्रति लोगों का जो नज़रिया है, उसे मैं बदलना चाहूंगा. और ऐसा विश्वास दिलाना चाहूंगा कि पुलिस आपके लिए ही है. आप इसे कभी भी अप्रोच कर सकते हैं. बाक़ी लॉ एंड ऑर्डर बेहतर रखना है. इस बात का ध्यान रखना कि क़ानून का पालन सही ढंग से हो. मैं चाहता हूं कि आम लोगों को पुलिस अपनी दोस्त नज़र आए. वो दारोग़ा या थाना प्रभारी से मिलने में घबराए नहीं.

पुलिस रिफॉर्म के बारे में साद का कहना है कि, ये अंदर से ही होगा. इस बारे में तो माननीय सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाईन्स भी आ चुकी हैं.  सच पूछें तो पुलिसिंग के तरीक़े में बदलाव की ज़रूरत है.

हालांकि वो ये भी मानते हैं कि बहुत कुछ हमारे हाथों में नहीं होता, बहुत कुछ सरकार के हाथ में है. हमें जो सरकार की ओर से करने को कहा जाएगा, वही करना पड़ेगा. लेकिन हां, हम अपने व्यवहार तो बेहतर बना ही सकते हैं. बेगुनाहों को इंसाफ़ दिला सकते हैं. ये सरकार के लिए भी फ़ायदेमंद है.            

साद ने इस परीक्षा में बतौर सब्जेक्ट भूगोल विषय लिया था. वो मानते हैं कि इसे पढ़ने के बहुत सारे फ़ायदे हैं. इससे हम मुल्क के भौगोलिक हालात से रूबरू होते हैं. एक समझ बनती है और ये हमेशा काम आने वाली चीज़ है. और साथ ही इससे जेनरल स्टडीज़ के पेपर में काफ़ी लाभ मिलता है.

साद ने अपनी पूरी तैयारी घर पर ही रहकर खुद से की है. वो बताते हैं कि,पांच साल मैंने घर पर रहकर इंटरनेट की मदद से पढ़ाई की. सारी चीज़ें ऑनलाईन मौजूद हैं. उनका ये भी कहना है कि अगर कोई कोचिंग मेरा नाम इस्तेमाल कर रहा है तो वो ग़लत है. मैंने कभी किसी कोचिंग में कोई क्लास नहीं ली है.

जो लोग सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए साद का कहना है कि, यूपीएससी की तैयारी करनी है तो पहले ये समझ लें कि ये सौ मीटर की दौड़ नहीं है, ये एक मैराथन है. आपको बहुत लंबा और आराम-आराम से दौड़ना है. हमारे अंदर ये क्षमता भी होनी चाहिए कि किसी भी चीज़ को लंबे समय तक झेल सकें. रिश्तेदार ताने मारेंगे. इसमें घर के भी कुछ लोग शामिल हो सकते हैं, उन सबको झेलने की क्षमता आपके अंदर होनी चाहिए. यानी आपके पास बहुत सारे प्रॉब्लम्स के लिए सॉल्यूशन वाला माईंडसेट का होना बहुत ज़रूरी है.

वो फिर कहते हैं कि, पॉजिटिव रहिए. खुद पर यक़ीन रखिए. न्यूज़पेपर किसी भी हालत में पढ़ना मत भूलिए. सिलेबस के किसी टॉपिक को छोड़िए नहीं, सबको बराबर समय दीजिए. और याद रखिए नॉलेज का होना एक अलग चीज़ है और उसे प्रेजेन्ट करना अलग चीज़. इस लिहाज़ से अच्छे अंदाज़ में लिखने की प्रैक्टिस बहुत ज़रूरी है. अगर आपके पास नॉलेज है, लेकिन आप अच्छे से लिख नहीं पा रहे हैं तो आपके मार्क्स अच्छे नहीं आएंगे.

मुल्क के मुस्लिम नौजवानों से वो कहते हैं कि, आपने अपने लिए जो मंज़िल तय किया है, चाहे वो कितना ही मुश्किल क्यों न हो, उसे कड़ी मेहनत से हासिल ज़रूर किया जा सकता है. याद रखिए कि ज़िन्दगी में कोई शॉर्ट-कट नहीं होता. मेहनत तो करनी ही पड़ेगी. हमेशा जो शोषित तबक़ा है और जो हक़ है, उसके बारे में सोचिए. फिर अल्लाह भी आपकी मदद ज़रूर करेगा.

साद ने अपनी फिटनेस पर हमेशा ध्यान दिया है. इन्हें टेनिस खेलने का नहीं, बल्कि देखने का शौक़ है. रफेल नडाल इनके फेवरेट खिलाड़ी हैं. वो कहते हैं कि मैं इसे बहुत फॉलो करता हूं. किसी खिलाड़ी की ज़िन्दगी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.

दोस्तों के साथ कभी-कभार साद फिल्म देखने भी चले जाते हैं. इन्हें ख़ास तौर पर अजय देवगन, सलमान खान और नए हीरो में राजकुमार राव पसंद हैं. आख़िरी बार इन्होंने अजय देवगन की ‘रेड’ फिल्म देखी थी. पसंदीदा अभिनेत्री के बारे में पूछने पर कहते हैं कि, रहने दो भाई…

शादी के बारे में पूछने पर साद हंस देते हैं. फिर बोलते हैं —एक जो इतना बड़ा काम पूरा हुआ है, अब नया काम मत दो भाई. फिर कुछ देर ठहर कर पूरी गंभीरता से बोलते हैं —अभी बड़ी ज़िम्मेदारी मिलने वाली है. दुआ कीजिए कि मैं उसे बहुत अच्छे से निभा पाउं. कुछ बेहतर कर सकूं ताकि दुनिया मुझे याद रखे…

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