फ़हमीना हुसैन, TwoCircles.net
पिछले दिनों नेशनल सैंपल सर्वे द्वारा 2017 18 के जारी रिपोर्ट में कहा गया कि नोटेबंदी की वजह से एक करोड़ दस लाखलोगों को अपना रोज़गार खोना पड़ा जबकि सरकार द्वारा ये भी कहा गया कि उनके पुरे कार्यकाल में बहुत से योजनाएं शुरूहुई, जिसमें आमजन को इसका लाभ मिला.
दरअसल 2014 में बनी केंद्र की भाजपा सरकार ने महिला सशक्तिकरण के नाम पर बहुत सी योजनाओं की शुरुआत कीजिसमे अगर बिहार राज्य की बात करें तो पिछले दस वर्षो से चलाए जा रहे महिला सशक्तीकरण एवं जागरूकता अभियान काअसर लोकसभा चुनाव पर भी दिखने लगा है।
वर्ष 2014 के मुकाबले 12 फीसदी महिला मतदाताओं में वृद्धि हुई है. चुनाव आयोग के मुताबिक बिहार में 2014 के मुकाबले2019 में महिला मतदाताओं की संख्या में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
आयोग के आकड़ें के मुताबिक महिला मतदाताओं की संख्या की वृद्धि दर 12.19 प्रतिशत है। महिला वोटर 2014 में 2 करोड़96 लाख 76 हजार 576 थीं जो 2019 में बढ़कर 3 करोड़ 32 लाख 93 हजार 468 हो गईं हैं।
दरअसल बिहार में जाति व धर्म से अलग हटकर लोकसभा उम्मीदवारों के जीत-हार में महिला मतदाताओं की निर्णायक भूमिकाशामिल है जिसमें सरकार के पिछले कार्यों का आकलन भी शामिल है।