सामाजिक न्याय के मुद्दों पर पहली बार जारी घोषणापत्र

Image used for representtional purposes. Photo Manoj Aligadi

TCN News

लोकतंत्र की बुनियाद सामाजिक न्याय और आर्थिक बराबरी होती है। लेकिन इस दौर में आर्थिक-सामाजिक गैर बराबरी चरम पर पहुंच गई है। बाबा साहेब ने कहा था कि स्वतंत्रता वहीं होती हैं जहां किसी तरह का शोषण न हो। सामाजिक न्याय, सम्मान, गरीबी का मामला हो बेरोजगारी का मामला हो उसमें हालत बद से बदतर होते गए हैं। इसने देश को लगातार कमजोर करने का काम किया है।

दलित और पिछड़ों के खिलाफ सरकार ने संविधान पर लगातार हमले किये। पहले एससीएसटी एक्ट को कमजोर करने की कोशिश हुई। जनता के तीखे विरोध और भारत बंद के बाद सरकार ने पीछे हटते हुए एससीएसटी एक्ट को पुनर्बहाल किया गया। संविधान की 9वीं सूची में शामिल करने का सवाल बना हुआ है।


Support TwoCircles

सरकार ने नए सिरे से संविधान के साथ छेड़छाड़ करते हुए सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण बिल लोकसभा, राज्यसभा पारित करा लिया, मौजूदा सरकार ने विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर संविधान की मूल संरचना को क्षतिग्रस्त किया। दरअसल सामाजिक न्याय की संविधान में मौजूद अवधारणा को क्षतिग्रस्त करते हुए संविधान संशोधन के ज़रिये सवर्ण आरक्षण, 13 प्वाइंट रोस्टर जैसे प्रमुख मुद्दों को लेकर सामाजिक न्याय घोषणापत्र जारी किया गया।

आंकड़े बताते हैं कि आबादी के अनुपात में सत्ता-शासन की संस्थाओं और विभिन्न क्षेत्रों में दलितों-आदिवासियों व पिछड़ों का प्रतिनिधित्व ना के बराबर है। यूजीसी नेट जैसी परीक्षाओं में आरक्षण बहुत मुश्किल से 2010 में लागू हो पाया। आज भी केंद्र सरकार की ग्रुप ए की नौकरियों में सवर्ण 68, ओबीसी 13, एससी 13, एसटी 6 प्रतिशत हैं। देश के 496 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों में 448 सवर्ण हैं। 43 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 95 प्रतिशत प्रोफेसर, 92.9 प्रतिशत एसोसिएट प्रोफेसर, 66.27 प्रतिशत एसिसटेंट प्रोफेसर सवर्ण हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक भी प्रोफेसर ओबीसी तबके से नहीं है।

देश के संवैधानिक और नीति नियामक संस्थाओं में आजादी के इतने सालों बाद भी दलित, आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक और महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं है। इसका परिणाम आरक्षण लागू करने से लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों के निर्णयों में साफ देखा जा सकता है। इसीलिए आरक्षण प्रतिनिधित्व का मसला है न कि कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम। देश में ओबीसी की आबादी 62 प्रतिशत से ज्यादा है। दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक को मिलकर तीन चौथाई से भी अधिक हो जाती है। इसलिए भी वंचित समाज के मुद्दे अमूमन गायब रहते हैं।

आरक्षण आर्थिक विषमता मिटाने का एजेण्डा नहीं है। इस मसले पर सत्ता और विपक्ष की दूरी जैसे गायब दिखी। इस चुनाव में वंचित समाज मांग को सामने रखा है-

·सवर्ण आरक्षण और 124 वां संविधान संशोधन रद्द करने के मुद्दे पर राजनीतिक दल अपनी स्थिति स्पष्ट करें।

·13 प्वाइंट रोस्टर ने शिक्षक नियुक्ति में दलितों-पिछड़ों का आरक्षण लगभग खत्म कर आदिवासियों को आरक्षण के दायरे से ही बाहर कर दिया। रिव्यू पिटीशन की झांसेबाजी के बाद मोदी सरकार ने आधे-अधूरे अध्यादेश से जिस 200 प्वाइंट रोस्टर के स्वरुप बहाली की बात की है, उसे वापस लेते हुए रोस्टर में पहले की तीन नियुक्तियां एसटी, एससी और ओबीसी के लिए आरक्षित।

·संघ लोक सेवा आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर शिक्षक सेवा आयोग का गठन किया जाए ताकि विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में धनबल, जातिवाद और भाई-भतीजावाद को खत्म किया जा सके।

·सिविल सर्विसेज की तर्ज पर शिक्षक ट्रिब्यूनल बनाया जाए जहां बीएचयू, आईआईटी कानपुर जैसे संस्थानों में दलित शिक्षकों के साथ हो रहे उत्पीड़न की निष्पक्ष सुनवाई हो सके।

· जातिगत आंकड़े सार्वजनिक किए जाएं और 2021 की जनगणना खुले तौर पर जातिगत आधार पर कराई जाए।

·आबादी के अनुपात में सवर्ण, शासन-सत्ता की विभिन्न संस्थाओं व क्षेत्रों में कई गुना ज्यादा हैं। यह घोषणापत्र लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए पिछड़ों की संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व की गारंटी चाहता है, पिछड़ों के आरक्षण को 27 प्रतिशत से बढ़ाकर संख्यानुपात में देने की मांग, गैर बराबरी और भेदभाव के खात्मे के लिए संख्यानुपात के हिसाब से शत-प्रतिशत आरक्षण लागू।

·दलितों-आदिवासियों, पिछड़ों को न्यायपालिका, मीडिया व अन्य क्षेत्रों में भी आरक्षण की गारंटी, 1990 से बैकलॉग भरने की गारंटी के साथ तमाम सरकारी रिक्त पदों पर नियुक्ति।

· संविधान के अनुच्छेद 341 के अन्तर्गत जारी उस आदेश से जिसके द्वारा मुस्लिम, ईसाई तथा पारसी दलितों को अनुसूचित जाति की श्रेणी से वंचित किया गया है, धर्म सूचक शब्द (हिंदू) सिख, बौद्ध को हटाया जाए और सभी धर्मों की दलित जातियों को समान रुप से अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए।

· बराबरी और संख्यानुपात में महिला आरक्षण लागू हो। महिला आरक्षण के भीतर भी एससी, एसटी, ओबीसी का आरक्षण।

· न्यायपालिका में मौजूदा ब्राह्ममणवादी कोलीजियम सिस्टम खत्म किया जाए। भारतीय न्यायिक सेवा आयोग गठित हो, आरक्षण लागू हो।

· पुलिस बल में आदिवासी, दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय के उचित प्रतिनिधित्व की गारंटी।

· निजीकरण-उदारीकरण का कार्यक्रम बंद किया जाए, कामन स्कूल सिस्टम लागू किया जाए। शिक्षा और चिकित्सा एक समान और मुफ्त की जाए।

· भूमि सुधार, दलित, आदिवासी, पिछड़ों को भूमि अधिकार।

· सफाईकर्मियों के सम्मान, सुरक्षा और स्थायीकरण की गारंटी।

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE