आस मुहम्मद कैफ, TwoCircles.net
झुकी हुई कमर के साथ भी तराबीह की पाबंदी वाले हाशिम
मोहम्मद हाशिम की कमर पूरी तरह झुक गई है.अब सीधे खड़े नही हो सकते.उनकी बात को समझने के लिए गौर से सुनना पड़ता है.मोहम्मद हाशिम 80 साल के हो चुके हैं उनकी बात हम मान ले तो वो हमें बताते हैं कि 66 साल से रोजे रख रहे हैं.उन्होंने पहली बार 13 साल की उम्र में रोजा रखा था.मोहम्मद हाशिम इस दौरान बीमार भी हुए,मजदूरी भी और खेतों पर काम किया मगर रोज़ा नहीं छोड़ा.उनके 7 बच्चे है.अब उनके पोते की भी शादी हो चुकी है.हाशिम तराबीह की नमाज़ भी पाबंदी से पढ़ते हैं.वो बताते है कि बस अब बैठकर नमाज पढ़ता हूँ.हाशिम के अनुसार अल्लाह को धोखा नही दिया जा सकता हमें हर हाल में उसका हुक्म मानना है और रोजा अल्लाह का हुक्म है.
40 साल के नजीर अहमद चश्मा लगाकर पढ़ते है जबकि 78 साल की उनकी अम्मी बिना चश्मा लगाएं क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत करती है.कनीज़ फ़ातिमा रमज़ान के महीने में दो क़ुरआन पूरे कर लेती है.वो हमें बताती है कि उन्हें याद नही की उन्होंने रोज़ा रखना कब शुरू किया था मगर वो कभी उन्होंने रोज़ा छोड़ा नही है.कभी बुखार हुआ तो भी रोज़ा नही छोड़ा.कनीज़ के मुताबिक उन्हें हिम्मत और भुख अल्लाह ही देता है जब सब कुछ अल्लाह ही देता है तो फिर उसका ही हुक्म माना जाना चाहिए.नमाज और रोजा ऐसा ही हुक्म है जिसे मैं हमेशा मानती हूँ. क्योंकि ऐसा करने में मेरे गरीबी आड़े नही आती.
हड्डिया कमज़ोर हो गई है मगर जज़्बा नही
77 साल की बाबू बहुत कमज़ोर हो चुके हैं. गरीबी ने उन्हें तोड़कर रख दिया है.इस उम्र में वो खुद पकौड़ी बेचते है.बाबू हमें बताते है कि उनके बदन में इतनी ताक़त थी वो आटे के बोरी उठा लेते थे.अपनी बीवी की कब्र से फ़ातिया पढ़कर लौट रहे बाबू अब भी रोज़े रख रहे हैं वो हमें बताते है कि इस बार के रोज़े सबसे मुश्किल हैं क्योंकि उनकी बीवी अब उनके साथ नही है.उन्हें ताक़तवर ग़िज़ा नही मिल रही है मगर तब भी रोज़े और नमाज़ की पाबंदी कर रहे हैं.बाबू हमें बताते हैं कि अब हिम्मत टूट गई है और अल्लाह के सिवा कोई सहारा नही दिखाई देता है.रोज़ा और नमाज़ में अल्लाह के हुक्म को मानने के साथ उसको राजी करने की भी चाहत है.