By मंगल कुंजम, TwoCircles.net

छत्तीसगढ़ दंतेवाड़ा :-  जिले से दूर नक्सल प्रभावित अरनपुर थाना क्षेत्र में नए कैम्प खोलने को लेकर इलाके के  ग्रामीण लगातार विरोध करते रहे, 6 नवंबर को गाँव-गाँव में पुलिस कैम्प खोलने को लेकर 23 ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने 30 किलोमीटर पैदल मार्च कर तहसीलदार के माध्यम से माननीय  राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौपा था, जिसमें पुलिस कैम्प न खोलकर मूलभूत सुविधाएं जैसे बिलजी,पानी,सड़क, अस्पताल, शिक्षा और रोजगार हेतु मांग करते हुए नए पुलिस कैंपो का विरोध ग्रामीणों ने किया था ।


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दन्तेवाड़ा के पोटाली में सुरक्षाबलों के नए कैम्प खुलने के अवसर पर जिले के समस्त प्रशानिक अमला और सभी मैदानी अमले के कर्मचारी कैम्प स्थल पोटाली पहुँचे थे, आस पास के ग्राम के ग्रामीण भी कैम्प खुलने के विरोध में एकत्रित हुए थे इसी दौरान पुलिस व ग्रामीणों में तकरार हुई। ग्रामीणों और पुलिस के बीच तकरार जल्द ही झड़प में तब्दील हो गई, अतः भीड़ को काबू करने पुलिस को हवाई फायर करनी पड़ी।उक्त कैम्प के विरोध में आसपास के ग्राम के लगभग एक हजार की संख्या में लोग विरोध के लिए एकत्रित हुए थे। कैम्प के विरोध में आये ग्रामीण तीर-धनुष, हंसिया, कुल्हाड़ी,डंडे व परम्परागत हथियारों से लैस थे। पुलिस और ग्रामीणों के बीच झपड़ के बाद ग्राम पोटाली और आस पास ग्रामों में अब भी हालात तनावपूर्ण है।

 

कैम्प के विरोध में आये ग्रामीणों ने कहा हमें हमारे ही हाल में छोड़ दो, फोर्स और कैम्प के बिना ही उनके गाँव मे शांति है।और आये ग्रामीणों ने आशंका व्यक्त की कि पुलिस कैम्प की स्थापना होने से पूरे गाँव मे दहशत का माहौल रहेगा,और फोर्स उन्हें परेशान करेगी। पुलिस खेती में काम करते समय भी नक्सल आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजेगीे,और महिलाओं पर भी अत्याचार होगा। और हम आदिवासियों का जीवन-यापन जंगल पर ही निर्भर है, कैम्प के खुलने से जंगल जाने पर भी भय बना रहेगा। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पट्टे की जमीन पर कैम्प शासन- प्रसाशन ने स्थापित किया है जमीन मालिक से कैम्प के जमीन की अनुमति भी नहीं ली गई है।

इस अवसर पर उपस्थित दंतेवाड़ा कलेक्टर श्री तोपेश्वर वर्मा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह एक पहुँच विहीन क्षेत्र था अब कैम्प खुलने से अन्य सभी शासकीय योजनाओं का लाभ क्षेत्र के ग्रामीणों को मिल सकेगा। हाट बाजारों में लगने वाले स्वास्थ्य शिविर आगामी सप्ताह से नियमित रूप से आयोजित होने लगेगा पूर्व में एक शिविर का आयोजन किया गया था। साथ ही ग्राम के बेरोजगार और इच्छुक लोगों को स्वरोजगार के लिए कृषि, उद्यानिकी, मछलीपालन और पशुपालन से संबंधित शासकीय योजनाओं से लाभान्वित किया जावेगा।

आजाद भारत के इतिहास में, आजादी के 73 साल बाद भी, अनुसूचित क्षेत्रों ( पांचवीं अनुसूची ) आदिवासी/ मूलनिवासियों के बसाहट क्षेत्रो से हिंसक/अहिंसक विरोध आंदोलन जुलूस धरना प्रर्दशन के रूप में, और कहीं-कहीं हिंसक रूप से प्र तिवाद होना चिंतनीय है।

भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में थोड़ा पीछे हट कर देखने पर अंग्रेजों को (हिंसक/अहिंसक) प्रतिकार का सामना इन्ही आदिवासी बसाहट क्षेत्रों से विरोध का सामना करना पडा,अंग्रेजी हुकूमत ने इन प्रतिकारों को विद्रोह, बागी की संज्ञा से नवाजा और समय समय पर आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लिए नित्य नये नये कानून बना कर आदिवासी के विद्रोही, बगावती तेवरों पर नकेल कसने में कामयाबी मिली पर कभी भी परोक्ष शासन प्रशासन करने में असफल रहे।

आजादी के बाद इन्ही ( आदिवासी क्षेत्रों के लिए अंग्रेजों के समय बने नियम कानून) सब बातों को ध्यान में रख कर भारत का संविधान की रूप रेखा तैयार करते समय आदिवासी के बसाहट, अनुसूचित क्षेत्रों ( पांचवीं अनुसूची क्षेत्र) के लिए विशेष उपबंध रखें गये है, जो कि #पांचवींअनुसूची के तहत अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, पारम्परि रीति-रिवाजों रूढ़ी-प्रथाओं के अनुसार स्थानीय स्वशासन में भागीदारी के लिए संविधान इसकी इजाजत देता है । लेकिन आजादी के 73 साल के बाद भी #पांचवींअनुसूची के अधिकारों को अनुसूचित क्षेत्रों में आज तक लागू नहीं किया गया है ?

आदिवासी बाहुल्य (पांचवीं अनुसूची) अनुसूचित क्षेत्रों में  सरकार और स्थानीय प्रशासन में टकराहट का मूलकारण आज वर्तमान में, जल,जंगल और जमीन है,जो कि अंग्रेजी हुकूमत के समय भी यही कारण रहे हैं। और इस टकराहट के निदान के लिए संविधान प्रदत्त संवैधानिक अधिकार #पांचवीं_अनुसूची को धरातल पर लागू किये जाने पर ही संभव है।अपने संवैधानिक अधिकारों को लेकर कर आंदोलन, जुलूस धरना प्रदर्शन और हिंसक/अहिंसक आंदोलन उग्ररूप धारण कर जब ध्रूरवी करण हो जायेगा, तो यही सरकार और प्रशासन संविधान के दायरे में बात करने के लिए समझौते की टेबल पर आमंत्रित करेगी ?

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