दिल्ली में पांच सीटों पर है आप और कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों की जंग

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यूसुफ़ अंसारी, TwoCircles.net

दिल्ली में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए हुए मतदान में सभी उम्मीदवारों की क़िस्मत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में बंद हो गई है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं की ख़ास अहमियत है। इस बार दिल्ली का चुनाव शाहीन बाग़ पर आकर अटक गया है, इसलिए वह मुस्लिम वोटर पर भी फोकस हो गया है। बीजेपी पहले ही मान चुकी थी कि मुस्लिम वोट उसकी तऱफ़ नहीं आने वाला। इस लिए बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा। आम आदमी पार्टी ने पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इन सभी सीटों पर उसे कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों से कड़े मुक़ाबले का सामना करना पड़ रहा है। मुस्लिम उम्मीदवारों के आपस में टकराने से बीजेपी को यहां जीत की पूरी उम्मीद है।


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पेश है इन पांचों सीटों के कड़े मुक़ाबले पर ख़ास रिपोर्टः

1.बल्लीमारानः इस सीट पर 58.28 फीसदी मतदान हुआ है। पिछले चुनाव में यहां 68.26 फ़ीसदी वोट पड़े थे। पिछली बार के मुक़ाबले यहा दस फ़ीसदी कम वोट पड़े हैं। चुनावी सर्वेक्षणों में यहा आम आदमी पार्टी की पलड़ा भारी बताया जा रहा ह। आप ने यहां अपने खाद्य मंत्री इमरान हुसैन को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता हारून यूसुफ़ इमरान को क़ड़ी टक्कर दे रहे हैं। हारून यूसुफ़ 1993 से 2013 तक लगातार यहां से विधायक रहें हैं। शीला दीक्षित की सरकार में वो पांच साल वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन और दस साल मंत्री रहें है। पिछला चुनाव वो आप के इमरान हुसेन से हार गए थे। 38 फ़ीसदी मुस्लमान वोटरों वाली इस पर दो मुस्लिम उम्मीदवीरों की भिड़ंत से बीजेपी पहली बार यह सीट जीतने की अम्मीदवार कर रही है।

 2.सीलमपुर: यहां 50 फ़ीसदी मुस्लिम वोटर हैं। यहां 71.4 फ़ीसदी मतदान हुआ ह8। पिछले चुनाव में भी यहां 71.6 फ़ीसदी वोट पड़े थे। इस सीट पर आम आदमी पार्टी के अब्दुल रहमान और कांग्रेस के चौधरी मतीन के बीच कड़ा मुक़ाबला है। पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी के चौधरी भूरे ने कांग्रेस के चौधरी मतीन को हराया था। इस बार उनका टिकट काटकर ने आप ने अब्दुल रहमान को उतारा है। 1993 से 2013 चौधरी मतीन यहां से लगातार जीते। पहला चुनाव वो जनता दल से जीते और बाद में सभी चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते।

3.ओखलाः यह सीट दिल्ली के विधानसभा चुनाव मे ख़ास अहमियत रखती है। शाहीन बाग़ इसी इलाक़े में आता है। यहां पिछले क़रीब दो महीने से नागरिकता संशोधन क़ानून, एनपीआर और एनआरसी के ख़िलाफ़ धरना चल रहा है। तमाम टीवी चैनल सुबह से यहां मतदान के लिए लगी लंबी-लंबी लाइने दिखा रहे थे। लेकिन धरने की वजह से यहा मतदान कम हुआ है। यहां सिर्फ़ 50.5 फ़ीसदी वोट पड़े। पिछले चुनाव में यहां 60.82 फ़ीसदी मतदान हुआ था। यहां आम आदमी पार्टी के अमानतुल्लाह ख़ान और कांग्रेस के दिग्गज नेता परवेज़ हाशमी के बीच मुक़ाबला है। बीजेपी के ब्रह्म सिंह तंवर इस मुक़ाबले की वजह से जीत की उममीद कर रहे हैं।

43 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली ओखला विधानसभा सीट से हमेशा मुस्लिम विधायक ही जीतता रहा है। यहां से परवेज़ हाशमी 1993 से 2003 तक लगातार जीते। बाद में राज्यसभा में आए तो 2008 में कांग्रेस ने यह सीट राजद के लिए छोड़ दी।  राजद ने यहां यहां आसिफ़ मोहम्मद ख़ान को उतारा। उस समय बटला हाउस एनकाउंटर को लेकर यह इलाक़ा विवादो में था। आसिफ़ को इसका फ़ायदा मिला और वो जीते भी। 2013 में आसिफ़ कांग्रेस के टिकट पर दोबारा जीते। 2015 में आम आदमी के अमानतुल्लाह ख़ान ने उन्हें यहां हरा दिया। अमानतुल्ल्लाह फिलहाल यहां से विधायक और दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन हैं। दिल्ली में वो आम आदमी पार्टी का मुस्लिम चेहरा हैं।

  1. मटिया महल: इस पर बंपर वोटिंग हुई है। यहां 70.33 फ़ीसदी वोट पड़ें है। पिछली बार यहां 69.16 प्रतिशत वोट पड़े थे। इस बार यहां वोटिंग को लेकर ज़्यादा उत्साह देखा गया। यहां आम आदमी पार्टी के शुएब इक़बाल और कांग्रेस के जावेद मिर्ज़ा के बीच मुक़ाबला है। पिछली बार आम आदमी पार्टी के मोहम्मद आसिम ख़ान ने कांग्रेस के शुएब इक़बाल को हराया था। आसिम को केजरीवाल ने मंत्री भी बनाया था लेकिन एक बिल्डर से रिश्वत लेने का आरोप लगने के बाद आसिम को मंत्री पद से हटा दिया गया था। बाद में उनका पार्टी से भी मोहभंग हो गया। उनका टिकट कटा।

मटिया महल सीट पर भी हमेशा मुस्लिम विधायक ही जीतता रहा है। 1993 से 3013 तक शोएब इकबाल यहां से लगातार जीतते रहे। पहला और दूसरा चुनाव वो जनता दल के टिकट पर जीते। 2003 में जनता दल सेकुलर के टिकट पर जीते। 2008 में एलजेपी और 2013 में कांग्रेस के टिकट पर जीते। इस बार चुनाव से ठीक पहले शुएब इक़बाल ने आम आदमी पार्टी का दमन थाम लिया। अब वो यहां आप के उम्मीदवार हैं।

5.मुस्तफाबादः इस सीट पर भी इस बार बंपर वोटिंग हुई है। यहां 70.55 फ़ीसदी वोट पड़े हैं। हालांकि यह मत प्रतिशत पिछली बार के मुक़ाबले कम हैं। पिछली बार यहां 74.44 फ़ीसदी वोट पड़े थे। आम आदमी पार्टी ने यहां हाजी यूनुस को मैदान में उतारा है। उनका मुक़ाबला यहा से दो बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक रहे हसन अहमद के पुत्र अली मेहदी से है। 2008 और 2013 में हसन अहमद यहां से लगातार जीते। 2015 में वो पिछली बार हाजी यूनुस के साथ कड़े मुक़ाबले की वजह से बीजेपी के जगदीश प्रधान से हारे। इस बार भी जगदीश प्रधान इन दोनों के बीच मुस्लिम वोटों के बंटने की वजह से जीत उम्मीद कर रहे हैं। मुस्ताफ़ाबाद पहले करावल नगर सीट का हिस्सा था। 2008 के परिसीमन के बाद यह अलग विधानसभा बनी। यहां क़रीब 36 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता हैं।

यूं तो कई और विधानसभा सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार मैदान मै हैं। लेकिन जीतने की स्थिति में कोई नही है। 35 फ़ीसदी मुंस्लिम वोटर वाली बाबरपुर विधानसभा पर एनसीपी के एडवोकेट ज़ाहिद ताज क़िसम्त आज़मा रहे हैं। किसी राष्ट्रीय पार्टी से वो अकेले उम्मीदार हैं। लेकिन यहां के मुसलमानों का रुझान आम आदमी पार्टी के गोपाल राय की तरफ़ है। गोपाल राय यहां से मौजूदा विधायक, केजरीवाल सरकार मे अहम मंत्री और पार्टी के दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष भी है।

दिल्ली में मुस्लिम आबादी मोटे तौर पर 16 से 20 फ़ीसदी मानी जाती है। लेकिन मतदाताओं में मुसलमान 13 प्रतिशत हैं। इस हिसाब से दिल्ली की 70 सदस्यों वाली विधानसभा में कम से कम 9 विधायक होने चाहिए। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि मुस्लिम विधायकों की संख्या कभी भी  इस आंकड़े तक नहीं पहुंची। जब पंद्रह साल तक कांग्रेस सत्ता में रही तब विधानसभा में 5-6 मुस्लिम विधायक हुआ करते थे। पिछली दो विधानसभाओं में इनकी संख्या घटकर 4 रह गई। 2013 में कांग्रेस के जीते 8 विधायकों में से चार कांग्रेस के थे। 2015 में ये सभी हार गए थे और इनकी जगह आम आदमी पार्टी के चार मुस्लिम विधायक जीते थे।

इस बार भी उन्हीं पांच सीटों पर मुस्लिम विधायकों के जीतने की उम्मीद है जहां आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच मुक़ाबला है। अगर मुस्लिम वोटर आम आदमी पार्टी की तरफ बना रहा तो उसके पांच मुस्लिम विधायक विधान सभा में होगें। अगर मुस्लिम वोट आप और कांग्रेस के बीच बंटेगा तो विधानसभा में मुसलमानों की हिस्सेदारी घट भी सकती है।

 

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