तबलीग़ की किताब ‘फ़ज़ाइले आमाल’ को फ़िल्म में बता दिया ‘आतंकवादियों’ की किताब,बवाल

आस मोहम्मद कैफ़।Twocircles.net

 

लॉकडाऊन के दौरान डिजिटल प्लेटफॉर्म अमेज़ॉन पर रिलीज़ हुई वेब सीरीज़ ‘पाताललोक’ ख़ासी चर्चा  बटौर रही है। वेब सीरीज बॉलीवुड अभिनेत्री और भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली की पत्नी अनुष्का शर्मा ने बनाई है। तकनीकी और विषय के रूप से काफी बढ़िया यह वेबसीरीज इस्लामोफोबिया पर करारी चोट करती है साथ ही बताती है कि एक सामान्य अपराध को भी आतंकी घटना बनाकर कैसे सनसनीखेज़ बनाकर पेश किया जा सकता है! ‘पाताललोक’ तमाम ख़ूबियों के बावजूद विवादों में घिर गई है। इस वेब सीरीज़ की एक बड़ी ग़लती सवालों के घेरे में है।


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इस ग़ल्ती की वजह से वेबसीरीज़ में मुसलमानों के अक़ीदे पर गहरी चोट हो गई है। हालांकि वेबसीरीज़ के कन्टेंट को देखकर यह भी लगता है कि निर्माताओं से एक भारी चूक हो गई है! मगर अभी इतने हंगामा के बाद भी उनकी तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया न आना, साज़िश की तरफ भी इशारा कर देता है। यह ग़लती जानबूझकर की गई है अथवा अंजाने में हुई है अब तक इसपर कोई स्पष्टिकरण नही आया है।

वेबसीरीज़ की कहानी के मुताबिक़ चार अपराधियों को एक बड़े मीडिया पर्सनल्टी की हत्या करने की सुपारी मिलती है। चारों पकड़े जाते हैं। खेल है कुछ, दिखता कुछ है। इसकी जांच दिल्ली पुलिस कर रही है। सुपारी एक यूपी का बड़ा राजनेता देता है। बाद में सीबीआई को जांच सौंप दी जाती है और सीबीआई सामान्य आपराधिक साज़िश में पाकिस्तान, नेपाल और मुसलमान तलाश लेती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन चारों अपराधियों में से एक कबीर एंम मुसलमान है और उसके एक भाई को लिंचिंग में मारा जा चुका है। कबीर एम मुजफ्फरनगर का रहने वाला है। दिल्ली पुलिस की जांच से इतर सीबीआई कबीर एम को दिल्ली जामिया इलाके बटला हॉउस के एक फ्लैट से कुछ उर्दू और अरबी लिटरेचर बरामद दिखाती है और यहीं हथियारों की बरामदगी करती है। इसे जेहादी यहां से जिन बरामद किताबों को जेहादी लिटरेचर बताती है उनमें ‘फ़ज़ाइले आमाल’ भी है और इसे पर्दे पर दिखाया जाता है।बस इसी को लेकर मुसलमानों में सवाल उठ रहे हैं !

“पाताल लोक” देख चुके मेरठ के युवा वक़ार ज़ैद (29) बताते हैं कि वेब सीरीज़ में यह देखने के बाद वो हैरत में पड़ गए कि ‘फ़ज़ाइएल-ए-आमाल’ का फ़ोटो यहां क्यों इस्तेमाल किया गया है! उन्हें बहुत निराशा हुई और ग़ुस्सा आया।  वक़ार बताते हैं कि उनके अब्बू महबूब आलम तबलीग़ जमात से जुड़े है। यह क़िताब वो पढ़ते हैं। तबलीग़ जमात की सबसे बेहतरीन किताब हयातुस्सहाबा और फ़ज़ाइल-ए-आमाल सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है। इसका मतलब “आमाल की फ़जीलत’ है। इस क़िताब में अच्छे आमाल करने की सलाह दी गई और सहाबा की जिंदगी की मिसाल देकर उन्हें समझाया गया है। वेब सीरीज़ में इसे आतंकी लिटरेचर बनाकर पेश किए जाने से उन्हें ठेस पहुंची है।

‘फ़ज़ाइल-ए-आमाल’ को मज़ाहिर उलूम सहारनपुर के बड़े उस्ताद मौलाना मुहम्मद ज़िकरिया ने लिखा था। वो कांधला के रहने वाले थे। कांधला शामली जनपद में आता है। यहीं पास में ही थानाभवन है जहां के मौलाना अशरफ अली थानवी ने ‘बहिश्त-ए-ज़ेवर’ लिखी है। ये दोनों किताब ख़ासकर देवबंद और तबलीग़ जमात से जुड़े मुसलमानों में लगभग हर घर मे पाई जाती है। दावा किया जाता है कि इन दोनों विद्वानों ने इन्हें क़ुरआन और हदीस के कई साल अध्ययन के बाद लिखा है।

मौलाना ज़िकरिया के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने ‘फ़ज़ाइल-ए-आमाल’ लिखने के लिए 40 साल रिसर्च की है, हालांकि मुसलमानों के सभी फ़िरक़े इस पर एक राय नही रखते मगर वेब सीरीज़ में ‘फ़ज़ाइल-ए-आमाल’ की इस तस्वीर से नाराज़ है। देवबंद से मौलाना अरशद क़ासमी ‘फ़ज़ाइएल-ए-आमाल’  पर रोशनी डालते हुए कहते हैं कि”मौलाना ज़िकरिया साहब ने हिकायते सहाबा, फ़ज़ाइल-ए-नमाज़, फ़ज़ाइल-ए-तबलीग़, फ़ज़ाइल-ए-ज़िक्र, फ़ज़ाइल-ए-रमज़ान जैसे मामलों इसमे लिखा है। फ़ज़ाइले से मतलब फ़ायदे से होता है जैसे वो नमाज़, ज़िक्र, रमज़ान और तबलीग़ के फ़ायदे बता रहे हैं। आप यह जान लीजिए इस किताब में सहाबी मर्दो, औरतों और बच्चों के जुह्द व तक़वा फ़िक्र,इबादत, इल्मी मशागीत, ईसार और हमदर्दी के क़िस्से बयान फ़रमाए गए हैं। ऐसी बेहद ज़रूरी इस्लाह करनी वाली किताब को किसी बुरे मक़सद से पेश करना निहायत ही एतराज़ के लायक़ है।

वेबसीरीज़ ‘पाताल लोक’ के निर्माताओं की तरफ से अब तक इस कृत्य पर कोई खेद नही जताया गया है। बॉलीवुड लेखक अभिनेता अंबर सलीम बताते हैं कि यहां काम करने वाले लोगो मे उर्दू की जानकारी अब कम ही लोगो को है वो दृश्य फ़िल्माने के लिए बाज़ार से यह किताब ख]रीद ली गई होंगी। मगर तब भी यह गंभीर चूक है। यह भी अधिक पीड़ादायक है कि उन्हें उर्दू की हर एक किताब आतंकवादी की किताब लगती है। डायरेक्टर ने तब इसे पढ़ा क्यों नही! यह चूक भी अपराध से कम नही है।

इसके अलावा ‘जन्नती ज़ेवर’ और ‘दावत’ नाम वाली दो अन्य किताबों को भी वेब सीरीज में दिखाया गया है। ये दोनों किताब ज़िंदगी को बेहतर तरीक़े से जीने का तरीक़ा बताती है और हिंसा का इनसे कोई ताल्लुक़ नहीं है। फ़ज़ाइल-ए-आमाल तो तमाम मुसलमानों के घर में ज़ीनत की तरह दिखाई देती है। कांधला से मौलाना मौहम्मद शुएब सिकंदरपुरी ने इस पर सख़्त नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि इसे चूक नहीं कहा जा सकता। यह जानबूझकर की गई साज़िश है। इसके बनाने वालों के विरुद्ध धार्मिक भावनाओं को भड़काने का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। यह किताब तबलीग़ से जुड़ी है इसलिए छवि प्रभावित करने के लिए अब यह तरक़ीब सोची गई है। वो इसकी मज़्म्मत करते हैं।

इससे पहले एक और डिजिटल प्लेटफॉर्म हॉटस्टार पर आई स्पेशल ऊप्स नाम वाली सीरीज़ में मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ित एक महिला को आत्मघाती हमलावर के तौर पर दिखाया गया था। सादिया क़ुरैशी नाम की यह महिला बाद में ब्लास्ट नहीं कर पाती है। ज़ाहिर है सवाल पैदा हो रहे हैं।

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