हाशिमपुरा 33 साल बाद: वही दिन लौट आया है, उस दिन भी अलविदा जुमा था, आज भी है

आस मोहम्मद कैफ।Twocircles.net

33 साल बाद दर्द फिर उसी शिद्दत से उभर आया है। तक़लीफ़ का वो ही आलम है। गली में वो ही मंजर है। ईद तब भी उदास थी। इस बार भी है।बच्चों ने नए कपड़े तब भी नही पहने थे। इस बार भी नही पहन रहे है। ईद की खुशी तब भी नही थी। आज भी नही है। तब भी अलविदा जुमा था, आज भी है।


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“टारगेट माइनॉरिटी किलिंग” की दर्दनाक मिसाल बन चुके मेरठ के हाशिमपुरा कांड को आज 33 साल पूरे हुए हैं। इन 33 सालों में आज ही सबसे बड़ा इत्तेफ़ाक यह है कि उस दिन भी अलविदा जुमा था आज भी है। अख़बारों ने इस मोहल्ले का नाम हाशिमपुरा कर दिया। जबकि स्थानीय लोगो के लिए यह आज भी अंसारी वाली गली ही है।

इस्लामुद्दीन(43) हमें बताते हैं कि “हाशिमपुरा की ईद तो 33 साल से बेनूर ही आती है। साल 1987 को 22 मई थी। आज भी है,उस दिन भी अलविदा जुमा था। 2 दिन बाद ईद थी। आज भी है। उस ईद पर हमारे बच्चों के  खून में सने हुए कपड़े  घर आए थे। 43 बेगुनाह लोगो को गोली मारकर गंगनहर में फेंक दिया गया था। सब हाशिमपुरा के थे, हर घर मे एक खून से सना हुआ कपड़ा था। एक हेलीकॉप्टर लगातार हमारे ऊपर ‘घुं घुं’करता हुआ घूम रहा था। नेताओं ने बताया था कि उसमें उत्तर प्रदेश का सीएम था। लड़कों की बांह पकड़कर देखी थी। जिसकी मुट्ठी में नहीं आई। उसके हिस्से में गोली आई। मेरा सगा भाई मार दिया। हमनें 20 हज़ार मुआवज़े की रसीद संभाल कर रखी है। यह हमारी बेबसी का मैडल है”।

 

नवंबर 2018 में हाशिमपुरा मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला आया। इस टारगेट किलिंग में शामिल पीएसी के जवानों को उम्रक़ैद की सज़ा सुना दी गई। इस्लामुद्दीन हाशिमपुरा की उस कमेटी मे शामिल रहे जिसने पीएसी की गोली से मर चुके लोगो को इंसाफ दिलाने की जद्दोजहद की। हाशिमपुरा के हर घर में कागजों के ढेर है। दीवारों में लगी आज भी गोलियों के निशान है। इस मौहल्ले में नोजवानों में पढ़ाई को लेकर बेहद नकारात्मक सोच है। उन्हें लगता है कि उनके साथ इंसाफ नही हुआ। पढ़कर कोई उन्हें नौकरी नही देगा। ज़बरदस्त नकारात्मकता है। जब भी कोई रिपोर्टर हाशिमपुरा जाता है तो बिहार के मिन्हाज अंसारी को उससे जरूर मिलवाया जाता है। मिन्हाज यहां हीरो है। स्थानीय लोग उसकी बहुत इज्जत करते हैं।1987 में मिन्हाज यहां एक बुनकर कारखाने में मज़दूरी करता था।

22 मई को जब पीएसी यहां से लोगो को ट्रक में उठाकर ले गई तो मिन्हाज के भी गोली मार दी गई। मिन्हाज गंगनहर में एक झाड़ी पकड़कर कर किनारे छिपा रहा। उसकी पीठ पर गोली के निशान आज भी है। उसकी गवाही ने पीएसी के जवानों को सज़ा दिलाने में महत्वपूर्ण क़िरदार अदा किया है। मिन्हाज कहता है, “मैं वहां था, मुझे गोली मारी गई थी। वो अलविदा जुमा का दिन था। लड़के बांह पकड़ कर देखे जा रहे थे। पीएसी ने पूछा था कि जो पढ़ रहा है वो हाथ खड़े कर ले। कुछ लड़कों को लगा कि शायद इन्हें छोड़ देंगे मगर सबसे पहले गोली उन्ही को मारी गई थी उसके बाद लड़को ने पढ़ाई छोड़ दी थी।’

मिन्हाजुदीन बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं। अब अपने परिवार के साथ हाशिमपुरा में ही रहते हैं। गोली मिन्हाज की पीठ के आर-पार हो गई थी। हाशिमपुरा मेरठ में हापुड़ अड्डे से पहले शाहपीर गेट के सामने वाली गली है। इसे हफ़ीज मेरठी मार्ग कहा जा सकता है! हफ़ीज मेरठी यहां के मशहूर शायर हुए हैं। लॉकडाऊन के दौरान हाशिमपुरा में 2 महीने से कामकाज बंद है। यहां गलियों में छोटे कारख]eने है जहां बुनाई का काम होता है। कुछ लोग स्पोर्ट्स का सामान भी बनाते हैं। नौशाद अली (34) बताते हैं कि अब लॉकडाऊन तो सभी के लिए है और इसमे सभी का फायदा है। मगर वो ज़ुल्म सिर्फ हमारे लिए था। मेरठ में दंगा हो गया था। दूर किसी गली में बहुसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति का क़त्ल हो गया था। हमें सबक सिखाने के लिए चुना गया था। मैं तो तब सिर्फ़ एक साल का था। मगर हर एक अलविदा जुमा पर यह बात ज़रूर होती है। घर-घर मे होती है। घरों पर गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं।

बता दें कि प्रदेश के सबसे घिनोने पीएसी के अत्याचार वाले 31 साल पुराने इस ‘सरकारी’ हत्याकांड में 43 मुसलमानो की प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी (पीएसी) ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। मेरठ में दंगे के बाद पीएसी ने यहाँ सरकारी आतकंवाद की नई परिभाषा गढ़ते हुए, सैकड़ो मुसलमानो का अपहरण किया और फिर इनमे से 43 को गोली मारकर गंगनहर में फेंक दिया। 5 दूसरे लोगो के भी गोली लगी उन्हें भी मरा हुआ समझ लिया गया, मगर वो बच गए और वो  गवाह बन गए।बाक़ियों को बुरी तरह पीटकर जेल भेज दिया गया। दिल्ली हाईकोर्ट ने 19 सिपाहियों को इसके लिए गुनाहगार माना था इनमे 3 की मौत हो चुकी है जबकि बचे हुए 16 को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई।

आज इस दर्दनाक घटना को 33 साल पूरे हुए हैं यहां हर घर मे एक दर्दनाक कहानी है। आज भी ये लोग पूछते हैं कि उन्हें क्यों मारा गया था! हाशिमपुरा के चारों और बहुसंख्यक आबादी है। दो साल पहले मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का एक बयान अख़बार में छपा था जिसमे लिखा था कि बहुसंख्यक समाज की लोगो की सुरक्षा को ख़तरा था। समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशु मलिक कहते हैं आप समझ सकते है किससे-किसे ख़तरा था! यह सबक सिखाने के लिए की गई टारगेट किलिंग थी! ये लोग बलि का बकरा बनाए थे। ताकि इनके समाज में ख़ौफ़ पैदा किया जा सके! आशु मलिक हाशिमपुरा के लोगो को न्याय दिलाने की भूमिका में अग्रणी रहे हैं।

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