क्या बिहार में ओवैसी की जीत धर्मनिरपेक्ष दलों की भरोसा खोने की कहानी है !

आसमोहम्मद कैफ़ Twocircles.net 

प्रफुल्लित,हर्षित और गर्वित असदुद्दीन ओवेसी ने बिहार चुनाव में मिली कामयाबी के बाद कहा ” बड़े राजनीतिक दलों ने हमें अछूत मान लिया था। हमें वोटकटवा कहा जा रहा था। अब उन्हें जवाब मिल गया है। अब हम पार्टी के विस्तार करने पर काम करेंगे। यह हमारे राजनीतिक दल के लिए बहुत अच्छा है। हम आगे बढ़ेंगे और पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश भी चुनाव लडेंगे”।


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आल इंडिया मजलिस इतेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ( जिन्हें उनके चाहने वाले सदर साहब कहते हैं ) बिहार चुनाव के नतीजों से बेहद खुश हैं। यहां उनकी पार्टी ने पांच सीटों पर जीत हासिल की है। बिहार में एनडीए सरकार बन गई है। बेहद नज़दीकी मुकाबले में हलवाई के कढ़ाई चढ़ाने और उतारने के भारी कन्फ्यूजन के बीच नीतीश कुमार को 125 विधायकों का साथ मिल गया है जो बहुमत से सिर्फ 3 ज्यादा है। यह परिणाम रात 3 बजे आधिकारिक तौर पर घोषित किया गया है। मुख्य मुकाबले में रहे महागठबंधन के तेजस्वी यादव को 110 सीटें मिली। विपक्ष आरोप लगा रहा है सत्ता पर काबिज़ एनडीए ने छल कपट और शक्ति के दुरूपयोग के दम पर पुनः जीत हासिल की है “।

इन नतीजों के बीच धर्मनिरपेक्ष दल ओवैसी को को इस हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। नज़दीकी मुक़ाबले में मजलिस की धुर्वीकरण की राजनीति से उन्होंने सीमांचल को भारी तौर पर प्रभावित किया और मुस्लिम बहुल इलाके से एनडीए को एक दर्जन सीटों पर फ़ायदा पहुंचा। धर्मनिरपेक्ष बहुसंख्यक समुदाय ने भी वोटों के बंटवारे के बीच एनडीए के प्रत्याशियों को तरज़ीह दी। सीमांचल नेपाल और बंगाल की सीमा से लगा हुआ इलाका है और इसमे किशनगंज, अररिया,पूर्णिया और कटिहार जैसे जिले आते हैं। यह मुस्लिम बहुल इलाका बेहद पिछड़ा हुआ है। अक्सर यह खबरों मेंं बड़ी सुर्खियां तब ही पाता है जब यह इलाका बाढ़ की तबाही से जूझता है। ऐसा हर साल  होता है। इस बार ज्यादा चर्चा हो  रही है निश्चित तौर पर इसकी वज़ह ओवेसी है।

सीमांचल वो इलाका है जहां लालू प्रसाद यादव के सबसे क़रीबी नेता रहे तस्लीमुद्दीन यहां के कद्दावर राजनीतिक व्यक्ति रहे हैं और उनके दो बेटे भी मजलिस के टिकट पर चुनाव जीत गए हैं। इस बार राजद ने उन्हें टिकट नही दिया था वो मजलिस के पास पहुंच गए और अब दोनों भाई विद्यायक बन गए। यहां के मोहम्मद जावेद बिहार में कांग्रेस के एकमात्र मुस्लिम सांसद है। मजलिस ने यहां अमौर ,कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट जीती हैं। ‘मजलिस ‘ इसके अलावा 6 सीटों पर मिथलांचल में लड़ रहे थे। ओवैसी ने यहां इसके लिए 65 रैलियां की जिनमे से 50 रैलियां सिर्फ सीमांचल में की।

सीमांचल में ओवैसी के उद्भव से कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है। 2015 यहां उन्हें 9 सीट मिली थी। अब सिर्फ एक मिल पाई है, जबकि एनडीए को भारी फ़ायदा हुआ है। इस बार उसने पूर्णिया,कटिहार और अररिया में कुल 12 सीट जीत ली है। सीमांचल की कुल 11 सीटों पर एनडीए की जीत के लिए कांग्रेस के नेतागण मजलिस द्वारा धुर्वीकरण को जिम्मेदार बता रहे हैं। यहां 10 दिन कैम्प किए रहे एआईएमआईएम के सदर असदुद्दीन ओवैसी सीएए ,एनआरसी और  इंसाफ जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहकर अपना भाषण देते थे। उनके ‘राइट हैंड’ हैदराबाद के पूर्व मेयर माजिद हुसैन यहां उनके ऑब्जर्वर थे।

इस जीत के बाद सीमांचल के लोगों को उम्मीद है कि वो अपने कथनी और करनी में कोई अंतर नही रखेंगे। असदुद्दीन ओवैसी ने जीत के बाद कहा है कि वो सीमांचल के लोगों के साथ अब तक हुई नाइंसाफी के ख़िलाफ़ आवाज उठाएंगे। बाढ़ की समस्या का स्थाई समाधान ढूंढ लेंगे। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ज़मीनी समस्या होने के बावूजद ओवैसी को यह समर्थन बाढ़ से निपटने के लिए नही मिला है।

पूर्णिया के मोइन अहमद बताते हैं कि ” सीमांचल के लोगों में सबसे अधिक डर सीएए और एनआरसी को लेकर है। सीमांचल की सीमा पूर्वोत्तर राज्यो और नेपाल से मिलती है। यहां बाढ़ में जिगर के टुकड़े बच्चें बह जाते हैं कागज़ किसके पास सलामत होंगे ! ओवेसी ने अपने हर भाषण में सीएए और एनआरसी पर बात की। सीमांचल के लोग इससे पहले ही डरे हुए हैं। यह बात उनके दिल पर लग गई। उन्हें यह लगा कि धर्मनिरपेक्ष दल अगर मगर ,किंतु परन्तु के बीच उलझे रहते हैं और यह आदमी खुलकर हमारे साथ खड़ा रहेगा ! विधायक एक सड़क न बनवाये मगर यह सदन में जरूर चिल्लायेगे। लोगों को लगा यह उनकी बात कहेगा। यह धर्मनिरपेक्ष दलों के भरोसा खोने की कहानी है ” ! “

प्रोफेसर माजिद मजाज कहते हैं कि धर्मनिरपेक्ष दल हमेशा मुसलमानो के सामने बीजीपी को हउआ बनाकर पेश करते हैं। मुसलमान बीजीपी को हराने के लिए उन्हें वोट करता है और धर्मनिरपेक्ष दल उसका लाभ लेते हैं। उन्हें कुछ देने के नाम पर कुछ पार्टी वफादारों को टुकड़ा मिल जाता है माजिद कहते हैं कि इस चुनाव से एक बात तो स्पष्ट दिख रही है, अल्पसंख्यक समाज की ये नई पीढ़ी कथित धर्मनिरपेक्षता के बोझ से खुद को आज़ाद होना चाहती है। अल्पसंख्यक समाज में दलाल नेताओं की अहमियत धीरे धीरे ख़त्म होती दिख रही है। समाज को जैसे ही मौका मिल रहा है, तुरंत इम्पोर्टेड नेताओं से दूरी बना ले रहा है “

माजिद बताते हैं कि पंद्रह प्रतिशत आबादी वाला मुस्लिम समुदाय ना कल भाजपा को हराने में सक्षम था और ना कभी भाजपा को हरा सकता है। भाजपा को हराता-जिताता है बहुसंख्यक समाज। इसलिए धर्मनिरपेक्षता को बरक़रार रखने की ज़िम्मेदारी सभी समुदायों की है, ख़ास तौर पर बहुसंख्यक समुदाय की यह सबसे अधिक है” ।

बिहार के चुनाव में एमआईएम का शानदार प्रदर्शन आने वाले समय में देश की राजनीति में एक नया संकेत है। ये एक नए तरह का राजनीतिक आग़ाज़ है और इस राजनीति का सीधा नुकसान ग़ैर-भाजपाई दलों को होगा जो मुसलमानों को अपना बंधुआ ग़ुलाम समझते आए हैं। आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए ये ख़तरे की घंटी है, क्योंकि इस पार्टी का मुख्य वोटर ही मुसलमान है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला से आखिरी चरण के मतदान से पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा के इशारे पर चुनाव लड़ने की बात कही थी। अब ठीक इसी तरह की बात उत्तर प्रदेश में भी कही जा रही है ! बिहार में इस ‘ओवैसी शो’ के बाद उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के कई नेता ओवैसी को भाजपा एजेंट घोषित कर रहे हैं। मेरठ के पूर्व मंत्री रहे मोहम्मद अब्बास कहते हैं कि बिहार में एनडीए की जीत के लिए सिर्फ असदुद्दीन ओवैसी ही जिम्मेदार है। वो भाजपा की बी टीम है। वो तेलंगाना में 9 सीट पर चुनाव लड़ते हैं जबकि बिहार में 24 सीटों पर लड़ रहे थे। यहां से एनडीए 11 सीट जीत गई। ओवैसी बीजीपी की धुर्वीकरण में सहायता कर रहे हैं। अगर उनके फार्मूला पर अमल किया जाये तो पूरे भारत में बीजीपी के 523 सांसद जीत जाएंगे। उन्ही के षड्यंत्र से बिहार में धर्मनिरपेक्ष ताक़तो की हार हुई है। इनका चेहरा पहचानने की जरूरत है।

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